जयपुर

तब सीमित संसाधनों से दी करारी हार, आज कई गुणा पैनी हमारे हमले की धार

— लोंगेवाला जैसी जुर्रत आज करे पाक तो कई किलोमीटर पहले ही कर देंगे नेस्तनाबूत— सैन्य तैनाती, आधारभूत ढ़ांचा विकास, तकनीक और बॉर्डर कनेक्टिविटी में बड़े परिवर्तन से आज हमारी सेना है बेजोड़

जयपुरDec 08, 2021 / 09:10 pm

Pankaj Chaturvedi

सिर्फ वेब के लिए…तब सीमित संसाधनों से दी करारी हार, आज कई गुणा पैनी हमारे हमले की धार

जयपुर/जैसलमेर . 1971 के युद्ध में 4 से 7 दिसंबर तक पश्चिमी सीमा पर चले युद्ध में जैसलमेर की लोंगेवाला पोस्ट तक पाकिस्तानी सेना अपने तोपखाने समेत चढ़ आई। हालांकि चौकी की रखवाली कर रही 23, पंजाब की महज एक कंपनी ने दो दिन चले युद्ध में हजारों पाक सैनिकों को भागने पर मजबूर कर दिया। लड़ाई में हमारे संसाधन सीमित थे, लेकिन हमारे फौजियों ने जज्बे से जंग जीती। आज पश्चिमी सीमा पर थार के विशाल मरुस्थल में हालात अलग हैं। इस युद्ध के बाद से अब तक ना सिर्फ हमारे फौजियों का जज्बा, बल्कि देश में बढ़े सामरिक संसाधनों ने हमारे हमले और प्रतिेरक्षा, दोनों की धार को कई सौ गुणा पैना कर दिया है। आज अगर पाकिस्तान ऐसी जुर्रत करे तो दिन नहीं, बल्कि मिनटों में हम उसे मुंहतोड़ जबाव देने की हैसियत रखते हैं।
सीमा की रखवाली, पूरी नई कमान

राजस्थान का सीमावर्ती इलाका पहले जहां दक्षिणी कमान के अधीन आता था, लेकिन 2005 में जयपुर में सेना के शीर्ष सैन्य विन्यास के तौर पर पूरी एक नई कमान स्थापित की गई। पश्चिमी सीमा पर अब दक्षिण कमान के साथ ही राजस्थान से पंजाब तक सुरक्षा का दायित्व अब दक्षिण पश्चिम कमान के पास भी है। नई कमान में दो कोर हैडक्वाटर्स के अधीन इन्फेन्ट्री, आर्मर्ड और एयर डिफेन्स क्षमता वाले सैन्य विन्यास हर पल तैयार हैं। दोनों कमानों की होल्डिंग कोर आपसी तालमेल से पूरी पश्चिमी सीमा क्षेत्र के चप्पे—चप्पे पर निगरानी बनाए हैं।
अब नहीं मजबूरी, हाइवे पर भी विमान

लोंगेवाला में नाइट फ्लाइंग क्षमता नहीं होने के बावजूद हमारे हंटर विमानों ने पाक टैंकों की कब्रगाह बना दी, लेकिन अब हमारे सुखाई, रफाल जैसे अत्याधुनिक विमान हर सुविध से लैस हैं। पश्चिमी सीमा से महज 40 किलोमीटर पर ही सेना ने हाल ही एनएच-925 के गांधव-बाखासर सेक्शन पर 3 किलोमीटर लम्बी इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड (ईएलएफ) पर विमान उतार कर आधारभूत ढ़ांचे की सामरिक ताकत का उदाहरण भी प्रस्तुत किया। यानि कोई आपात स्थिति या युद्ध में एयर स्ट्रिप पर हमले की स्थिति हो तो हम सड़क से ही उड़ान भरने की क्षमता रखते हैं। पहले ये सुविधा नहीं थी।
भारतमाला: हर वक्त सेना के सुगम मूवमेंट की तैयारी

भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत सरहदी इलाके में बाड़़मेर के मुनाबाव से लेकर जैसलमेर के तनोट मार्ग तक करीब 300 किमी से अधिक लंबी सड़क बन चुकी है। जैसलमेर से म्याजलार तक का कार्य भी शुरू होने को है। आधारभूत ढ़ांचे में इस विकास से अब सैन्य टुकड़ियों का पूरे सीमा इलाके में आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक मूवमेंट हो सकता है। पहले सरहद तक सपाट और उन्नत सड़क की सुविधा नहीं थी।

घातक जुगलबंदी: नए हथियार और उपकरण
पहले और आज के समय में सेना की कार्यप्रणाली में तकनीक ने बड़ा बदलाव किया है। आज पूरे सरहद क्षेत्र में इलेक्ट्रिॉनिक सर्विलांस, सैटेलाइट इमेजरी और इंटरसेप्शन तकनीक के चलते किसी भी सूरत में संभव नहीं कि दुश्मन हमारे इतने करीब इतने बड़े अमले के साथ पहुंच जाए। 1971 के बाद बोफोर्स जैसे हथियार जमीनी लड़ाई में तीस किलोमीटर पहले ही दुश्मन की धज्जियां उड़ाने की क्षमता रखती हैं।

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