पुराणों में सप्तमी तिथि का संबंध सूर्यदेव से बताया है। ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माघ मास की सप्तमी तिथि पर भगवान सूर्यदेव ने ब्रह्मांड को अपने दिव्य ज्योति से प्रकाशित किया था। इस दिन सूर्योदय से पूर्व पवित्र नदियों में स्नान करके सूर्य पूजा और दान करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं। सूर्यदेव की प्रसन्नता से आरोग्य और सुख—संपदा प्राप्त होती है।
नारद पुराण में माघ शुक्ल सप्तमी को अचला व्रत कहा गया है। इस दिन पुत्र प्राप्ति, पुत्र रक्षा तथा पुत्र के अभ्युदय की कामना पूर्ति के लिए संतान सप्तमी व्रत भी रखा जाता है। इसे पुत्रदायक व्रत कहा गया है। स्वयं सूर्यदेव ने कहा है कि माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन जो मेरी पूजा करेगा उसे पुत्र के रूप में मेरा अंश प्राप्त होगा। इसे त्रिलोचन जयंती भी कहा जाता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर बताते हैं कि अचला सप्तमी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करें। इस दिन अरुणोदय के समय स्नान किया जाता है। सिर पर आक और बेर के सात—सात पत्ते रखकर स्नान करें। स्नान के बाद सूर्यदेव को जल अर्पित करें। तांबे के कलश में लाल रंग के फूल मिला लें। धूप और घी के दीपक से सूर्यदेव की पूजा करें। सूर्य देव के मंत्रों का जाप करें। दिनभर नियम संयम से उपवास रखें।