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‘रेनबो दादा ‘ ने गाँव में की चित्रकारी, सरकार ने गाँव को नहीं तोड़ा, अब बना देश का शीर्ष पर्यटन स्थल

locationजयपुरPublished: Jul 20, 2019 07:21:43 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

‘रेनबो दादा ‘ ने गाँव में की चित्रकारी, सरकार ने गाँव को नहीं तोड़ा, अब बना देश का शीर्ष पर्यटन स्थल
-जिस गांव को आज से एक दशक पहले प्रशासन तोडऩा चाहता था वहां आज सालाना 1 लाख से ज्यादा विदेशी पर्यटक आते हैं
-शरणार्थी हुआंग युग-फू नाम के पूर्व सैनिक ने पूरे गांव को कलाकृति में बदल दिया

'रेनबो दादा ' ने  गाँव में की चित्रकारी, सरकार ने गाँव को नहीं तोड़ा, अब बना देश के शीर्ष पर्यटन स्थलों में शुमार

जिस गांव को आज से एक दशक पहले प्रशासन तोडऩा चाहता था वहां आज सालाना 1 लाख से ज्यादा विदेशी पर्यटक आते हैं

जब कला को उद्देश्य मिल जाता है तो जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर भी जोश में कमी नहीं रहती। 96 साल के एक ताइवानी बुजुर्ग ने अपनी परंपरागत का इस्तेमाल कर न केवल सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया बल्कि अपने गांव नानटुन को भी उजडऩे से बचा लिया। हम बात कर रहे हैं ताइवान के शहर ताइचुंग के बाहर बने एक गांव में रहने वाले हुआंग युंग-फू की। दरअसल, करीब 10 साल पहले दस साल पहले ताइवानी सरकार ने घोषणा की कि वे हुआंग के गांव को ध्वस्त कर नया शहर बसाएंगे। हुआंग के गांव में अधिकांश निवासी पूर्व सैनिक थे जिन्हें सरकार ने यहां अस्थायी आवास दिया था। इन्हीं सैन्य शरणार्थियों के रूप में 37 साल पहले इस गांव में घायल सैनिक हुआंग भी आए थे। हुआंग बताते हैं कि जब वे यहां आए थे तब पूरे गांव में करीब 1200 घर हुआ करते थे। हम सभी एक बड़े परिवार की तरह रहते थे। लेकिन समय बीतने के साथ परिवार और रोजगार की तलाश में धीरे-धीरे लोग यहां से शहर में बस गए। लेकिन कुछ लोगों ने अपना गांव और घर छोड़कर जाने से इंकार कर दिया और यहीं रहे। गांव में एक समय केवल 11 घर ही आबाद थे। सरकार ने स्थानीय डेवलपर्स और बिल्डर्स को जमीनें बेचनी शुरू कर दीं।
कभी 900 से ज्यादा गांव थे ऐसे
हुआंग ने बताया कि कभी ताइवान में उनके गांव जैसे 900 से ज्यादा शरणार्थियों वाले सैन्य गांव थे जहां ताइवानी और चीन के शरणार्थी मिलकर रहा करते थे। लेकिन 1980-90 के दशक में ताइवानी अधिकारियों ने ऊंचे दामों पर इन गांवों को बिल्डर्स के हाथों बेच दिया। अब यहां ऐसे केवल 30 गांव ही बचे हैं। वर्ष 2008 में सरकार ने घोषणा की कि हुआंग के गांव को भी हटाकर वहां आवासीय फ्लैट्स और व्यवसायिक मॉल्स बनाए जाएंगे। लेकिन हुआंग ने बाकियों की तरह हार नहीं मानी। हुआंग ने बताया कि वे यहां से भी पलायन नहीं करना चाहते थे। यह एकमात्र छत थी जो कभी मुझे चीन से भागकर आने पर नसीब हुई थी। इसलिए मैंने इसे बचाने की ठानी और चीन की परंपरागत चित्रकारी से पूरे गांव को सजाने की ठानी।
