इन चारों महीनों की पगतिपदा यानी एकम से नवमी तक के काल को नवरात्रि कहा जाता है। चैत्र माह की नवरात्रि सबसे बड़ी मानी जाती है। वहीं अश्विन महीने की नवरात्रि सबसे छोटी होती है। जहां तुलजा भवानी बड़ी माता है तो चामुण्डा माता छोटी माता है। बड़ी नवरात्रि को बसंत नवरात्रि और छोटी नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं। प्रथम संवत शुरू होते ही बसंत नवरात्रि और दूसरी शरद नवरात्रि, दोनों में 6 महीने का अंतर पड़ता है।
अश्विन मास की नवरात्रि ज्यादा प्रसिद्ध है। पूरे देश में इस दौरान उत्सव सा माहौल रहता है। लोग गरबा खेलते हैं। कन्याओं को भोजन करवाते हैं। नवरात्रि समाप्त होते ही त्यौहारों का दौर शुरू हो जाता है।
आषाढ़ और पौष माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। दोनों ही नवरात्रियां साधना के लिए महत्वपूर्ण मानी गई है। दोनों नवरात्रियां युक्त संगत होती हैं, क्योंकि ये दोनों नवरात्रि अयन के पूर्व संख्या संक्रांति के हैं। यही नवरात्रि अपने आगामी नवरात्रि की संक्रांति के साथ-साथ मित्रता वाले भी हैं, जैसे आषाढ़ संक्रांति मिथुन व आश्विन की कन्या संक्रांति का स्वामी बुध हुआ और पौष संक्रांति धनु और चैत्र संक्रांति मीन का स्वामी गुरु है।
यही वजह है कि चारों नवरात्रि वर्ष में 3-3 माह बाद पड़ती हैं। कुछ लोग मानते हैं कि पौष माह अशुद्ध माह नहीं हैं और माघ में नवरात्रि आती है। लेकिन चैत्र की तरह ही पौष का महीना भी निषेध वाला होता है। इसलिए प्रत्यक्ष चैत्र, गुप्त आषाढ़, प्रत्यक्ष अश्विन और गुप्त पौष दुर्गा माता की सेवा, अर्चना और उपासना करने वाले हर व्यक्ति को इच्छित फल प्राप्त होते हैं।