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रियासत के समय मौसम टावर से मिलती थी बारिश की जानकारी, टेलीग्राम से भेजते थे मौसम का हालचाल

locationजयपुरPublished: Jul 22, 2019 03:12:09 pm

Submitted by:

neha soni

रोज घुड़सवार महकमा खास में जमा कराता था विवरण

जितेंद्र सिंह शेखावत / जयपुर।

रियासत से जुड़े अंग्रेज वैज्ञानिकों और ज्योतिषियों ने जैकब रोड के नाटाणी का बाग परिसर में मौसम की नवीनतम जानकारी के लिए टॉवरनुमा मौसम केन्द्र कायम किया था। इसमें पशु पक्षियों की हलचल का अध्ययन कर मौसम का हालचाल मालूम किया जाता था। इससे पहले सिटी पैलेस में इसका कार्यालय था। विशेषज्ञों की सलाह पर जुलाई 1881 में सवाई रामसिंह द्वितीय के निर्देश पर करीब 75 फीट ऊंचा टॉवर बनाने के बाद इंगलैंड की पेसौला कम्पनी से उपकरण मंगवाए गए। रेजीडेंसी सर्जन डॉ. टी.एच.हैंडले की अगुवाई में इस केन्द्र की स्थापना हुई। दरअसल पहले सिटी पैलेस में उपकरण लगाए लेकिन ऊंची दीवारों की वजह से वायु की गति का सही परिणाम नहीं निकलने पर नया केन्द्र बनाया गया।
ancient way to predict weather in jaipur
रोज घुड़सवार महकमा खास में जमा कराता था विवरण

वर्षा और आंधी के अलावा रोजाना के मौसम की जानकारी एकत्र कर सुबह दस बजे व शाम चार बजे रिपोर्ट को घुड़सवार के साथ सिटी पैलेस के महकमा खास में भेजते। इस रिपोर्ट को अंग्रेजों के केन्द्र शिमला और मुम्बई में टेलीग्राम से भेजा जाता। उन दिनों मौसम की रिपोर्ट का गजट में भी प्रकाशन किया जाता था। बरसात के बारे में पुरानी कहावतों, पशु पक्षियों की हलचल के अलावा ज्योतिषियों के विचार भी शामिल किए जाते। वैज्ञानिक व विद्वान वायुमंडलीय प्रभाव के अलावा वर्षा, आंधी, आद्रता, तापमान, वायु की गति व उसकी दिशा के बारे में नई-नई जानकारी एकत्र करते। इसकी धूप व जल घड़ी से जानकारी लेकर समय की जानकारी देने के लिए पीतल का घंटा बजाया जाता।
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नक्षत्रों व ग्रहों की चाल से मौसम का पता लगाने के लिए सवाई प्रतापसिंह के बनवाए यंत्र को इस मौसम केन्द्र में लगाया गया। इसमें कुछ यंत्रों को जंतर-मंतर के यंत्रों की तर्ज पर बनाया गया। टॉवर में गुम्बदनुमा घुमावदार कमरे में बैठकर विद्वान हवाओं व वायुमंडलीय प्रभावों का अन्वेषण करते रहते। टॉवर के पास दस फीट गहरा पानी का एक होज भी था, जिस पर कुछ लिखा हुआ था। तीन बरामदों व छह गोलाकार कमरे तो प्राचीन शिल्प कला का अनूठा उदाहरण हैं। दो दर्जन सीढिय़ों पर चढऩे के बाद फर्श एवं जालियां लगी हैं। लकड़ी के केबिन में पाइप पर पंखा लगाया गया, जिसमें हवा का वेग व दिशा का पता चलता। बेरोमीटर, घडिय़ां और मुर्गानुमा यंत्र भी था। अब मौसम विज्ञान केन्द्र की मीनार ही बची है। इसमें उपकरणों की किसी को कोई जानकारी नहीं है।

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