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इस राजपूत परिवार का पाकिस्तान में बजता है डंका, ये शाही परिवार राजस्थान से रखता है गहरा नाता

locationजयपुरPublished: Oct 03, 2017 06:28:53 pm

यह रियासत पाकिस्तान के सिंध प्रांत में पड़ता है। इतिहास पर नजर डालें तो इसी जगह पर अकबर का जन्म हुआ था।

hindu family in pakistan
पाकिस्तान से अक्सर ही वहां रहने वाले अल्पसंख्य समुदाय पर जोर-जबरदस्ती की खबरें सामने निकल कर आती रहती हैं। जिसमें ज्यादातर हिंदू समुदाय के लोगों पर अत्याचार और जुल्म ढ़ाए जाते हैं, तो वहीं एक बात जो शायद कम ही लोगों को पता होगा कि इस देश में आज भी एक हिन्दू रियासत का बोलबाला उतना ही है, जितना 8 सौ साल पहले उनका रुतबा हुआ करता था। इस हिन्दू परिवार का डंका पाकिस्तान में सालों से बजता आ रहा है।
दरअसल, पिछले 8 सौ साल से सोढ़ा राजपूत अमरकोट में राज करते आ रहे हैं। तो वहीं इनका दबदबा इतना है कि पाकिस्तान में ना केवल शान से रहते हैं, बल्कि हिन्दूओं के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय भी इनके सम्मान में कमी नहीं करती है। रियासत के शाही परिवार के रीति-रिवाजों की बात करें तो सीमा के इसपार भारतीय समाज के समान ही है। जबकि इस रियासत के राणा हमीर सिंह के पुत्र करणी सिंह की शादी राजस्थान में हुई है। करणी सिंह की शादी जयपुर स्थित कानोता के ठाकुर मानसिंह की बेटी से हुई है।
आजादी के समय जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो दोनों ही मुल्कों के लोगों ने अपने-अपने मूल स्थान को छोड़ने को विवश हो गए। हालांकि अमरकोट के राणा ने अपनी जमीन नहीं छोड़ी और वो पाकिस्तान में रहने का फैसला किया। जिसके बाद से इस रियासत के शाही परिवार यही रहने लगें। फिलहाल इस रियासत के राणा हमीर सिंह हैं, जबकि उनके पिता राणा चंद्रसेन का राजनीति में बड़ा रसूख था, इतना ही नहीं उन्हें पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक माना जाता है। हालांकि कुछ साल बाद वे पीपीपी से अलग एक पाकिस्तान हिन्दू पार्टी का गठन किया। तो वहीं उनका निधन साल 2009 में हो गया।
आपको बता दें कि बाड़मेर जिले में स्थित मुनाबाव रेलवे स्टेशन से खोखरापार रेलवे स्टेशन की दूरी 12 किमी है जो कि पाकिस्तान का पहला रेलवे पड़ाव है। और यही से चालीस किलोमीटर दूर स्थित है अमरकोट रियासत। यह रियासत पाकिस्तान के सिंध प्रांत में पड़ता है। इतिहास पर नजर डालें तो इसी जगह पर अकबर का जन्म हुआ था। जब शेरशाह सूरी से युद्ध में हारकर हुमायूं भटकता हुआ अमरकोट पहुंचा तो यहां के राणा ने ही उसे शरण दी।
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