scriptआधा साल बीत जाने के बाद आखिरकार 304 करोड़ का बजट हुआ पास | After half a year, the budget of 304 crores finally passed. | Patrika News

आधा साल बीत जाने के बाद आखिरकार 304 करोड़ का बजट हुआ पास

locationजयपुरPublished: Oct 24, 2019 01:31:24 am

Submitted by:

Ankit

राजस्थान विश्वविद्यालय -सिंडीकेट की बैठक में हुए कई महत्त्वपूर्ण निर्णय

आधा साल बीत जाने के बाद आखिरकार 304 करोड़ का बजट हुआ पास

आधा साल बीत जाने के बाद आखिरकार 304 करोड़ का बजट हुआ पास

जयपुर. आधा वित्त वर्ष बीत जाने के बाद आखिरकार बुधवार को राजस्थान विश्वविद्यालय का सालाना बजट पास हो गया। 304 करोड़ रुपए का बजट सिंडीकेट की बैठक में पास किया गया। विश्वविद्यालय में इन दिनों दिवाली का अवकाश चल रहा है, फिर भी बजट के लिए सिंडीकेट की बैठक बुलाई गई। गौरतलब है कि पिछले छह महीने में दो बार लेखानुदान को ही पारित किया गया था। बजट पास नहीं होने के कई बड़े आयोजन नहीं हो पाए। अब दिसंबर में विवि में का दीक्षांत समारोह होना है, इससे पहले बजट पास करना जरूरी था। इस दौरान बाहर सेवानिवृत्त कर्मचारियों और छात्रों ने अपनी मांगों को लेकर धरना- प्रदर्शन किया। कर्मचारियों ने बताया कि जुलाई- सितंबर तक सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों को ग्रेच्युटी और अन्य लाभ नहीं मिले। वहीं छात्रों ने प्रोबेशन वाले शिक्षकों को भी पीएचडी की सीटें अलॉट करने, एमफिल में घटी सीटें वापस बढाने सहित कई मांगे रखी।
बैठक में बजट के अलावा विश्वविद्यालय में पिछले साल हुई भर्ती में वेटिंग लिस्ट वाले अभ्यर्थियों के लिफाफे भी खोले गए। बॉटनी, लाइब्रेरी साइंस, सांख्यिकी और मनोविज्ञान विभाग में एक-एक शिक्षक ने जॉइन नहीं किया था। इन चारों विभागों में ही संबंधित श्रेणी के लिफाफे खोले गए। इसके अलावा सरकारी कॉलेजों को शोध केन्द्र बनाने के लिए सत्र 2019-20 के लिए फीस मेें रियायत दी गई। सरकारी कॉलेजों के एक से अधिक विषयों के लिए केवल दस हजार रुपए ही लगेंगे। जबकि निजी कॉलेजों को हर विषय के लिए दस-दस हजार रुपए फीस देनी होगी।
बंद नहीं होगा जनसंचार केंद्र, अकादमिक काउंसिल में जाएगा मामला

विवि का तीस वर्ष पुराना जनसंचार केंद्र अब बंद नहीं होगा। सिंडीकेट बैठक में विभाग पर भी विस्तृत चर्चा की गई। गौरतलब है कि दो माह पूर्व हुई बैठक में केंद्र को अगले साल से नहीं चलाने का निर्णय किया गया था। बुधवार को हुई बैठक में सदस्यों ने कहा कि केंद्र को बंद करने का निर्णय सिंडीकेट नहीं कर सकती। यह मामला अकादमिक काउंसिल का है। तीस साल पुराने केंद्र को बंद करना भी उचित निर्णय नहीं है। संस्कृत विश्वविद्यालय शुरू किए जाने के बाद संस्कृत विभाग को बंद नहीं किया गया तो फिर पत्रकारिता विश्वविद्यालय के बाद जनसंचार केंद्र को क्यों बंद किया जा रहा है?
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