दरअसल गुरुवार की सुबह करीब साढ़े 10 बजे ग्राम पवेल के हितामेटा के पंचायत अरुपुंड इलाके के कुछ ग्रामीणों से सूचना मिली की एक महिला को प्रसव पीड़ा हुई है, और उसे जल्द ही अस्पताल पहुंचाना होगा। अब चुनौती थी दुर्गम इलाके में पहुंचने की। पगड़ंडी से पहुंचमार्ग वाली यहां की सड़क में गाड़ी से जाया नहीं जा सकता था। वहीं धुर माओवाद प्रभावित इलाका होने की वजह से पैदल जाना भी खतरे से खाली नहीं था। फिर भी जवानों की टीम मदद के लिए पैदल रवाना हुई। उनके घर पहुंची। लेकिन यहां महिला की प्रसव पीड़ा से कराह रही थी। खराब स्थिति देखते हुए जवानों ने कबाड़ से जुगाड़ का रास्ता अपनाते हुए तुरंत बांस को तोड़कर उसका स्ट्रेचर बनाया और उसमें महिला को डालकर पहाड़ी व उबड़-खाबड़ रास्ते से होते हुए उसे कांधे में डालकर अपने कैंप लेकर आए। इस बीच एंबूलेंस को भी कॉल कर दिया गया था। जैसे ही यहां एंबूलेंस पहुंची उसे तुरंत इसमें डालकर दंतेवाड़ा अस्पताल के लिए रवाना कर दिया गया।
महिला ने स्वस्थ्य बच्चे बच्चे को दिया जन्म : गर्भवती महिला को जवानों के प्रयास से कैप तक लाया गया, इसके बाद सीईओ ने एंबूलेंस को कैंप तक बुलवाया। उसमें महिला को बैठाकर दंतेवाड़ा जिला अस्पताल रेफर किया गया। जहां महिला ने स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दिया। डॉक्टर के मुताबिक जच्चा व बच्चा दोनों सुरक्षित हैं।
माओवादी चेरू की पत्नी है
जवानों को मिली जानकारी के बाद जैसे उन्होंने तफ्तीश की वैसे ही पता चला कि महिला का पति माओवादी था। जिसे पिछले माह अक्टूबर माह में ही गिरफ्तार किया गया था। बावजूद इसके जवान की टीम प्रसव से कराह रही महिला को बचाने पैदल 9 किमी पहुंचे और उसे कांधे में डालकर कैंप तक लाया।
बदले की भावना से नहीं, दिल जीतने के इरादे से करते हैं काम
असिस्टेंट कमांडेंट राजीव सिंह से जब इस मामले में बात की गई तो उन्होंने बताया कि जवान कभी भी बदले की भावना से काम नहीं करता है। बल्कि वे यहां ग्रामीणों के दिल जीतने के इरादे से काम करते हैं। इस मामले में भी पहले ही पता चल गया था कि महिला गिरफ्तार माओवादी की पत्नी है। लेकिन इस वक्त महिला परेशानी में थी, और उसकी मदद करना प्राथमिकता थी। इसलिए उसकी मदद करना प्राथमिकता थी। जवानों ने वैसा ही किया।