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आदिवासी रोजाना नक्सलियों के बिछाए इन जानलेवा खतरों को पार जा रहे राशनकार्ड नवीनीकरण के लिए दूसरे गांव

locationजगदलपुरPublished: Jul 27, 2019 12:02:06 pm

Submitted by:

Badal Dewangan

बीजापुर के आठ गांव के आदिवासियों को इस समय सरकार से मिलने वाली सस्ते राशन (Ration Card) के बंद होने का डर सता रहा है। यह डर इतना भारी है कि उनके जान जाने पर खतरा फीका पड़ गया है।

Ration Card

आदिवासी रोजाना नक्सलियों के बिछाए इन जानलेवा खतरों को पार जा रहे राशनकार्ड नवीनीकरण के लिए दूसरे गांव

शेख तैय्यब ताहिर/जगदलपुर. बीजापुर के आठ गांव के आदिवासियों को इस समय सरकार से मिलने वाली सस्ते राशन के बंद होने का डर सता रहा है। यह डर इतना भारी है कि उनके जान जाने पर खतरा फीका पड़ गया है। दरअसल बीजापुर के एडसमेटा, पेद्दापाल, करूल, एरेंगोड, बुर्गील, मेल्लूर, नाइमपाल और हिरोली के ग्रामीण 15 किमी का सफर तय कर गंगालूर पहुंच रहे हैं ताकि वे अपने राशनकार्ड (Ration Card) का नवीनीकरण करवा सके। गंगालूर तक पहुंचना उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं है क्यों कि रास्तें माओवादियों (Naxalite) ने जगह-जगह बूबी ट्रैप, आईईडी (IED) लगा रखा है। इतना ही नहीं रास्तें में एक जगह माओवादी मोर्चा भी बना हुआ है। जिस रास्ते से यह ग्रामीण गंगालूर तक का सफर तय करते हैं इसमें इन सब के अलावा जंगली जानवरों का भी खतरा है। हर कदम पर मौत का खतरा लिए इन गांवों के आदिवासी राशनकार्ड नवीनीकरण नहीं होने से कहीं उनका राशन न रूक जाए और उनका परिवार इससे भूखा न रह जाए इसे देखते हुए गंगालूर पहुंच रहे हैं। पत्रिका रिपोर्टर ने इन गांवों का दौरा किया और समस्या की जानकारी ली। रात बीजापुर में बिताने के बाद सुबह ५ बजे गंगाूलर के लिए रवाना हुए। यहां तक पक्की सडक़ होने के कारण करीब ४० किमी का सफर ४५ में ही तय हो गया। जब यहां ग्रामीणों से पूछा कि एड़समेटा जाने के लिए कौन सा रास्ता है तो ग्रामीणों ने बताया रास्ता तो है ही नहीं । जाना है तो यहां पैदल जाना होगा। गंगालूर में ही गाड़ी खड़ी करने के बाद ग्रामीणों के साथ आगे निकले। गंगालूर चौक से बमुश्किल ३०० मीटर आगे बढ़े होंगे सडक़ खत्म हो गई। जंगल के बीच पगडंडी से होकर आगे बढे। कुछ ही दूर चलने के बाद एक बरसाती नाला आता है इसे पार करते ही शुरू होती है पहाड़ी, यहां से १२ किमी खड़ी चढ़ाई और बरसाती नालों को पार करने के बाद हम एड़समेटा पहुंचे।

माओवादी की चलती है सरकार
दरअसल यह गांव बेहद अंदरूनी इलाके में है। यहां तक सरकार की पहुंच भी नहीं है। इसलिए यहां माओवादियों की अच्छी खासी दखल है। ग्रामीणों ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि यहां हर चीज पर माओवादियों का दखल है। इस जगह के अंदरूनी होने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां दूर-दूर तक सरकारी भवन न कोई स्कूल नजर आया।

रास्ते में नजर आए बूबी ट्रैप और माओवादियों का मोर्चा भी दिखाई दिया
जो आदिवासी गंगालूर आए उनके साथ वापस उन्हीं के गांव पहुंचने के लिए निकले। ग्रामीणों ने बताया कि सडक़ तो बननी थी लेकिन काम काफी समय से रूक गया है। कुछ दूर चलने के बाद एक ग्रामीण ने ध्यान से चलने की नसीहत देते हुए कहा कि यहां माओवादियों ने बूबी ट्रैप लगाकर रखा है, दूसरी तरफ से होकर आना पड़ेगा। उसने बताया कि इस जंगल में ऐसे कई बूबी ट्रैप माओवादियों ने जवानों को घायल करने के उद्ेश्य से लगा रखें है। वहीं कुछ दूर आगे बढऩे के बाद एक उंचाई सी जगह पर पहाड़ी की चोटी मिली। यहां पत्थरों से घेरा किया हुआ था। पूछने पर बताया कि यह माओवादियों का मोर्चा है। जब वे यहां माओवादियों को देख लेते हैं तो वही आस-पास छिप जाते हैं, वो भी तब तक जब तक वे चले नहीं जाएं। दहशत के ऐसे माहौल में जीने को मजबूर हैं यहां के ग्रामीण।

14 किमी की पहाड़ी का रास्ता है, तीन बड़े नाले को पार कर पहुंचते हैं गंगालूर
माओवादी मोर्चे से आगे बढ़े ही थे कि एक बड़ा नाला सामने था। कमर तक पानी को पार करने के बाद इसी तरह तीन नाले और मिले। जिसे पार करने के बाद यह आदिवासी गांव पहुंचते हैं। पहुंचने पर सबसे पहले गांव पड़ता है एड़समेटा। यहां से कुछ दूरी पर पेद्दापाल गांव हैं।

इसी डर के बीच ग्रामीण गंगालूर से ही लाते हैं राशन
ऐसा नहीं है कि गंगालूर वे केवल राशनकार्ड नवीनीकरण के लिए ही पहुंचे हैं। बल्कि उन्हें हर छोटी बडी जरूरतों के लिए गंगालूर पर ही निर्भर रहना पड़ता है। जब राशन भी लाना रहता है तो उनके यहां राशन की दुकान नहीं होने की वजह से वे इसी खतरे के बीच से होते हुए गंगालूर से राशन ले जाते हैं।

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