script‘मानो हाउस ऑफ लॉर्डस में बादशाह का भाषण सुन रहे थे’ | as like as badsah's speech in house of lords | Patrika News

‘मानो हाउस ऑफ लॉर्डस में बादशाह का भाषण सुन रहे थे’

locationजयपुरPublished: Sep 14, 2021 02:13:19 am

Submitted by:

Shailendra Agarwal

पहली विधानसभा में राजप्रमुख के अंग्रेजी में अभिभाषण पर मचा था बवालपिछले दो दशक में हिन्दी की अनिवार्यता का मसला सदन से लगभग गायब

Hindi Diwas

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जयपुर। हिन्दी को बढ़ावा देने की आज भले ही बड़ी-बड़ी बातें हो रहीं हो लेकिन राज्य विधानसभा का इतिहास देखें तो पहली विधानसभा में ही राजप्रमुख के अंग्रेजी में दिए अभिभाषण को लेकर खासा बवाल उठ खड़ा हुआ था। तब नेता प्रतिपक्ष इतने खफा हुए कि अपनी बारी आने पर उन्होंने टिप्पणी कर डाली कि ‘हम मानो हाउस ऑफ लॉर्डस में बैठे बादशाह का भाषण सुन रहे हैं।’ बाद मेें उन्होंने सरकार की इस बात को लेकर खिंचाई की कि सदन में आधे से ज्यादा सदस्य अंग्रेजी नहीं जानते ऐसे में क्या सरकार की ड्यूटी नहीं थी कि कम से कम अभिभाषण के हिन्दी अनुवाद की व्यवस्था करती? हालांकि बाद में नेता प्रतिपक्ष जसवंत सिंह के आरोप पर मुयमंत्री टीकाराम पालीवाल ने सफाई दी कि अभिभाषण के तत्काल बाद ही सदस्यों को हिन्दी अनुवाद भी उपलब्ध करा दिया था।
29 मार्च 1952 को पहली विधाानसभा का पहला सत्र शुरू हुआ था। तीब राज्यपाल की जगह राजप्रमुख होते थे। जयपुर के तत्कालीन महाराजा सवाई मानसिंह ने राजप्रमुख के रूप में 31 मार्च को उदघाटन भाषण के रूप में जो अभिभाषण दिया, वह अंग्रेजी में था। कई सदस्यों को अंग्रेजी में यह उद्बोधन नागवार गुजरा और एक अप्रेल 1952 को राजप्रमुख के अभिभषण पर हुई बहस के दौरान यह टीका टिप्पणी की गईं। हिन्दी को बढ़ावा देने की बातें कितनी कागजी साबित हुईं इसका अंदाजा इस बात से ही लग सकता है कि सरकारी कामकाज में हिन्दी को बढ़ावा देने को लेकर संकल्प पेश करने से लेकर सामान्य वाद—विवाद सदन में कई बार हुआ, पर इस दिशा में ठोस काम नहीं हो पाया। विधानसभा वेबसाइट पर उपलब्ध कार्यवाही ब्यौरे का मोटा आकलन किया जाए तो पहली विधानसभा से अब तक करीब 225 सदस्यों ने हिन्दी को लेकर अपनी बात कही। 10 वीं विधानसभा तक चर्चाओं का दौर भले ही जारी रहा, लेकिन पिछले दो दशक से तो सदन में हिन्दी की पैरवी करने वालों की संख्या नगण्य होती ही जा रही है। अब तक हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए निजी विधायी कार्य के रूप में तीन बार संकल्प लाया गया। जब बहस हुई तो सरकार और सत्तापक्ष ने सकारात्मक रूख जरूर दिखाया। एक बार तो संपूर्ण सरकारी कामकाज हिंदी में ‘यथाशीघ्र’ करने का संकल्प पारित भी किया गया। उस समय यथाशीघ्र शब्द पर खासी बहस भी हुई, लेकिन यह आश्वासन ही मिल पाया कि जल्द ही होगा सरकार ने समयसीमा में बंधने से साफ इंकार कर दिया।
विधानसभा———————कितने सदस्य बोले (अनुमानित)
पहली———————————10
दूसरी —————————— 60
तीसरी—————————— 30
चौथी—————————— 20
पांचवीं———————— 15
छठवीं————————14
सातवीं———————13
आठवीं———————12
नौंवी————————20
दसवीं——————8
ग्यारहवीं———— 1
बारहवीं——————13
तेरहवीं——————2
चौदहवीं—————3
मौजूदा विधानसभा———2
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