केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने पेयजल और स्वच्छता विभाग के सहयोग से यंत्रीकृत स्वच्छता इको सिस्टम के लिए राष्ट्रीय नीति तैयार की, लेकिन इसकी पालना को लेकर कोई गंभीरता नहीं बरत रहा है। नतीजतन, ये सीवरेज और सेप्टिक टैंक मौत के कुएं बने हुए हैं।
प्रदेश में आयोजित विभिन्न कार्यशालाओं में पिछले चार वर्षों में 1183 सफाईकर्मियों को स्वच्छता कार्य में कौशल उन्नयन प्रशिक्षण प्रदान किया गया, लेकिन यह भी महज कागजी साबित हो रहा है। नाम की नीति
- प्रत्येक जिले में जिम्मेदार स्वच्छता प्राधिकारी की नियुक्ति।
- प्रत्येक नगरपालिका में स्वच्छता रेस्पॉन्स इकाई (एसआरयू)।
- एसआरयू को यंत्रीकृत सफाई के लिए आवश्यक उपकरणों व वाहनों से लैस करना।
- यंत्रीकृत सफाई के लिए व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित जन शक्ति।
- सीवर और सेप्टिक टैंक के अवरुद्ध होने पर 24 घंटे की हेल्पलाइन।
योजनाएं हैं, लेकिन लाभार्थी कम सौ फीसदी मशीनरी सफाई को बढ़ावा देने और स्वच्छता कार्यकर्ताओं व उनके आश्रितों को स्थाई आजीविका प्रदान करने के लिए सरकार की ओर से कई योजनाएं संचालित हैं, लेकिन जागरूकता के अभाव में ग्राउंड लेवल तक इनका लाभ नहीं मिल रहा।
स्वच्छता उद्यमी योजना के तहत सफाई कर्मचारियों और स्थानीय निकायों को स्वच्छता संबंधी उपकरणों और मशीनों की खरीद के लिए 50 लाख रुपए तक के रियायती ऋण देने का प्रावधान है। लेकिन योजना शुरू होने से अब तक प्रदेश में महज 33 सफाई कर्मचारियों ने इसका लाभ उठाया है।
जबकि आंध्रप्रदेश में 1603 कामगारों ने इसकी सहायता ली। वहीं सफाईकर्मियों व उनके आश्रितों को स्वच्छता संबंधी परियोजनाओं के लिए 5 लाख रुपए तक पूंजीगत सब्सिडी प्रदान करने के लिए स्वरोजगार स्कीम को 2020-21 से संशोधित किया गया। इसके तहत राजस्थान में एक भी सफाईकर्मी ने सहायता नहीं ली।