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राजस्थान: America-New Zealand का उदाहरण देकर कोर्ट ने दिया आदेश, ‘पूर्व CM खाली करें सरकारी बंगले’

locationजयपुरPublished: Sep 05, 2019 03:21:02 pm

Submitted by:

Nakul Devarshi

राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्रियों ( Ex Chief Ministers of Rajasthan ) को सरकारी बंगला और अन्य सुविधाएं नहीं दिए जाने के High Court के आदेश में कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं हैं। दरअसल, कोर्ट ने अपने आदेश में America के पूर्व राष्ट्रपतियों और New Zealand के पूर्व प्रधानमंत्रियों की स्थितियों का उदाहरण दिया है।

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जयपुर।

राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला और अन्य सुविधाएं नहीं दिए जाने के हाईकोर्ट के आदेश में कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं हैं। दरअसल, कोर्ट ने अपने आदेश में अमरीका के पूर्व राष्ट्रपतियों और न्यूजीलेंड के पूर्व प्रधानमंत्रियों की स्थितियों का उदाहरण दिया है।
आदेश में कहा गया है कि अमरीका में पूर्व राष्ट्रपति को पेंशन मिलती है, लेकिन मुफ्त आवास, बिजली व मुफ्त फोन की सुविधा नहीं मिलती है। इसके अलावा जो राशि मिलती है, उस पर भी टेक्स देना होता है। इसी तरह न्यूजीलेंड में पूर्व प्रधानमंत्री को जो पेंशन मिलती है उसमें सुरक्षा का खर्च भी शामिल होता है।

कानून की नजर में सब समानकोर्ट ने संविधान का हवाला देकर कहा कि संविधान सर्वोच्च है और अनुच्छेद 18 के तहत पदवी समाप्त कर दी गई हैं। संविधान ‘हम भारत के लोग’ सोच पर आधारित है और इसके तहत सभी समान हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री को यह सुविधा दी जा रही हैं

राजस्थान मंत्री वेतन संशोधन अधिनियम 2017 की धारा 7-ख ख व 11 (2) के तहत पूर्व मुख्यमंत्री को राजधानी या जिला मुख्यालय पर मुफ्त सरकारी आवास के साथ ही वाहन, टेलीफोन की सुविधा दी जाती है। इसके अलावा एक निजी सचिव, एक निजी सहायक या स्टेनोग्राफर, एक प्रथम श्रेणी लिपिक, दो सूचना सहायक, एक वाहन चालक और तीन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी उपलब्ध कराए जाते हैं। निजी सचिव को छोड़कर अन्य कर्मचारियों के लिए इनकी सेवाएं नहीं लेने पर नकद राशि देने का प्रावधान है।

अब यह रास्ता

— कुछ नए तथ्य पेशकर हाईकोर्ट से फैसले पर पुनर्विचार का आग्रह किया जा सकता है।

— राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका के जरिए अपील कर सकती है।
— प्रभावित पक्षकार आवास वापस लेने या सुविधाएं छीनने के नोटिस को चुनौती दे सकते हैं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से यह कहा थायाचिकाकर्ता पक्ष की ओर से अधिवक्ता विमल चौधरी, अधिवक्ता एसएस होरा व अधिवक्ता योगेश टेलर ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट उत्तरप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए ऐसे ही प्रावधान करने वाले कानून को असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर चुका है। विधानसभा को पूर्व मुख्यमंत्री के लिए आवास, स्टाफ, वाहन, टेलीफोन व कर्मचारी की सुविधाएं देने के लिए कानूनी प्रावधान करने का अधिकार नहीं है। इसके अलावा कुछ दिन पहले उत्तराखण्ड हाईकोर्ट और पटना हाईकोर्ट ने भी इसी तरह का आदेश दिया।

प्रार्थीपक्ष के अनुसार इस कानूनी प्रावधान के जरिए प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और जगन्नाथ पहाडिय़ा सरकारी आवास व सुविधाएं ले रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकार की ओर से आवास व अन्य सुविधाएं देना गलत है।

पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा व पूर्व मुख्यमंत्री नृपेन चक्रवती सहित कई नेता किराए के मकान में रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री को विधायक के रूप में आवास व सुविधाएं दी जा सकती हैं। पूर्व मुख्यमंत्री को अलग से सुविधाएं देकर उनका भार आम आदमी पर नहीं डाला जा सकता।

