विश्व हीमोफीलिया दिवस हर वर्ष १७ अप्रेल को मनाया जाता है। इस वर्ष इसकी थीम ‘सबका उपचार : सबका लक्ष्य’ रखा गया है। इस पर जे.के. लॉन अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अशोक गुप्ता ने कहा कि राजस्थान में लगभग एक हजार रोगी हीमोफीलिया से पीडि़त हैं। इनमें से 60 प्रतिशत रोगी ऐसी क्रॉनिक स्थितियों से पीडि़त हैं, जिनमें उन्हें एक महीने में 3-4 बार रक्तस्त्राव की स्थिति से गुजरना पड़ता है। जागरूकता की कमी के कारण लगभग 85 प्रतिशत रोगियों की पहचान नहीं हुई या उन्हें उपचार के लिए पंजीकृत नहीं किया गया है। राजस्थान सरकार की मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के अंतर्गत, रोगियों का इलाज मेडिकल कॉलेजों और कुछ जिला अस्पतालों में किया जा रहा है, जो कि वांछित फैक्टर्स केवल इन्हीं स्थानों पर उपलब्ध है। डॉ. गुप्ता ने बताया कि हीमोफीलिया से पीडि़त सभी रोगियों को पंजीकृत कराने की और राजस्थान राज्य में और अधिक समग्र हीमोफीलिया उपचार केंद्र विकसित करने की जरूरत है।
— आनुवांशिक रोग है हीमोफीलिया आईएमए के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. एस.एस. अग्रवाल ने बताया कि हीमोफीलिया एक आनुवांशिक रोग है और इसमें खून बहने वाले विकारों के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से यह दिवस मनाया जाता है। स्वास्थ्य कल्याण की ओर से संपूर्ण वर्ष इसको लेकर सेमीनार, सीएमई आदि जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
हीमोफीलिया के लक्षण -:
हीमोफीलिया से पीडि़त रोगियों को रक्तस्त्राव सामान्य लोगों की तुलना में तेजी से या अधिक नहीं होता है। चोट लगने पर उन्हें अन्य लोगों के मुकाबले ज्यादा समय तक रक्तस्त्राव होता है। यदि उनके शरीर के अंदर रक्तस्त्राव होने लगता है तो इससे उनके आंतरिक अंगों व ऊत्तकों को नुकसान पहुंच सकता है और उन्हें जीवनघातक स्थितियों का सामना करना पड़ता है।
हीमोफीलिया से पीडि़त रोगियों को रक्तस्त्राव सामान्य लोगों की तुलना में तेजी से या अधिक नहीं होता है। चोट लगने पर उन्हें अन्य लोगों के मुकाबले ज्यादा समय तक रक्तस्त्राव होता है। यदि उनके शरीर के अंदर रक्तस्त्राव होने लगता है तो इससे उनके आंतरिक अंगों व ऊत्तकों को नुकसान पहुंच सकता है और उन्हें जीवनघातक स्थितियों का सामना करना पड़ता है।