साल 2016 में 12 साल की नाबालिग लड़की के साथ उसी मकान किराए पर रहने वाले एक नाबालिग किशोर ने दुष्कर्म किया। लड़की अपनी मां को बता पाती, उससे पहले वह गर्भवती हो गई। परिवार की मुखिया मां को जब पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी। गर्भपात संभव नहीं था, सो लड़की ने बच्ची को जन्म दिया। नातिन के जन्म के समय ही नानी कह दिया था कि वह उसे अपना नाम देगी। समय बीता तो परिवार को लोग भूल गए। मां-बेटी ने सिलाई व दूसरे काम करके अपना परिवार को पालने में लग गई। मासूम बच्ची तीन साल की हुई तो स्कूल में दाखिला करवाने लेकर गए। वहां जन्म प्रमाण पत्र, आधार कार्ड मांगे। इसके बाद शुरू हुई सरकारी सिस्टम से लड़ाई। प्रमाण पत्र बनवाने नगर निगम गए तो वहां पिता का नाम पूछा जाने लगा। कई चक्कर काटने के बाद भी प्रमाण पत्र नहीं बना। दो महीने बाद बच्ची चार साल की हो जाएगी। दस्तावेज नहीं बने तो इस साल भी उसका दाखिला नहीं हो पाएगा।
एकमुश्त डेढ़ लाख सहायता राशि ही मिली
किशोरी की मां ने बताया कि सरकार से तो घटना के समय एकमुश्त ही डेढ़ लाख रुपए की सहायता राशि मिली थी। वहीं, आरोपी लड़के को किशोर गृह में ले गए थे। उसके बाद न कोई पूछने आया और न ही सहायता करने। महिला ने बताया कि यह भी सुनने में आया है कि लड़का किशोर गृह से छूट गया है। सहायता राशि के जो पैसे मिले थे, वह भी खत्म हो गए। सरकार की ओर से कानूनी रुप से सलाह-मशविरा देने भी कोई नहीं आया।