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भानगढ़ : उजड़ चुका हूं पर रोमांच अब भी कम नहीं 

locationजयपुरPublished: Jan 31, 2016 07:09:00 am

Submitted by:

Kamlesh Sharma

मैंभानगढ़ का ऐतिहासिक किला हूं, जहां सूर्यास्त के बाद प्रवेश भी वर्जित है। लोग मुझें भूतों के भानगढ़ के नाम से भी पुकारते हैं। र

मैंभानगढ़ का ऐतिहासिक किला हूं, जहां सूर्यास्त के बाद प्रवेश भी वर्जित है। लोग मुझें भूतों के भानगढ़ के नाम से भी पुकारते हैं। रहस्य व रोमांच से भरपूर होने के कारण देसी हो या विदेशी सैलानी, हर किसी की मुझें देखने की लालसा होती है। 

1958 से तो मैं पुरातत्व विभाग के अधीन हूं। मेरी दुनिया में भूत बंगले के अलावा नृत्यांगनाओं की हवेली, सेवड़ा छतरी, रानी रत्नावती का महल, केवड़ा की नाल आदि दर्शनीय स्थल है, जो मेरे गौरवमयी इतिहास के प्रमाण है। कभी मेरा शाही महल सात मंजिला हुआ करता था, लेकिन अब तो मात्र चार मंजिल ही शेष बची है। 

करीब तीन किलोमीटर लम्बे व दो किलोमीटर चौड़े क्षेत्र में फैली मेरी दुनिया यूं तो 1574 ई. में आबाद हुई थी, लेकिन वक्त के थपेड़ों ने मुझें भूतों का भानगढ़ की उपमा से नवाज दिया है। आज मैं इस कदर बर्बाद हो चुका हूं कि लगता नहीं कि फिर से आबाद हो पाऊंगा, जबकि मेरा अतीत किसी स्वर्णिम गौरव से कम नहीं है। 

किवदंती है कि भानगढ़ की रानी रत्नावती बेहद खूबसूरत थी और उसके सौन्दर्य के चर्चे चहूंओर फैले हुए थे। रूप सौन्दर्य की धनी रानी रत्नावती तांत्रिक विद्या में भी निपूण थी। इसी बीच सिंधु नामक सेवड़ा उसके सौन्दर्य पर मोहित हो गया, जो कि काले जादू का महारथी था। 

कहा जाता है कि रत्नावती को वश में करने के लिए सेवड़ा ने दासी के जरिए अभिमंत्रित तेल रानी के पास भेज दिया, ताकि इस तेल को बालों में लगाते ही वह उसके पास आ जाए। लेकिन रानी भी तंत्र विद्या में महारथी थी और तेल को देखते ही वह सेवड़ा की मंशा को भांप गई। उसने तेल को एक बड़ी शिला पर डलवा दिया और शिला उड़ते हुए सेवड़ा की ओर जाने लगी। 

ये देखते ही सिंधु सेवड़ा आग बबूला हो गया और श्राप दे दिया कि ये नगरी बर्बाद हो जाएगी और यहां के लोग कभी मुक्त नहीं हो पाएंगे और उनकी आत्माएं यहीं पर भटकती रहेगी। माना जाता है कि सिंधु सेवड़ा शिला के नीचे दबकर मर गया, जिसकी छतरी आज भी विद्यमान है। कुछ समय बाद पड़ौसी राज्य से युद्ध हुआ, जिसमें भानगढ़ के सभी लोग मारे गए और रानी भी सिंधु के श्राप से नहीं बच सकी।

पुरातत्व विभाग के है अधीन
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार 17 वीं शताब्दी में यह नगर आबाद था, जो अब वीरान हो चुका है। 1958 में पुरातत्व विभाग ने इसे अपने संरक्षण में लेकर जीर्णोद्धार भी करवाया था। तीन किलोमीटर के दायरे में फैले इस नगर में व्यवस्थित बाजार में अवशेष मिले हैं, जिसमें तीस से चालीस फीट रोड दुकानों के बाहर छोड़ा गया था। हालांकि, यहां चेतावनी बोर्ड लगाया हुआ है, जिसमें स्पष्ट उल्लेखित है कि यहां सूर्यास्त के बाद प्रवेश वर्जित है। लोग इसे सूर्योदय के बाद ही निहार सकते हैं। 

देवी-देवताओं के हाथों में है भानगढ़ की सुरक्षा
भानगढ़ तीन तरफ से पहाडिय़ों से सुरक्षित है। मुख्य द्वार पर हनुमानजी की प्रतिमा विराजित है, जिसके बाद एक किलोमीटर क्षेत्र में व्यवस्थित बाजार के अवशेष विद्यमान है। इसके बाद राजमहल परिसर के विभाजन में त्रिपोलिया द्वार बना हुआ है। इसके बाद राज महल स्थित है, जिसमें गोपीनाथ मंदिर, मंगला देवी मंदिर, सोमेवर महादेव मंदिर, केशवराय मंदिर प्रमुख है। 

मंदिरों की दीवारों तथा स्तम्भों पर की गई नक्काशी से अंदाजा लगाया जा सकता है ये किला कितना खूबसूरत रहा होगा। सोमेश्वर महादेव मंदिर के बगल में ही बावड़ी है, जिसमें झरने का पानी गिर क र इसकी शोभा बढ़ाता रहता है।

नागर शैली में निर्मित इन मंदिरो की विशेषता ये है कि किले सहित पूरा भानगढ़ खण्डहर में तब्दील हो चुका है, लेकिन मंदिर सुरक्षित है। हालांकि, मलाल ये ही है कि एक मात्र हनुमानजी की मूर्ति के अलावा सभी मंदिरों से मूर्तियां गायब हो चुकी हैं। 
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