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54 हजार स्कूल व्याख्याता करेंगे विधानसभा का घेराव

locationजयपुरPublished: Feb 27, 2021 04:51:40 pm

Submitted by:

Rakhi Hajela

प्रिंसिपल पद पदोन्नति में अनुपात बदलाव का मामलाएक मार्च से राजधानी में शुरू होगा धरना5 मार्च को होगा विधानसभा का घेराव

54 हजार स्कूल व्याख्याता करेंगे विधानसभा का घेराव

54 हजार स्कूल व्याख्याता करेंगे विधानसभा का घेराव


प्रिंसिपल पद पदोन्नति में स्कूल व्याख्याताओं के अनुपात को बढ़ाए जाने का मांग को लेकर प्रदेश के 54000 स्कूल व्याख्याता एक मार्च को राजधानी में धरना देंगे और पांच मार्च को विधानसभा का घेराव करेंगे। राजस्थान शिक्षा सेवा प्राध्यापक संघ (रेसला) के बैनर तले इस आंदोलन का आगाज किया जाएगा। दरअसल रेसला ने इस अनुपात को बढ़ाए जाने की मांग की थी। जिस पर उच्च स्तर पर पत्राचार हुआ और 80:20 का अनुपात तय भी कर लिया गया। 9 फरवरी को कैबिनेट की बैठक में इस पर निर्णय होना था लेकिन बैठक से ठीक पहले इसे डेफर कर दिया गया। जिससे स्कूल व्याख्याता नाराज हैं।
यह है मामला
रेसला के मुख्य प्रदेश महामंत्री सुमेर खटाणा का कहना है कि दरअसल प्रदेश में स्कूल व्याख्याताओं की संख्या 54000 है वहीं दूसरी ओर प्रधानाध्यापकों की संख्या लगभग 3500 है। दोनों एक ही ग्रुप से संबंधित है, दोनों ही समकक्ष पद हैं और दोनों ही राजपत्रित हैं। दोनों ही पदों पर 50 फीसदी पद सीधी भर्ती और 50 फीसदी पद द्वितीय श्रेणी अध्यापकों से भरे जाते हैं। दोनों पदों की अगली पदोन्नति प्रधानाचार्य पद पर होती है और जिस समय 67:33 लागू किया गया उस समय व्याख्याता 23000 और प्रधानाध्यापक 9000 थे। ऐसे में उस सयम की स्थिति में यह अनुपात सही था लेकिन वर्तमान में व्याख्याताओं की संख्या 54000 हो जाने और प्रधानाध्यापक के पद कम होकर 3500 रह जाने से यह अनुपात अव्यवहारिक हो गया है। व्याख्याताओं की संख्या अधिक होने के करण उन्हें पदोन्नति का पूरा लाभ नहीं मिल पाता, जबकि प्रधानाध्यापक को पदोन्नति में उनके कुल 3500 पद होते हुए भी उनके लिए 4000 पद सुरक्षित हैं जो नियम के अनुसार उचित नहीं है।
रेसा पर गुमराह करने का आरोप
रेसला के प्रदेशाध्यक्ष मोहन सिहाग ने रेसा पर सरकार को गुमराह करने का आरोप लगाते कहा कि इस प्रकरण की फाइल वित्त विभाग से स्वीकृति के बाद कैबिनेट तक पहुंची है जबकि रेसा तर्क दे रहा है व्याख्याता से प्रधानाचार्य बनने पर सरका पर वित्तीय भार अधिक पड़ेगा जो गलत है। 2015 से पूर्व जितने भी व्याख्याता प्रधानाचार्य बने हैं उनका वेतन या तो प्रधानाचार्य के समान था या उनसे अधिक था इसलिए सरकार पर कोई भार नहीं पड़ा। 2015 के बाद भी जो व्याख्याता प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नत हुए हैं उनमें से आधे व्याख्याता डीपीसी से होते हैं जो पूर्व में प्रधानाचार्य पद के समान वेतन पर होते हैं। आगामी समय में भी ऐसा ही होगा कि व्याख्याता जब तक आगामी एसीपी का लाभ प्राप्त नहीं कर लेगा तब तक प्रधानाचार्य नहीं बन पाएगा, जबकि एक प्रधानाध्यापक मात्र तीन साल में ही प्रधानाध्यापक बन जाता है।
शिक्षा विभाग में स्थापित होगा सामंजस्य
रेसला ने कहा कि शिक्षा विभाग में सामंजस्य स्थापित करने के लिए सरकार की ओर से प्रधानाध्यापक का पद समाप्त कर माध्यमिक स्कूलों में व्याख्याता को लगाया जाना चाहिए। जिस प्रकार द्वितीय श्रेणी का अध्यापक मिडिल स्कूल में हैडमास्टर का काम करता है। माध्यमिक और उच्च माध्यमिक में द्वितीय श्रेणी का अध्यापक होता है। उसी प्रकार एक व्याख्याता माध्यमिक स्कूल में रहने पर प्रधानाध्यापक का काम करेगा और उच्च माध्यमिक में रहने पर व्याख्याता का काम करेगा।

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