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अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका बदली, अब खेती के बजाए सर्विस सेक्टर दिखाता है प्रदेश के विकास की तस्वीर

locationजयपुरPublished: Sep 05, 2019 10:02:43 am

Submitted by:

Nidhi Mishra

पैमाने बदल गए हैं पर किसान और कृषि वही है। पहले जीएसडीपी में कृषि व उद्योग का हिस्सा बढ़ता था, अब सर्विस सेक्टर बढ़ रहा है। खेती के बजाय प्रदेश के विकास की तस्वीर सर्विस सेक्टर दिखाता है। 20 साल पहले सर्विस सेक्टर ने अर्थव्यवस्था में कृषि के अंशदान को पीछे छोड़ दिया।

Agricultural Growth Falls, Service Sector Growth Hikes

अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका बदली, अब खेती के बजाए सर्विस सेक्टर दिखाता है प्रदेश के विकास की तस्वीर

शैलेन्द्र अग्रवाल/ जयपुर। केन्द्र सरकार के विकास के पैमाने यानि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को लेकर विवाद चल रहा है, वहीं राज्य में भी विकास के पैमाने राज्य सकल घरेलू उत्पाद ( GSDP ) को लेकर बदलाव आया है। 20 साल पहले सर्विस सेक्टर ( service sector ) ने जीएसडीपी ( GSDP ) में कृषि ( agriculture ) के अंशदान को पीछे छोड़ दिया, तब से जीएसडीपी में कृषि के अंशदान में लगातार कमी आ रही है और सर्विस सेक्टर का अंशदान बढ़ता जा रहा है।
GSDP में कृषि और उद्योग क्षेत्र का अंशदान बढ़ने को पहला अच्छा माना जाता था, लेकिन अब यह धारणा बदल गई है। इस बदलाव के बीच जीएसडीपी में कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र के अंशदान में आए परिवर्तन को दो भागों में बांटकर अध्ययन किया। इसके तहत वित्तीय प्रबंधन को लेकर 2005 में राज्य में कानून बनने से पहले की स्थिति और कानून बनने के बाद की स्थिति का भी अध्ययन किया गया। विश्लेषण के लिए 23 साल के आंकड़ों का अध्ययन किया, जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। विश्लेषक कहते हैं कि अर्थव्यवस्था में सुधार के ऐसे कई विषय हैं, जिनके लिए केन्द्र सरकार से आर्थिक सहयोग मिले तो विकास में तेजी आ सकती है। आय दोगुना करने जैसे कई विषय केन्द्र सरकार के प्राथमिकता वाले एजेंडे में शामिल हैं, जिनका भी राज्य सरकार वित्त आयोग के माध्यम से लाभ ले सकती है।
Agricultural Growth Falls, Service Sector Growth Hikes
1997-98 के बाद से राज्य सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) में लगातार कृषि का अंशदान गिर रहा है और सेवा क्षेत्र का अंशदान बढ़ रहा है। 1999-2000 में GSDP में सर्विस सेक्टर के अंशदान ने कृषि के अंशदान को पीछे छोड़ दिया। उद्योग क्षेत्र के अंशदान का ग्राफ भी कई बार ऊपर-नीचे हुआ। 2011-12 में GSDP के बजाय सकल मूल्य वर्धन ( GVA ) को आधार बनाया गया राज्य की अर्थव्यवस्था के तुलनात्मक अध्ययन के लिए।
GSDP व GVA में अंतर
GSDP सदैव जीवीए से ऊंची रहती है। जीवीए उत्पादक या सप्लाई से संबंधित अर्थव्यवस्था की तस्वीर दिखाने वाला पहलू है, जबकि GSDP उपभोक्ता या मांग आधारित तस्वीर को दिखाता है।
स्थिर मूल्य पर जीएसडीपी में अंशदान
वर्ष कृषि उद्योग सर्विस
1996-97 8.61 24.36 37.03
1999-00 34.20 24.08 41.72
2003-04 32.39 24.49 43.12

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कृषि को नई परिभाषा देने की जरूरत
कृषि और उससे सम्बद्ध क्षेत्र प्राइमरी सेक्टर से जुड़ा हुआ है। प्रदेश की कृषि को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है। पहले गांव में बाजार लगता था। फसलों के उत्पादन, ट्रेड, प्रसंस्करण और विपणन को भी कृषि सेक्टर के दायरे में लिया जाना चाहिए। विपणन में भंडारण, परिवहन, पैकेजिंग व रिटेलिंग गतिविधियां भी शामिल हों। किसानों में अवसाद के भी मामले सामने आते हैं। विपणन सुधार के प्रयास हों, जिससे किसानों को फसलों का उचित मूल्य मिल सके। मेरा अपना अनुभव है कि 1960 से अब तक तीन चरण में विपणन को लेकर सुधार हुए। कृषि विपणन में सुधार के लिए यह आवश्यक है कि इसे राज्य सूची से निकालकर समवर्ती सूची में शामिल किया जाए और इसके लिए संविधान संशोधन हो। राज्य सूची का विषय होने से सुधार के लिए कानून में संशोधन में 15-16 साल लग जाते हैं और कई राज्यों में ऐसा संशोधन हो ही नहीं पाता है। इसके लिए जीएसटी कौंसिल जैसी बॉडी बन सकती है। इसके अलावा ऐसे सुझाव भी हैं, जिनसे वित्त आयोग के दल के सामने मांग रखकर राज्य सरकार लाभ ले सकती है। -प्रो. एस एस आचार्य, कृषि अर्थशास्त्री
वित्त आयोग से इन पर लाभ लें
प्रदेश में पानी की समस्या है और अभी नदियों को जोडऩे की योजना पर बहुत धीमे काम हो रहा है। वर्षा जल पुनर्भरण को प्रदेश में प्रोत्साहन मिलना चाहिए, यहां शुष्क क्षेत्र अधिक होने के आधार पर केन्द्र सरकार से अतिरिक्त धन की मांग की जा सकती है। बूंद-बूंद सिंचाई पर काफी काम हुआ है, इसके लिए भी वित्त आयोग से अतिरिक्त धन मांगा जा सकता है। कई निच ( NICHE ) कमोडिटी जैसे खजूर, आंवला, कसूरी मैथी, मथानिया की मिर्ची, झालावाड़ का संतरा है। जैविक खेती हो रही है। इन सबके लिए विशेष पैकेज मांगा जाए।

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