दोनों अफसर स्वत: जांच में दोषी सिद्ध हो जाएंगे
माना जा रहा है कि दोनों अफसर अपने काले कारनामों की फाइल को ठिकाने लगाने में जुट गए हैं। इधर, डीईओ एचआर सोम का कहना है कि दस्तावेज जिला पंचायत से मिल चुके हैं, बाकी बचे दस्तावेज अगर बीईओ दफ्तर में नहीं मिले तो दोनों अफसर स्वत: जांच में दोषी सिद्ध हो जाएंगे। डीईओ का कहना है कि मामले में निष्पक्षता के साथ जांच आगे बढ़ रही है जो भी दोषी होगा उस पर नियमानुसार कार्रवाई होगी।
दो अफसरों ने मिलकर शासन को दो साल तक लगाया चूना
मामले में तत्कालीन बीईओ राजेश उपाध्याय और वर्तमान बीईओ रमाकांत पांडेय ने मामले में शासन को ६६ लाख २४ हजार रुपए की चपत लगाई है। ऐसे शिक्षक जो बढ़ी हुई सैलरी की पात्रता नहीं रखते थे उन्हें भी प्रमोशन के आधार पर सैलरी बांटी गई, वो भी एक दो महीने नहीं बल्कि पूरे दो साल तक। तोकापाल बीईओ दफ्तर के सूत्रों की मानें तो राजेश उपाध्याय ने बढ़ा हुआ वेतन देना २०१८ में शुरू किया। इससे पहले उन्होंने २०१७ से १८ का एरियस भी शिक्षकों के खाते में डाल दिया। गौरतलब है कि दो साल पहले जिला पंचायत के सीईओ प्रभात मलिक ने उन २११ शिक्षक पंचायत का डिमोशन कर दिया था जो अंग्रेजी विषय में अर्हता नहीं रखते थे। उस वक्त ५४३ शिक्षकों का प्रमोशन हुआ था, जिनमें २११ अपनी अर्हता साबित नहीं कर पाए और उनका डिमोशन हुआ। अर्हता साबित करने के लिए सभी शिक्षक पंचायत को जून २०१९ तक का वक्त सीईओ ने हाई कोर्ट के निर्देश पर दिया था। इस पूरी कार्रवाई के दौरान यानी डेढ़ वर्ष की अवधि में २११ शिक्षकों का प्रमोशन रोका गया था, सभी बीईओ से संबंधित शिक्षकों को बढ़ा हुआ वेतन नहीं देने और उन्हें पूर्व के पद पर यथावत रखने के लिए कहा गया था लेकिन जिले के ७ ब्लॉक में से तोकापाल ब्लॉक ही ऐसा था जहां सीईओ के आदेश को ताक पर रखकर शिक्षकों को प्रमोशन के आधार पर वेतन दिया जाता रहा।