जिन चुनौतियों का सामना गहलोत सरकार को करना है उनमें तीन प्रमुख काम भी है, जिन पर पार पाना गहलोत सरकार के लिए किसी बड़े संकट से कम नहीं है। इन प्रमुख चुनौतियों में तीन विधानसभा उपचुनाव, राजनीतिक नियुक्तियां और कैबिनेट विस्तार हैं। सरकार बनने के बाद से ही राजनीतिक नियुक्तियों और कैबिनेट विस्तार और फेरबदल की मांग लंबे समय से चली आ रही है।
तीन सीटों पर उपचुनाव
दरअसल गहलोत सरकार के लिए प्रदेश में अप्रेल-मई में होने वाले तीन विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। क्योंकि तीन में से दो सीटों पर कांग्रेस का कब्जा था। ऐसे में इन दो सीटों को बचाने में कांग्रेस कामयाब हो पाती है तो इसे सरकार के कामकाज पर मतदाताओं की मुहर माना जाएगा। ये तीन सीटें सहाड़ा, सुजानगढ़ और राजसमंद हैं। सहाड़ा से कांग्रेस के कैलाश त्रिवेदी और सुजानगढ़ से दिग्गज नेता मास्ट भंवरलाल मेघवाल विधायक थे।
वहीं राजसमंद से बीजेपी की किरण माहेश्वरी विधायक थी, तीनों के निधन के चलते इन तीन सीटों पर उपचुनाव होना है। हालांकि इससे पहले अक्टूबर 2019 में मंडावा और खींवसर में हुए उपचुनाव में कांग्रेस मंडावा सीट भाजपा से छीनी थी।
कैबिनेट विस्तार-फेरबदल
वहीं दूसरी ओर सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल है, माना जा रहा है कि जनवरी या फरवरी माह में मंत्रिमंडल फेरबदल होना है। मंत्रिमंडल में 9 मंत्रियों की जगह रिक्त हैं, साथ ही कई मंत्रियों को बदला भी जाएगा। ऐसे में सीएम गहलोत के सामने चुनौती ये है कि आखिर किसी मंत्री बनाए और किसी नहीं और किसे मंत्रिमंडल में जगह दी जाए।
सूत्रों की माने तो सियासी संकट के समय सरकार का साथ देने वाले विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल करने का लॉलीपॉप दिया गया था। कई विधायकों को उम्मीद है कि उन्हें मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी। ऐसे में जिन विधायकों को सत्ता का लॉलीपॉप दिया गया है, मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करने पर उनकी नाराजगी का सामना सरकार को करना पड़ सकता है।
राजनीतिक नियुक्तियां
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को राजनीतिक नियुक्तियों देने की मांग चली है। राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार दो साल से किया जा रहा है और प्रदेश में अभी जितनी भी संवैधानिक पदों पर नियुक्तियां हुई हैं उनमें ब्यूरोक्रेसी के बड़े नौकरशाहों को नवाजा गया है। इसे लेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं में सरकार को लेकर अंदरखाने नाराजगी भी है।
प्रदेश में ब्लॉक, जिला और प्रदेश स्तर पर कुल मिलाकर 8 हजार राजनीतिक नियुक्तियां होनी हैं जबकि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की संख्या लाखों में हैं। ऐसे में राजनीतिक नियुक्तियों में किसे एडजस्ट किया जाए किसी नहीं इसे लेकर भी सरकार दुविधा में है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सरकार को अपने तीसरे साल के कार्यकाल के दौरान तीन प्रमुख चुनौतियों के साथ-साथ विपक्ष से भी निपटना है।