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अयोध्या पर फैसले से पहले पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम को चुनौती देने की तैयारी

locationजयपुरPublished: Oct 19, 2019 03:28:11 pm

Submitted by:

Vijayendra

1991 में नरसिम्हा राव सरकार ने पारित किया था एक्ट

अयोध्या पर फैसले से पहले पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम को चुनौती देने की तैयारी

अयोध्या पर फैसले से पहले पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम को चुनौती देने की तैयारी

नई दिल्ली
अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद अब धार्मिक स्थलों को लेकर एक और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच सकता है। संभावना है कि अयोध्या पर फैसले से पहले ही शीर्ष कोर्ट में इसे लेकर जनहित याचिका दाखिल कर दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील और भाजपा प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम 1991 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीआइएल दायर करने की तैयारी कर रहे हैं। यह अधिनियम 1991 में संसद ने पारित किया था। इसके मुताबिक अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को छोड़कर देशभर के बाकी सभी धर्म और उपासना स्थलों की स्थिति, अधिकार और मालिकाना हक 15 अगस्त, 1947 के पहले जैसे ही रहेंगे।
दोनों पक्षों से बात किए बगैर बना दिया कानून
अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि अयोध्या मामले के अलावा मथुरा में श्री कृष्ण जन्मस्थान, काशी विश्वनाथ, विदिशा में विजय मंदिर, गुजरात के बटना में रुद्र महालय, अहमदाबाद में भद्रकाली मंदिर, राजा भोज की प्राचीन नगरी धारा यानी धार में भोजशाला जैसे आस्था स्थलों को मुगलकाल में मनमाने और गैरकानूनी रूप से तोड़कर मस्जिद, दरगाह या फिर ईदगाह बना दिया गया। इन पर कहीं अदालती तो कहीं सामाजिक अधिकारों को लेकर धार्मिक विवाद चल ही रहे थे। इसी बीच 1991 में बगैर दोनों पक्षों से बातचीत किए तत्कालीन सरकार ने यह अधिनियम पारित कर दिया।
बौद्ध, जैन, सिख और पारसी का भी किया अपमान
उपाध्याय ने कहा कि इस अधिनियम को पारित कर केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने सनातन भारत के अन्य समुदायों बौद्ध, जैन, सिख,पारसी आदि का अपमान भी किया। यह इतिहास से सरासर नाइंसाफी थी। यह इस्लाम की मूल भावना के खिलाफ भी है, जिसमें दूसरे की जमीन हड़पकर या दूसरों के उपासना स्थल तोड़कर मस्जिद बनाना निषिद्ध है।

शिया वक्फ बोर्ड ने भी की थी एक्ट रद्द करने की मांग
शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन सैयद वसीम रिजवी भी कई बार केंद्र सरकार से इस अधिनियम को रद्द करने की मांग कर चुके हैं। रिजवी का कहना है कि मंदिरों पर जबरन कब्जा कर मस्जिद या ईदगाह बनाए जाने के ऐतिहासिक प्रमाण वाली जगहें वापस मूल अधिकार वालों को सौंप दी जानी चाहिए। लेकिन यह अधिनियम ही इस राह में मुख्य अड़चन है।
अधिनियम में सजा का प्रावधान
1991 के कानून के अनुसार धार्मिक स्थल के स्वरूप से छेड़छाड़ करने वाले व्यक्ति को तीन साल की सजा का प्रावधान है। यदि कोई राजनीतिक नेता ऐसा करने का दोषी पाया जाता है तो उसे चुनाव लडऩे के लिए अयोग्य ठहराया जा सकता है।
आगे क्या
सरकार इस कानून को रद्द करे तो देशभर में ऐसे धार्मिक स्थलों को उनके मूल हकदारों और उपासकों को वापस सौंपने में कानूनी रूप से भी आसानी हो जाएगी।

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