scriptबचने के लिए अपने ही यौनशोषण की दी दलील | Argued for his own sexual exploitation to escape | Patrika News

बचने के लिए अपने ही यौनशोषण की दी दलील

locationजयपुरPublished: Jan 29, 2020 01:17:50 am

Submitted by:

Vijayendra

निर्भया कांड: सुप्रीम कोर्ट में मुकेश की याचिका पर सुनवाई पूरी, फैसला आज

Daughter-in-law had committed suicide, mother-in-law and brother-in-law sentenced by court

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नई दिल्ली. फांसी के लिए मुकर्रर एक फरवरी की तारीख से चार दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार निर्भया के चार दोषियों में से एक मुकेश सिंह की याचिका पर सुनवाई पूरी कर ली।
मुकेश ने अपनी दया याचिका खारिज करने के राष्ट्रपति के रामनाथ कोविंद के फैसले को चुनौती दी है। जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ बुधवार को अपना फैसला सुनाएगी।
मुकेश की ओर पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश ने सनसनीखेज दावा करते हुए आरोप लगाया कि मुकेश को जेल में यौन शोषण और क्रूरता से गुजरना पड़ा। उनके वकील ने आरोप लगाया कि तिहाड़ जेल में मुकेश से मामले के दूसरे दोषी अक्षय के साथ जबरन यौन संबंध बनवाए गए। वकील ने मुकेश की ओर से कहा कि कोर्ट ने मुझे केवल मौत की सजा सुनाई है…क्या मुझे बलात्कार की सजा सुनाई गई है?’ मैं पांच सालों से सो नहीं पाया हूं। जब किसी तरह सो जाता हूं को मुझे मौत और पिटाई के सपने आते हैं।
दस्तावेज न भेजने की भी दी दलील : वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश ने कहा कि दया याचिका पर फैसला लेने के लिए राष्ट्रपति के समक्ष सभी जरूरी दस्तावेज पेश नहीं किए गए। ट्रायल कोर्ट के फैसले को राष्ट्रपति को नहीं भेजा गया। इस दलील पर सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने आपत्ति जाहिर करते हुए कहा गया कि सभी दस्तावेज राष्ट्रपति को दिए गए थे। जवाब में अंजना प्रकाश ने दावा किया कि आरटीआइ से मिले जवाब इसका उल्टा बता रहे हैं।
नियम विरुद्ध एकांत कारावास में रखने का आरोप : मुकेश की ओर से आरोप लगाया गया कि मामले में एकांत कारावास के मानदंडों का उल्लंघन किया गया। उसके वकील ने कहा कि दया याचिका अस्वीकृत होने के बाद ही एकांत कारावास में रखा जा सकता है, लेकिन इस मामले में दोषियों को पहले अकेले-अकेले सेल में डाल दिया गया।
राष्ट्रपति के फैसले पर उठाए सवाल
मुकेश के वकील ने केहर सिंह बनाम भारत संघ (1989) और शत्रुघ्न चौहान के मामलों का हवाला देते हुए दलील दी कि राष्ट्रपति की शक्ति भी मानवीय दोषयुक्त या अशुद्ध हो सकती है। यहां तक कि सबसे प्रशिक्षित दिमाग भी भावुक हो सकता है। जब बात जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से इनकार करने की हो तो उसे दूसरी उच्चाधिकारी के अधीन किया जाना चाहिए।
दया राष्ट्रपति का विशेषाधिकार
एसजी तुषार मेहता ने मुकेश की दलीलों को विरोध करते हुए कहा कि जेल में यौन शोषण, अभद्र व्यवहार या अकेले में रखा जाना दया देने के आधार नहीं हो सकते। उन्होंने मृत्युदंड में देरी के चलते उससे होने वाले अमानवीय प्रभाव को कम करने के लिए दया याचिका पर तेजी से फैसला लिया गया। दया याचिका पर फैसला करना राष्ट्रपति का विशेषाधिकार है। उसे तेजी से फैसला लेने के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।
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