सांगानेर में टोंक रोड स्थित श्रीपिंजरापोल गोशाला स्थित सनराइज ऑर्गेनिक पार्क में गाय के गोबर से दीपक बनाने के लिए हैनिमैन चैरिटेबल मिशन सोसाइटी से जुड़ी महिलाओं ने इस दिशा में अभिनव पहल की है। कुछ समय पहले तक यहां पर दर्जनों महिलाएं ऑर्गेनिक पार्क की औषधीय खेती करती थी। इन्हीं महिलाओं ने गाय के गोबर को आर्थिक और सामाजिक स्थिति मजबूत करने का जरिया बना लिया। ये महिलाएं आकर्षक दीए बनाने के साथ-साथ लक्ष्मीजी व गणेशजी की मूर्ति सहित कई तरह की कलात्मक चीजें भी बना रही हैं। इको फे्रंडली होने के चलते राज्य के अन्य शहरों और अन्य राज्यों से भी इसकी मांग आ रही है। इसके अलावा यहां महिलाएं बचे हुए गोबर चूर्ण और पत्तियों से ऑर्गेनिक खाद (वर्मी कम्पोस्ट) भी बना रही हैं।
तेलंगाना, गुजरात से आ रही डिमांड
हैनिमैन चैरिटेबल मिशन सोसाइटी की अध्यक्ष मोनिका गुप्ता ने बताया कि शास्त्रों के मुताबिक गोमाता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास है, इसलिए हमारा लक्ष्य 25000 दीये बनाने का है। ताकि लोग गाय के गोबर के महत्व को जानें। उन्होंने बताया कि अब तक जयपुर सहित तेलंगाना, गुजरात, दिल्ली व हरियाणा से गाय के गोबर के दीयों की डिमांड बढ़ रही है। होलसेल में 250 रुपए प्रति सैकड़ा दीपक बिक रहे हैं। डिमांड के अनुसार आपूर्ति नहीं हो पा रही है। साथ ही गणेशजी और लक्ष्मी माता की मूर्ति भी इको फे्रंडली बनाई जा रही हैं।
हैनिमैन चैरिटेबल मिशन सोसाइटी की अध्यक्ष मोनिका गुप्ता ने बताया कि शास्त्रों के मुताबिक गोमाता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास है, इसलिए हमारा लक्ष्य 25000 दीये बनाने का है। ताकि लोग गाय के गोबर के महत्व को जानें। उन्होंने बताया कि अब तक जयपुर सहित तेलंगाना, गुजरात, दिल्ली व हरियाणा से गाय के गोबर के दीयों की डिमांड बढ़ रही है। होलसेल में 250 रुपए प्रति सैकड़ा दीपक बिक रहे हैं। डिमांड के अनुसार आपूर्ति नहीं हो पा रही है। साथ ही गणेशजी और लक्ष्मी माता की मूर्ति भी इको फे्रंडली बनाई जा रही हैं।
दीये के अवशेष भी बेहद उपयोगी
सनराइज ऑर्गेनिक पार्क के संचालक डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि इस दीपक के जलने से घर में हवन की खुशबू महकेगी। इससे घर के वातावरण को पटाखों की गैस को कम करने में सहायक होगी। दीये को दीपावली में उपयोग करने के बाद जैविक खाद बनाने के उपयोग में लाया जा सकता है। दीये के अवशेष को गमला या कीचन गार्डन में भी उपयोग किया जा सकता है। इस तरह मिट्टी के दीये बनाने और पकाने में पर्यावरण को होने वाले नुकसान के स्थान पर गोबर को दीए को इको फे्रंडली माना जाता है। उन्होंने सनातन धर्मियों से गाय के गोबर से बने दीपक जलाने का आह्वान किया है।
