उनका जन्म 550 वर्ष पूर्व सन् 1469 ई. में पंजाब के तलवंडी नाम गांव में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। जिसे बाद में नानकाना साहिब कहा जाने लगा। नानकाना साहिब अब पाकिस्तान में है। गुरू नानक देव के जन्म दिवस को प्रकाशपर्व के तौर पर मनाया जाता है।
गुरू नानक देव ने करतारपुर नाम का शहर बसाया था जो कि अब पाकिस्तान में है। यहीं पर वे 70 वर्षों की साधना के पश्चात् सन् 1539 ईं. में परमज्योति में विलीन हो गये।
गुरू नानक देव धर्म प्रवर्तक, मानववादी चिन्तक गुरू नानक देव एक महान संत, धर्म प्रवर्तक, मानववादी चिन्तक होने के साथ महान क्रान्तिकारी भी थे। उन्होंने देश के पतन के कारणों को समझा। समाज में आई कमजोरियों, कुरीतियों का अध्ययन किया। उनके जन्म के समय देश के राजनैतिक एवं सामाजिक हालात अच्छे नहीं थे।
उस समय देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। एक तरफ राजसी अत्याचार हो रहे थे तो दूसरी तरफ धर्म के ठेकेदार लोगों को झूठे कर्म काण्डों में फंसाकर लूट रहे थे। उन्होंने अनुभव किया कि सदियो से चली आ रही छूतछात, ऊंच-नीच, जाति भेदभाव, देश की एकता में बाधक है, जिसके कारण देश कभी संगठित नहीं हो सकता। उन्होंने देश की जनता में आई निर्बलता एवं पतन के भाव को दूर करने एवं उनकी सोई हुई आत्मा को जगाने का बीड़ा उठाया।
साम्प्रदायिक एकता, सद्भाव और प्रेम की जलाई ज्योति लोगों को जागृत करने के लिए लम्बी-लम्बी पदयात्रायें की। उन्होंने चार यात्रा-चक्र पूरे किये। इन यात्राओं को उनकी चार उदासियां कहा जाता है। उन्होंने अपनी चार उदासियों में लगभग 57000 मील पैदल भ्रमण किया।
वे भारत, अफगानिस्तान, फारस अरब आदि देशो के मुख्य-मुख्य स्थानों पर गये तथा धर्म प्रचारकों को उनकी कमियां बताई साथ ही लोगों से धार्मिक आडम्बरों एवं धर्माधता से दूर रहने का अनुरोध किया। वे जहां भी जाते लोगों को केवल ‘एक परमात्मा’ की उपासना का मार्ग बताते। इस तरह गुरू नानक देव ने अपनी यात्राओं के माध्यम से चारों तरफ साम्प्रदायिक एकता, सद्भाव एवं प्रेम की ज्योति जलाई थी।
महान सूफी कवि
गुरू नानक देव एक महान सूफी कवि भी थे। उन्होंने बहुत सारी बाणी की रचना की जिसे सुनकर लोग बहुत प्रभावित होते थे। उनकी बाणी गुरू ग्रन्थसाहिब में ‘महला पहला’ के नाम से विभिन्न रागों में संकलित है। उनकी प्रमुख रचनाओं में जपुजी साहिब, सोहिला, आसा दी वार, पटी, बारहमाह आदि है।
गुरू नानक देव एक महान सूफी कवि भी थे। उन्होंने बहुत सारी बाणी की रचना की जिसे सुनकर लोग बहुत प्रभावित होते थे। उनकी बाणी गुरू ग्रन्थसाहिब में ‘महला पहला’ के नाम से विभिन्न रागों में संकलित है। उनकी प्रमुख रचनाओं में जपुजी साहिब, सोहिला, आसा दी वार, पटी, बारहमाह आदि है।
गुरू नानक देव का मिशन काफी बड़ा था, जिसे पूरा करने के लिए उन्होने अपने शिष्य भाई लहणा को अपना उत्तराधिकारी स्थापित कर उन्हें यह दायित्व सौंपा। भाई लहणा सिख धर्म के दूसरे गुरू अंगद देव जी के नाम से जाने जाते हैं।
ईश्वर एक है उन्होंने कहा ‘ईश्वर एक है’ वह सर्वव्यापी है। सच्चे मन से ईष्वर की अराधना करने वालों को कभी किसी बात का डर नहीं लगता है। सच्चाई, ईमानदारी और परिश्रम करके ही धन कमाना चाहिए। अपनी कमाई में से निर्धन एवं जरूरत मन्दों की सहायता अवश्य करनी चाहिए। कभी भी किसी दूसरे का हक नहीं छीनना चाहिए। उनके उपदेशों का लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा।