लोगों को अब सिर्फ शगुन के पांच दिए चाहिए
दीवाली जैसे त्यौहारों में दूसरों के घरों को रोशन करने वाले यह कुम्हार और उसका परिवार खुद धीरे-धीरे अंधकार की ओर ही बढ़ रहा है। ऐसे में अब दूसरों के घरों को दियों से रोशन करने की इच्छा उन्हें भी नहीं रही है। उनका कहना है कि लोगों को अब सिर्फ शगुन के पांच दिए चाहिए और उन्हें तैयार करने से ना तो उनका परिवार पड़ रहा है और ना ही खुद के पेट की आग बुझा पा रहे हैं। पत्रिका ने इलाके में जाकर देखा कि कुम्हारों की बस्ती में इनकी हालत खराब है।
मिट्टी के साथ पसीना और आंसू भी
राकेश ने बताया कि मिट्टी के दीये बनाने में उन्हें और उनके परिवार को कितनी मेहनत करनी पड़ती है। ५ किमी दूर साइकिल में जाकर वे मिट्टी लेकर आते हैं। इसके बाद इसे भीगाने के बाद काफी मसला जाता है। इसके बाद सतह पर आने वाली चिकनी मिट्टी को निकाला जाता है। इसमें रेत की निश्चित मात्रा मिलाने के बाद बर्तन व दीये बनाए जाते हैं। इसके बाद भी उनकी स्थिति लगातार गिर रही है। समय के साथ वे आधुनिक भी हुए लेकिन नहीं बदली तो इनकी तकदीर। उनका कहना है कि दीपावली नजदीक आते ही पूरा परिवार दीये बनाने की तैयारी में जुट जाता है लेकिन त्यौहार करीब आने के बाद दीयों की मांग नहीं होने से सभी निराश होकर अंदर से टूटने लगते हैं।
मॉल में टिप देकर आने वाले दीये के लिए करते हैं मोलभाव
कुम्हारों का कहना है कि वे एक दीये २ रुपए में बेच रहे हैं। फिर भी उनसे मोलभाव होता है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि ये वही लोग हैं, जो यहां मॉल में सामान लेने के बाद बचे चिल्लर पैसों को वहीं छोडक़र आ जाते हैं। वे सडक़ पर सामान बेचते हैं इसलिए उनसे मोलभाव होता है। जबकि बड़े बड़े दुकानों में पैसे ज्यादा देने को वे परम्परा समझते हैं। बच्चों को काम सीखने के लिए कहता हूं लेकिन कोई भी तैयार नहीं है उन्हें पता है कि इस काम से अपना गुजारा नहीं चलाया जा सकता।