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बस्तर में फ़ोर्स ने रास्ता रोका तो नक्सलियों ने बदला अपना कॉरिडोर

locationजगदलपुरPublished: Jun 24, 2022 09:53:50 am

ओडिशा की सीमा से लगे बस्तर के सीमाई इलाको में सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव के कारण नक्सली अब अपना रास्ता बदलने पर मजबूर हो गए है । बस्तर जिले के कोलेंग, चांदामेटा,कुमाकोलेंग सहित सुरक्षाबलों के आधा दर्जन कैम्प खुलने से नक्सलियो की परेशानी बढ़ गई है वे अब ओडिशा आने-जाने के लिए सुरक्षित वैकल्पिक मार्ग का उपयोग करने मजबूर हो गए है |

बस्तर में पुलिस के दबाव में हैं नक्सली

अंदरूनी इलाको में खुले पुलिस कैंप बने नक्सलियों के लिए परेशानी का सबब

जगदलपुर. बदली हुई परिस्थितियों में नक्सली अब ओडिशा के लिए गरियाबंद-महासमुंद के रास्ते का उपयोग कर रहे है ।बस्तर के आईजी पी. सुंदरराज बताते है कि बस्तर में पिछले 3 वर्षों में 40 से अधिक कैम्प खोले गए है इससे नक्सलियो की गतिविधियों में काफी अंकुश लगा है यही कारण है कि अब नक्सली नए-नए रास्तों का उपयोग कर रहे है ।
ओडिशा में भी खुले नए कैम्प
बस्तर की तर्ज पर ओडिशा के मलकानगिरी,कोरापुट और नबरंगपुर जिलो में सीमावर्ती इलाके में मातली, तुलसी,कियांग और रायसिंग गाँव सहित दर्जन भर कैम्प खुले है इसके कारण ओडिशा में पिछले दो वर्षों में नक्सली गतिविधियों में काफी कमी दर्ज की गई है गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते है कि ओडिशा में वर्ष 2019 में जहां 45 नक्सल वारदातों में 11 लोगो की मौत हुई है वही 2020 में कोविड के दौर में 50 वारदातों में 9 की मौत तथा 2021 में घटित 32 वारदातों में 3 लोगो की मृत्यु हुई है । बताया जाता है बस्तर के इलाके में शबरी नदी दोनों राज्यो की विभाजन रेखा है वारदातों को अंजाम देने के बाद नक्सली शबरी नदी पार कर एक राज्य से दूसरे राज्य पहुँच जाते है । जब से कैम्प खुले है तब से नक्सलियो को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
कोलेंग-चांदामेटा के जंगल थे नक्सलियो की शरणस्थली
बस्तर के कोलेंग,चांदामेटा और तुलसी डोंगरी का इलाका पहुंच विहीन होने के कारण यह इलाका नक्सलियो की एओबी ( आंध्र-ओडिशा बार्डर स्पेशल जोनल कमेटी) के लड़को की पनाहगार के रूप में जाना जाता था, लेकिन पिछले 4-5 वर्षों से पुलिस एव प्रशासन ने काफी मेहनत करके इस इलाके में न सिर्फ सुरक्षाबलों के कैम्प स्थापित किये बल्कि बिजली,सड़क,स्कूल,स्वास्थ्य एवं पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करवाकर ग्रामीणों का भरोसा भी जीता, इस कारण इलाके में नक्सलियो का प्रभाव कम हुआ। जुलाई 2019 में इसी इलाके में स्थित तिरिया के जंगल मे सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में एओबी के 6 नक्सली मारे गए थे पुलिस का दावा है कि इस मुठभेड़ में एओबी का इंचार्ज और सेंट्रल कमेटी सदस्य रामकृष्णा बाल-बाल बचा था । रामकृष्णा की मौजूदगी यह बताती है कि यह इलाका एओबी के नक्सलियो के लिए सुरक्षित पनाहगार था बन चुका था ।
गरियाबंद-महासमुंद कॉरिडोर का उपयोग कर रहे नक्सली
अबूझमाड़ नक्सलियो की अघोषित राजधानी मानी जाती है पुलिस का दावा है कि विभिन्न राज्यो में सक्रिय नक्सली मीटिंग और प्रशिक्षण के लिए अक्सर अबूझमाड़ पहुंचते है इसके लिए वे सुरक्षित रास्ते का उपयोग करते है पहले ओडिशा से बस्तर आने के लिए शबरी नदी पार करके कोलेंग से दरभा,पखनार,बास्तानार बारसूर य मिचनार बिन्ता होकर अबूझमाड़ में प्रवेश करते थे । लेकिन अब सुरक्षा बलों के बढ़ते खतरे को देखकर नक्सलियो ने नया कॉरिडोर बनाया है अब वे अबूझमाड़ से मर्दापाल,कोंडागांव,दुधावा, धमतरी,गरियाबंद और महासमुंद होते हुए ओडिशा आते-जाते है दो दिनों पूर्व 21 जून को नक्सलियो ने इसी मार्ग पर गरियाबंद – नवापाडा ( ओडिशा ) के जंगल में सीआरपीएफ जवानों पर घात लगाकर हमला किया जिसमें 3 जवान शहीद हो गए थे तथा दर्जनभर जवान इस हमले में घायल हुए थे । पिछले एक वर्ष में इसी कॉरिडोर में सुरक्षाबलों और नक्सलियो के मध्य 3 मुठभेड़ें हो चुकी है ।
एक दशक में देश में नक्सल घटनाओं में 80 फीसदी कमी
सुरक्षाबलों की मुस्तैदी के कारण पिछले 12 वर्षो में देश मे नक्सल वारदातों में लगभग 70 फीसदी की कमी आई है गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते है कि वर्ष 2009 में देश मे सर्वाधिक 2258 नक्सल वारदाते हुई थी जो कि 2020 में घटकर 665 रह गई है वही नक्सल हिंसा में हुई मौतों के मामले में भी 80 फीसदी की कमी आई है वर्ष 2010 में जहाँ नक्सल हिंसा में 1005 लोग मारे गए थे वहां 2020 में यह संख्या घटकर 183 रह गई है इसीतरह वर्ष 2013 में 10 राज्यो के 76 जिले धुर नक्सल प्रभावित थे वही अब यह 9 राज्यो के 53 जिलो में यह समस्या बची है

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