सालाना डेढ़ करोड़ का खर्चयाचिकाकर्ताओं की ओर से बताया गया कि पूर्व मुख्यमंत्री को दी जाने वाली सुविधाओं पर सालाना करीब डेढ़ करोड़ रुपए का खर्चा आता है। यदि पूर्व मुख्यमंत्री को सुविधाएं दी गईं, तो मंत्री व विधायक भी ऐसी ही मांग करने लगेंगे। इसके अलावा जब पूर्व मुख्यमंत्री को सुविधाओं का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था तो न्यायमित्र के आग्रह पर सभी राज्यों से पक्ष रखने को कहा गया। उस समय केवल चार राज्यों ने ही पक्ष रखा, उनमें से भी तमिलनाडू व ओडीशा ने अपने यहां पूर्व मुख्यमंत्रियों को कोई सुविधा नहीं देने की बात कही और बिहार व असम ने ही अपने यहां पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए ऐसा प्रावधान होने की बात स्वीकार की।

सरकारी पक्ष ने यह कहा थामहाधिवक्ता एम एस सिंघवी ने कहा कि लोकप्रहरी मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों तक सीमित है। पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं जनता को सेवा देने और उनकी गरिमा बनाए रखने के लिए दी जा रही हैं। इनको अलग दर्जा मिलना चाहिए, अन्य लोकसेवकों की बराबरी में नहीं रखा जा सकता।

पूर्व सीएम रहते गहलोत ने कहा था…पूर्व मुख्यमंत्रियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में उनको मिले सरकारी आवास को लेकर राज्य सरकार को पत्र लिखा था, जिसमें पूछा था कि सुप्रीम कोर्ट आदेश के आधार पर उनको क्या करना है? हालांकि सरकार ने उनको कोई जवाब नहीं दिया।

पहले पूर्व राज्यपाल सिंह ने खाली किया था आवासपूर्व में हाईकोर्ट के दखल के बाद ही पूर्व राज्यपाल अंशुमान सिंह ने सरकारी आवास खाली किया था और सरकारी सुविधाएं भी लौटा दी थी। सिंह को तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में ही सरकारी आवास व अन्य सुविधाएं दी गईं थी। पूर्व राज्यपाल सिंह को आवास व सुविधाएं देने के आदेश को भी जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई थी।

इन पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास
— भाजपा विधायक वसुंधरा राजे, बंगला नं.—13 (सिविल लाइन्स, जयपुर)

— वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जगन्नाथ पहाडिया, बंगला नं.—5 (अस्पताल मार्ग, जयपुर)


एक सरकारी बंगले पर विवादजयपुर स्थित सिविल लाइन्स में भैरोसिंह शेखावत को पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में सरकारी आवास आवंटित किया गया, लेकिन बाद में उपराष्ट्रपति बनने पर केन्द्र सरकार की ओर से यह बंगला उन्हें उपराष्ट्रपति के रूप में आवंटित हो गया। उनके निधन के बाद यह बंगला उनकी पत्नी को आवंटित हो गया। अब उनके परिवार के सदस्य रह रहे हैं। भाजपा सरकार ने इस आवास को खाली करवाने का प्रयास किया, लेकिन स्वर्गीय भैरोसिंह शेखावत के दामाद विधायक नरपत सिंह राजवी के परिवार को कोर्ट से राहत मिल गई और इस आवास को खाली कराने पर रोक लगा दी।

कानून यह कहता है

कानून कहता है कि पद से हटने के दो माह तक आवास रखने की छूट है।


विधायक लोढ़ा व पूर्व मंत्री तिवाड़ी ने भी उठाया था मुद्दा

सरकारी आवास खाली नहीं करने वाले पूर्व मंत्रियों का किराया दस हजार रुपए प्रतिदिन तय करने के लिए लाए गए विधेयक पर बहस के दौरान पिछले विधानसभा सत्र में निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने मुद्दा उठाया था कि पूर्व मुख्यमंत्री से सरकारी आवास खाली कराया जाए, क्योंकि इंदिरा गांधी ने तो प्रधानमंत्री रहते प्रिवीपर्स खत्म किए थे।

पूर्व मुख्यमंत्रियों को ऐसी सुविधाएं देने का कानून वापस लेना चाहिए। पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी ने भी पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास आवंटन के लिए विधेयक का विधानसभा में विरोध किया। इसके अलावा ऐसे कानून को जागीरदारी प्रथा से जोड़ते हुए विरोध में सत्याग्रह भी किया।
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