script57 साल बाद भी योजना की सुव्यवस्थित बसावट का इंतजार | 57 years later, waiting for the well planned settlement of the scheme | Patrika News

57 साल बाद भी योजना की सुव्यवस्थित बसावट का इंतजार

locationजयपुरPublished: Jun 03, 2018 09:34:00 pm

Submitted by:

Umesh Sharma

मोतीडूंगरी रोड स्थित निवाई महंत की बगीची का मामला
जमीन लेकर मुआवजा भी दिया, मगर बसावट का आज भी इंतजार

kacchi basti
मोतीडूंगरी रोड, आनंदपुरी स्थित निवाई महंत की बगीची को 57 साल भी सुव्यवस्थित बसावट का इंतजार है। नगर निगम और जेडीए के बीच फुटबॉल बनी इस कॉलोनी के लोगों को आज भी नारकीय जीवन जीना पड़ रहा है। खास बात यह है कि 1963 में तत्कालीन जिलाधीश ने भूमि अवाप्ति के लिए अवार्ड घोषित कर मुआवजा राशि भी निर्धारित कर दी थी, लेकिन आज तक मौके पर बसावट का लोगों को इंतजार है।
स्थानीय लोागें ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी तो पता चला कि जेडीए इस योजना को नगर निगम का क्षेत्र बता रहा है तो नगर निगम इसे जेडीए का मामल बताकर इतिश्री कर रहा है। इस आनाकानी की वजह से नगर विकास न्यास की यह योजना मूर्त रूप नहीं ले सकी है। न्यास की ओर से बनाए गए नक्शे के रास्ते ही ब्लॉक हो चुके हैं। जबकि स्थानीय लोगों का कहना है कि 24 फरवरी, 1994 में अवाप्त भूमि का कब्जा लिए बिना ही मुआवजा दे दिया गया। इसके बाद अधिकारियों की उदासीनता के कारण यह योजना कार्यान्वित नहीं हो पाई है। अभी तक यह जमीन को नगर निगम के नाम नहीं किया गया है।
1959 में शुरू हुई थी कार्रवाई

राज्य सरकार ने कच्ची बस्तियों के पुनरुत्थान योजना के तहत नगर विकास न्यास ने 1959 में निवाई महंत की बगीची की भूमि अवाप्ति की कार्रवाई शुरू की थी। तत्कालीन जिलाधीश ने 1963 में 2520 वर्गगज भूमि अवाप्ति के लिए अवार्ड भी जारी कर मुआवजा राशि निर्धारित कर दी। इसके बाद असंतुष्ट महंत रामप्रसाद ने राज्य सरकार के विरुद्ध अपील की। इसके बाद 2520 वर्गगज भूमि के अलावा 300 वर्गगज अतिरिक्त भूमि अवाप्त करने और मुआवजा देने का निर्णय किया गया। 1971 के सर्वे में कच्ची बस्ती वासियों की सूची तैयार कर नियमन की प्रक्रिया शुरू की गई। इसके बाद 12 मार्च, 1981 को हाईकोर्ट के निर्णय के तहत महंत रामप्रसाद वाद में अंतिम मुआवजा तय किया गया।
यूं चला घटनाक्रम
-अवाप्तशुदा भूमि पर 60 फुट चौड़ा रास्ता बताते हुए स्टे के लिए जेडीए व नगर निगम के खिलाफ न्यायालय में अपील की गई। 1994 में यह निर्णय दोनों विभागों के विरुद्ध आया।
-9 फरवरी, 1994 के निर्णय के विरुद्ध जयपुर नगर निगम ने सक्षम न्यायालय में 19 अगस्त, 1998 के प्रार्थना पत्र व दस्तावेज प्रस्तुत किए।
-31 अक्टूबर, 1998 को न्यायालय ने 1994 के निर्णय को खारिज करते हुए जयपुर नगर निगम की अपील को स्वीकार कर लिया।
-24 फरवरी, 1994 को चैक के माध्यम से मुआवजे का भुगतान हो गया, लेकिन आज तक योजना का क्रियान्वयन नहीं हो पाया है।

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