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‘वस्त्र उद्योग में महत्वपूर्ण हैं संरक्षण, निरंतरता व रीइन्वेंशन’: लैला तैयबजी

locationजयपुरPublished: Jul 14, 2018 05:58:23 pm

Submitted by:

Aryan Sharma

जवाहर कला केंद्र में ‘न्यू ट्रेडिशंसः इन्फ्लुएंसेज एंड इंस्पिरेशंस इन इंडियन टेक्सटाइल्स 1947-2017’ विषय पर चल रही एग्जीबिशन के तहत दो दिवसीय सिम्पोजियम का आयोजन

Jaipur

‘वस्त्र उद्योग में महत्वपूर्ण हैं संरक्षण, निरंतरता व रीइन्वेंशन’: लैला तैयबजी

जयपुर. वस्त्र कभी-कभी कला बन जाते हैं, लेकिन परम्परागत रूप से ये कौशल और आजीविका के स्त्रोत हैं। वस्त्रों की 5000 वर्ष पुरानी परम्परा के गत 70 वर्षों को निरंतरता व परिवर्तन के साथ-साथ पुनरुत्थान एवं जन्म के तौर पर माना गया है। कृषि के बाद वस्त्र क्षेत्र रोजगार का सबसे बड़ा स्त्रोत है। ऐसे में इस क्षेत्र में संरक्षण, निरंतरता के साथ-साथ नवीन आविष्कारों के जरिए आगे बढ़ना आवश्यक है। यह कहना था दस्तकार की चेयरपर्सन व संस्थापक लैला तैयबजी का। जवाहर कला केंद्र में ‘न्यू ट्रेडिशंसः इन्फ्लुएंसेज एंड इंस्पिरेशंस इन इंडियन टेक्सटाइल्स 1947-2017’ विषय पर आयोजित एग्जीबिशन के तहत हुए दो दिवसीय सिम्पोजियम में उन्होंने हाथ से बनी खादी के लिए महात्मा गांधी द्वारा किए गए आह्वान व आजादी के बाद से लेकर वर्तमान समय तक के भारतीय वस्त्रों के सफर के बारे में बताया।
इसमें यह भी बताया कि आजादी के बाद वस्त्रों के संदर्भ में भारत को स्वयं की पहचान की तलाश थी और वर्तमान दौर में ग्लोबलाइजेशन, मीडिया के नवीन स्वरूप व कनेक्टिविटी का प्रभाव है।
शिल्प के व्यापार बनने पर जताई चिंता
तैयबजी ने बताया कि 1970 व 1980 के दशक में इस क्षेत्र में नवीन ऊर्जा का संचार हुआ। वस्त्र क्षेत्र को नया जीवन मिला और पारम्परिकता व जातीयता की ओर भी लौटा गया। अनोखी व फैब इंडिया जैसी शाॅप्स सामने आई और वैश्विक ब्रांड नेम बन गई। तैयबजी ने बताया, ग्रामीण शिल्पकारों व उपभोक्ताओं के बीच के अंतराल को खत्म करने के उद्देश्य से दस्तकार की शुरुआत की गई थी। यही नहीं, उन्होंने इस बात पर चिंता प्रकट की कि शिल्प अब व्यापार बन रहा है और शिल्पकारों व बुनकरों की आर्थिक व सामाजिक स्थिति अच्छी नहीं है। उन्होंने कहा कि शिल्प कौशल होने के बावजूद शिल्पकारों को समाज में अन्य वर्गों के बराबर बनने के लिए उद्यमिता व तकनीक जैसे क्षेत्रों में भी निपुण होना होगा।
आपको बता दें, जवाहर कला केंद्र की ओर से आयोजित इस एग्जीबिशन को मयंक मानसिंह कौल द्वारा क्यूरेट किया है और रेहा सोढ़ी ने डिजाइन किया है। इसमें 50 से अधिक उन कलाकारों व डिजाइनरों की कलाकृतियां प्रदर्शित की जा रही हैं, जो सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व वैज्ञानिक परिस्थितियों से प्रभावित रहे हैं। एग्जीबिशन आम लोगों के अवलोकन लिए 31 जुलाई तक सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे खुली रहेगी।

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