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दो साल पहले हादसे में पिता ने बिस्तर पकड़ा, अब एकमात्र सहारा भी छीना, बेसुध हुई मां, तो नि:शब्द पिता

locationजयपुरPublished: Dec 07, 2019 09:34:32 pm

वाटिका रोड पर केडी स्कूल में छात्र की मौत का मामला, घर का एकमात्र सहारा हुआ स्कूल के टॉर्चर रूम का शिकार, मां-बाप के हाल बेहाल

दो साल पहले हादसे में पिता ने बिस्तर पकड़ा, अब एकमात्र सहारा भी छीना, बेसुध हुई मां, तो नि:शब्द पिता

दो साल पहले हादसे में पिता ने बिस्तर पकड़ा, अब एकमात्र सहारा भी छीना, बेसुध हुई मां, तो नि:शब्द पिता

देवेन्द्र शर्मा / जयपुर. दो साल पहले हुए एक हादसे के बाद से पिता को बीमार ही रहता है। घर में बुजुर्ग दादा-दादी, मां और छोटी बहन की जिम्मेदारी उसी पर थी। पढ़ाई में अच्छा, खेलकूद में भी आगे, जिससे उम्मीद थी कि वही भविष्य संवारेगा। लेकिन स्कूल ने उसके साथ इतना बुरा किया कि घर का सबकुछ ही छीन गया। यह कहना है संजय के रिश्तेदारों एवं गांव वालों का। दो दिन से बेसुध मां और नि:शब्द पिता को हरकोई ढांढस बंधा रहा है। बुजुर्ग गोपाल जांगिड़ को अपने पोते को खोने का गम तो बहुत है, जैसे ही कोई आता है कि उसकी आंखें छलक जाती है। इकलौता बेटा होने से संजय सभी का लाडला था, हर साल उसका जन्मदिन 18 दिसंबर को मनाते थे। उसकी तैयारी भी थी। लेकिन उससे पहले ही लाडले को छीन लिया।
दादा गोपाल का कहना है कि पोते ने भले ही कुछ भी किया हो, हमें बताते तो सही, उसे समझाते, नहीं मानता तो स्कूल से निकाल लेते। लेकिन स्कूल को यह अधिकार किसने दिया कि वह उसे टॉर्चर करे। स्कूल वालों ने ही उसे मारा है। दोषियों को सजा नहीं मिलेगी, तब तक चैन नहीं मिलेगा। शनिवार को पीडि़़त परिवार से मिलने बगरू विधायक कैलाश वर्मा भी पहुंचे। उन्होंने कहा कि पुलिस को दो दिन का वक्त दिया है, इसमें जांच नहीं की गई तो आंदोलन किया जाएगा।
परिजनों ने उठाए सवाल-शिकायत थी तो हमें क्यों नहीं बताया
– कई घंटों से वह कक्षा में नहीं था, ढाई बजे बाद वह खिड़की से कूदा

– स्कूल शिक्षा देने के लिए है, प्रताडऩा कक्ष का क्या काम
– ऊंचाई से गिरा तो उसके बाहरी चोट नहीं दिखी
– गर्दन पर लाल निशान, लीवर के डैमेज होने से लग रहा है उसे पीटा गया
– स्कूल की छुट्टी के बाद भी उसे रोकने का क्या काम

– सूचना भी ड्राइवर के जरिए क्यों दी गई
मां को संभाल पाना मुश्किल

संजय की मां को जब घटना का पता चला तब से वह बेसुध है। रोना, चिल्लाना और बच्चे को पुकारना ही उसके हक में रह गया। परिवार के लोग उसे समझाते, आंसूं पूंछते, लेकिन तब भी वह चुप नहीं हो रही है। छोटी बहन संजना अपनी भाई को याद तो करती है, लेकिन हुआ क्या यह समझ नहीं सकी है।

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