सनराइज ऑर्गेनिक पार्क के संचालक डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि इस दीपक के जलने से घर में हवन की खुशबू महकेगी। इससे घर के वातावरण को पटाखों की गैस को कम करने में सहायक होगी। दीये को दीपावली में उपयोग करने के बाद जैविक खाद बनाने के उपयोग में लाया जा सकता है। दीये के अवशेष को गमला या कीचन गार्डन में भी उपयोग किया जा सकता है। इस तरह मिट्टी के दीये बनाने और पकाने में पर्यावरण को होने वाले नुकसान के स्थान पर गोबर को दीए को इको फे्रंडली माना जाता है। उन्होंने सनातन धर्मियों से गाय के गोबर से बने दीपक जलाने का आह्वान किया है।
त्योहार हमारा तो सामान चायनीज क्यों…
सनराइज एग्रीलैंड डवलपमेंट एंड रिसर्च प्रा.लि. की मार्केटिंग हैड संगीता गौड़ ने बताया कि चीन किस तरह मार्केट को पकड़ता है। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि चीन जिन त्योहारों को मानता ही नहीं है, उसे मनाने के लिए सामान बनाता है। होली चीन में नहीं खेली जाती, लेकिन उसकी पिचकारी चीन से बनकर आती है। चीन दीपावली नहीं मनाता, लेकिन हमारे घरों को रोशन करने वाली लाइटें चीन से बनकर आती हैं।
सनराइज एग्रीलैंड डवलपमेंट एंड रिसर्च प्रा.लि. की मार्केटिंग हैड संगीता गौड़ ने बताया कि चीन किस तरह मार्केट को पकड़ता है। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि चीन जिन त्योहारों को मानता ही नहीं है, उसे मनाने के लिए सामान बनाता है। होली चीन में नहीं खेली जाती, लेकिन उसकी पिचकारी चीन से बनकर आती है। चीन दीपावली नहीं मनाता, लेकिन हमारे घरों को रोशन करने वाली लाइटें चीन से बनकर आती हैं।
ऐसे बनाए जा रहे दीपक
दीपक बनाने के लिए पहले गाय के गोबर को इकट्ठा किया जाता है। इसके बाद करीब ढाई किलो गोबर के पाउडर में एक किलो प्रीमिक्स व गोंद मिलाते हैं। गीली मिट्टी की तरह छानने के बाद इसे हाथ से उसको गूंथा जाता है। शुद्धि के लिए इनमें जटा मासी, पीली सरसों, विशेष वृक्ष की छाल, एलोवेरा, मैथी के बीज, इमली के बीज आदि को मिलाया जाता है। इसमें 40 प्रतिशत ताजा गोबर और 60 प्रतिशत सूखा गोबर इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद गाय के गोबर के दीपक का खूबसूरत आकार दिया जाता है। एक मिनट में चार दीये तैयार हो जाते हैं। इसे दो दिनों तक धूप में सुखाने के बाद अलग-अलग रंगों से सजाया जाता है। प्रतिदिन 20 महिलाएं 5000 हजार दीपक बना रही हैं। इन प्रत्येक महिला को प्रतिदिन 350 रुपए मिल रहे हैं।
दीपक बनाने के लिए पहले गाय के गोबर को इकट्ठा किया जाता है। इसके बाद करीब ढाई किलो गोबर के पाउडर में एक किलो प्रीमिक्स व गोंद मिलाते हैं। गीली मिट्टी की तरह छानने के बाद इसे हाथ से उसको गूंथा जाता है। शुद्धि के लिए इनमें जटा मासी, पीली सरसों, विशेष वृक्ष की छाल, एलोवेरा, मैथी के बीज, इमली के बीज आदि को मिलाया जाता है। इसमें 40 प्रतिशत ताजा गोबर और 60 प्रतिशत सूखा गोबर इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद गाय के गोबर के दीपक का खूबसूरत आकार दिया जाता है। एक मिनट में चार दीये तैयार हो जाते हैं। इसे दो दिनों तक धूप में सुखाने के बाद अलग-अलग रंगों से सजाया जाता है। प्रतिदिन 20 महिलाएं 5000 हजार दीपक बना रही हैं। इन प्रत्येक महिला को प्रतिदिन 350 रुपए मिल रहे हैं।