निजी में हालात ज्यादा खराब अगर शिक्षा विभाग की डाइस रिपोर्ट के आंकड़ों के आधार पर देखा जाए तो इसके अनुसार 43 फीसदी सरकारी स्कूलों में खेल के मैदान हैं। यानी करीब 65 हजार स्कूलों में से करीब 28785 में ही खेल के मैदान हैं। वहीं बात निजी स्कूलों की की जाए तो यहां हालत ज्यादा खराब है। केवल 35 प्रतिशत स्कूलों में ही खेलने के लिए पर्याप्त स्थान हैं। जबकि 65 प्रतिशत स्कूल केवल मकान जैसे स्थानों पर चल रहे हैं।
खेल मैदान होना है आवश्यक शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत स्कूलों में बच्चों के बाहरी गेम्स खेलने के लिए खेल के मैदान का होना अनिवार्य है। हालांकि वर्ष 2012 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नियमों में कुछ छूट देते हुए स्कूलों को थोड़ी सहूलियत दी थी। इसके तहत स्कूल परिसर में खेल मैदान होना आवश्यक नहीं है मगर बच्चों को आसपास के पार्क या अन्य मैदान में नियमित तौर पर खेल खिलाना जरूरी है।
नौ साल के हर्षित ने कहा की खेलने के लिए न स्कूल में जगह है, न कॉलोनी में। स्कूल में बस एक कमरा है, जहां एक-दो गेम ही खेल सकते हैं। वहीं 10 साल के अभिषेक का कहना है की स्कूल में बस पढ़ाई होती है और घर पर खेलने की जगह नहीं है। गर्मी की छुट्टी में भी नहीं खेल पा रहे हैं।