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तेजी से घट रही आदिवासियों की जनसंख्या, रिसर्च से सामने आई ये चौंकाने वाली सच्चाई

locationजगदलपुरPublished: Feb 10, 2020 06:30:33 pm

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CG Desk

जन्मदर के साथ ही मृत्युदर में बढ़ोतरी, नक्सली जनित हिंसा का खौफ व पलायन भी है मुख्य फैक्टर, रिपोर्ट अजजा व अजा विभाग के हवाले।

तेजी से घट रही आदिवासियों की जनसंख्या (File Photo)

तेजी से घट रही आदिवासियों की जनसंख्या (File Photo)

बस्तर . छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य इलाके में जनजातीय समुदाय की जनसंख्या लगातार घट रही है। 1981-91, 1991- 2001, 01- 2011 की जनगणना से मिले इन आंकड़ों ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। राज्य शासन की आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग ने इसके तथ्य व कारणों से अवगत होने बस्तर विश्वविद्यालय को शोध करने कहा था। शोध के परिणाम सामने आ गए हैं। विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान एवं जनजातीय अध्ययन शाला ने दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर, कांकेर, जशपुर व कोरिया जिला में लगभग सात हजार सैंपल का सर्वे लेकर सरकार की चिंता को सही पाया है।

साफ पानी की कमी भी बड़े कारक के तौर पर पहचानी गई
राज्य के अनुसूचित इलाकों में जन्म व मृत्युदर दोनों की बढ़ोतरी से इनकी जनसंख्या घटती जा रही है। मृत्युदर में बढ़ोतरी के लिए कुपोषण, बीमारियां, साफ पानी की कमी सबसे बड़े कारक हैं। हाल ही में पत्रिका ने भी बस्तर के कई ब्लॉक में पेयजल में फ्लोराइड की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंचने व इसके सेवन से कई पीढिय़ों के स्थाई तौर पर अपाहिज होने की खबरें अभियान के तौर पर प्रकाशित की हैं। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी पत्रिका की खबर पर संज्ञान लेते इन इलाकों में शुद्ध पेयजल पहुंचाने नंदपूरा डेम से नौ गांव में पानी सप्लाई किए जाने की बात कही है। नंदपूरा में इसके लिए एक करोड़ की लागत से वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाया गया है।

पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर/ हजार
दंतेवाड़ा- 57
बीजापुर- 67
सुकमा- 69
नारायणपुर- 69
कांकेर- 52
जशपुर- 66
कोरिया- 70

नक्सली, सुरक्षाबलों का खौफ व पलायन नए खतरे के तौर पर उभरे
आदिवासी समुदाय की जनसंख्या घटने के कारणों में असुरक्षित प्रसव, नवजात की मृत्युदर में बढ़ोतरी ज्यादा प्रभावी है। 2013 से 16 के बीच दंतेवाड़ा में नवजात की मृत्यु की संख्या प्रतिहजार में तीन सौ थी। जबकि इसी अंतराल में बीजापुर में 327 तक पहुंची थी। प्राकृतिक आपदाओं के अलावा हाल ही के दिनों में नक्सली से उपजी समस्याएं, सुरक्षाबलों की सरगर्मी का खौफ व जीविकोपार्जन के कम होते अवसर के चलते पलायन से भी अब इनके उजड़ जाने का सबब बन गए हैं। अपुष्ट आंकड़ों के मुताबिक सुकमा के नक्सली प्रभावित इलाकों से 50 हजार लोग सीमावर्ती तेलंगाना व आंध्रप्रदेश जाकर बस गए हैं। अब इनकी वापसी को लेकर भी मुहिम चलाई जा रही है। हालांकि इस बारे में विस्तृत शोध अभी बाकी है। बावजूद कई एनजीओ ने भी ऐसे खतरों से सरकार को गाहे-बगाहे आगाह किया है।

फैक्ट फाइल :
* 2011 की जनगणना के मुताबिक जनजातियों का सर्वाधिक प्रतिशत दंतेवाड़ा व बस्तर में है।
* राज्य में 42 अनुसूचित जनजातियां हैं, जो 161 उपजातियों में विभाजित हैं।
* शोध में पता चला है कि जनजातीय जनसंख्या वृद्धि 2001-2011 में 2.19 दर की कमी आई है।
* जशपुर ही ऐसा अनुसूचित क्षेत्र है जहां 2001-2011 के मध्य जनसंख्या में 1.37 दर से वृद्धि हुई है।
* दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर, कांकेर, कोरिया व जशपुर में जन्म की तुलना में मृत्युदर अधिक।
* जनजातीय समाज में जन्म के समय व 6 साल से कम उम्र के बच्चों में लिंगानुपात दर में कमी पाई है।
* बस्तर संभाग में मातृ मृत्युदर राज्य में सर्वाधिक है।

शोध से पता चला कि वृद्धि दर में कमी आई है
अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या वृद्धि दर में कमी को प्रभावित करने वाले कारक पर शोध किया गया था। शोध से पता चला है कि जनजातीय इलाकों में इनकी जनसंख्या दर में कमी आई है। शोध के आंकलन से विभाग को अवगत करा दिया गया है।
डा. स्वपन कोले, मुख्य अन्वेषक, बस्तर विश्वविद्यालय

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