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यूथ पावर: मिलिए, उदयपुर के 23 साल के क्रिमिनोलॉजिस्ट से, कर चुके हैं निर्भया केस पर यूनिसेफ के साथ काम 

locationलखनऊPublished: Jan 21, 2016 11:47:00 am

Submitted by:

madhulika singh

उदयपुर  के 23 वर्षीय क्रिमिनोलॉजिस्ट रोचिन चंद्रा  यूनिसेफ के साथ मिलकर निर्भया केस पर काम कर चुके हैं तो ऑस्ट्रेलिया में वल्र्ड सोसायटी ऑफ विकटिमोलॉजी में ऑनलाइन क्राइम्स पर प्रेजेंटेशन दे चुके हैं। इतना ही नहीं वे अब अधिकारियों को भी  क्रिमिनोलॉजी का पाठ पढ़ाने वाले हैं। रोचिन, मार्च में राज्य के जेल प्रशिक्षण संस्थान अजमेर में राज्य सेवा के अधिकारियों व अधीनस्थ कर्मियों के समक्ष मुख्य वक्ता के रूप में व्याख्यान देंगे। रोचिन वर्तमान में क्रिमिनल जस्टिस में मास्टर्स कर रहे हैं। साथ ही इंटरनेशनल जर्नल ऑफ क्रिमिनल जस्टिस साइंस में इंटरनेशनल रिव्यूवर के पद पर कार्यरत हैं। 

 शहर के 23 वर्षीय क्रिमिनोलॉजिस्ट रोचिन चंद्रा यूनिसेफ के साथ मिलकर निर्भया केस पर काम कर चुके हैं तो ऑस्ट्रेलिया में वल्र्ड सोसायटी ऑफ विकटिमोलॉजी में ऑनलाइन क्राइम्स पर प्रेजेंटेशन दे चुके हैं। इतना ही नहीं वे अब अधिकारियों को भी क्रिमिनोलॉजी का पाठ पढ़ाने वाले हैं।


 रोचिन, मार्च में राज्य के जेल प्रशिक्षण संस्थान अजमेर में राज्य सेवा के अधिकारियों व अधीनस्थ कर्मियों के समक्ष मुख्य वक्ता के रूप में व्याख्यान देंगे। रोचिन वर्तमान में क्रिमिनल जस्टिस में मास्टर्स कर रहे हैं। साथ ही इंटरनेशनल जर्नल ऑफ क्रिमिनल जस्टिस साइंस में इंटरनेशनल रिव्यूवर के पद पर कार्यरत हैं। 

बाल सुधार गृहों को ही सुधार की जरूरत
रोचिन ने बताया कि यूनिसेफ के साथ निर्भया केस पर काम करने के दौरान उन्होंने मुंबई के माटुंगा में 23 बाल सुधार गृहों का निरीक्षण किया था। निरीक्षण में उन्होंने पाया कि देश में बाल सुधार गृहों की हालत दयनीय है। 

यहां बाल अपराधियों के सुधार के लिए उन्हें कोई चिकित्सा या थैरेपी नहीं दी जाती। उन्हें संभालने वाले अधिकारी प्रशिक्षित भी नहीं हैं। विभिन्न अपराध कर आने वाले किशोरों का परिपक्वता स्तर यहां अन्य अपराधियों से मिलकर बढ़ जाता है। एेसे में अपराध की प्रवृत्ति घट नहीं पाती। 

इन किशोरों व बालकों का मैच्योरिटी लेवल ज्यादा था। उन्हें संभालने वाले अधिकारियों को कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। इन अपराधियों की मनोवृत्ति साइको-सोश्यल थैरेपी से ही परिवर्तित की जा सकती है। इसके लिए क्रिमिनल साइकोलॉजिस्ट की भी जरूरत है। उन्होंने यूनिसेफ के साथ काम कर इससे संबंधित लीगल पॉजीशन पेपर केंद्र सरकार को पेश किए थे।

बननी चाहिए क्राइम प्रिवेंशन पॉलिसीज 
रोचिन ने बताया कि वह इस क्षेत्र में पिछले डेढ़ साल से काम कर रहे हैं। राजस्थान में क्रिमिनोलॉजी में मास्टर्स नहीं थी इसलिए तमिलनाडु गए। क्रिमिनोलॉजी में उनका मार्गदर्शन डॉ. जयशंकर ने किया।

 वैसे उनको शुरू से ही क्राइम इंवेस्टिेगेशन में रुचि थी, वहीं सीआईडी जैसे कार्यक्रम ने उनकी यह ललक और बढ़ा दी थी। उन्होंने बताया कि वह क्राइम प्रिवेंशन स्ट्रेटेजीज बनाना चाहते हैं, जिसकी देश को आज जरूरत है। 
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