एक कदम ने बदल दी दुनिया
हुआंग ने चित्रकारी की शुरुआत अपने घर की दीवार को रंगने से की। यहां उन्होंने पक्षियों की पेंटिंग की। वे रोज सुबह उठतेे, हाथ में रंगों से भरी बाल्टी, हाथ में कूचियां और मन में घुमड़ती तस्वीरों के साथ वे रोज अपने गांव की गलियों, दीवारों, सड़कों और खाली पड़े घरों को रंगते। समय के साथ उनकी चित्रकारी को ताइवान के शहरों में पहचान मिलने लगी। धीरे-धीरे वे अपनी परंपरागत चित्रकारी के कारण ताइवान में ‘ग्रैंडपा रेनबो’ के नाम से पहचाने जाने लगे। साल 2010 में ling tung विश्वविद्यालय का एक छात्र गांव में घूमने आया। अपने गांव को बचाने के लिए हुआंग के इस प्रयास को उसने दुनिया के सामने लासने की ठानी। उसने हुआंग के लिए गांव को रंगने के लिए पर्याप्त मात्रा में पेंट उपलब्ध करवाने के लिए उसने ऑनलाइन चैरिटी फंड भी बनाया। इससे पहले हुआंग अपने ही पैसों से रंग खरीदकर गांव में चित्रकारी कर रहे थे। उसने गांव को ध्वस्त करने से बचाने के लिए इसके विरोध में एक याचिका भी दायर की। छात्र के प्रयास रंग लाए।
कुछ ही महीनों में ताइचुंग के मेयर को गांव ध्वस्त न करने की अपील करते करीब 80 हजार से ज्यादा ई-मेल प्राप्त हो चुके थे। सभी गांव का हेरिटेज साइट के रूप में संरक्षण करना चाहते थे। तब मेयर ने जनता की इच्छा का सम्मान करते हुए पूरे गांव को एक सार्वजनिक पार्क के रूप में संरक्षित करने की घोषणा की। आज हुआंग का ‘रेनबो विलेज’ ताइचुंग शहर का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है जो प्रति वर्ष एक लाख से अधिक पर्यटकों की आमद से गुलज़ार होता है।
पूरा गांव ही जीता-जागता कैनवास
एक दशक में हुआंग ने गांव की हर दीवार, गली, घर, रास्ता यहां तक की पेड़ों को भी अपनी कलाकृति के जीते-जागते कैनवास में बदलकी रख दिया है। हुआंग कहते हैं वे सुबह 3 बजे उठकर गांव में अब भी चित्रकारी करते हैं। वे इस काम को 100 साल की उम्र में भी करना जारी रखेंगे क्योंकि यह काम उन्हें युवा और ऊर्जावान बनाए रखता है। सबसे हैरानी की बात यह है कि वे कोई प्रशिक्षित चित्रकार नहीं है। उनके पिता ने उन्हें ३ साल की उम्र में थेड़ा बहुत चित्र बनाना सिखाया था। उन्होंने कहा कि इस उम्र में मैं कई काम कर पाने में खुद को लाचार महसूस करता हूं लेकिन चित्रकारी मुझमें नया जोश भर देती है।
यह मुझे स्वस्थ रखता है। शहर के अधिकारियों ने हुआंग के दुनिया से चले जाने के बाद गांव में बच्चों के लिए आट्र्स स्कूल शुरू करने की योजना भी बनाई है। इस तरह वे पूरे गांव को हुआंग के संग्रहालय के में बदल देंगे। हुआंग कहते हें कि अगली सुबह अगर में आंखें खोलता हूं और चिंत्रकारी करने में खुद को सक्षम पाता हूं तो मुझे खुशी होगी। अगर ऐसा न भी हुआ तो मुझे इस बात का संतोष रहेगा कि यह गांव हमेशा जीवित रहेगा।
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