सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया यह फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद का पटाक्षेप करते हुए विवादित भूमि श्रीराम जन्मभूमि न्यास को सौंपने और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में ही उचित स्थान पर पांच एकड़ भूमि देने का निर्णय सुनाया। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित भूमि श्रीराम जन्मभूमि न्यास को दी जाएगी तथा सुन्नी वक्फ को बोर्ड अयोध्या में ही पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन उपलब्ध कराई जाए। गर्भगृह और मंदिर परिसर का बाहरी इलाका राम जन्मभूमि न्यास को सौंपा जाए। पीठ ने कहा है कि विवादित स्थल पर रामलला के जन्म के पर्याप्त साक्ष्य हैं और अयोध्या में भगवान राम का जन्म हिन्दुओं की आस्था का मामला है और इस पर कोई विवाद नहीं है। शीर्ष अदालत ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को राम मंदिर बनाने के लिए तीन महीने में ट्रस्ट बनाने के निर्देश दिए हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया था यह फैसला
अयोध्या विवाद पर इससे पहले बड़ा फैसला 30 सितंबर 2010 को आया था। उस समय इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन जजों की पीठ ने 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया था। मुस्लिमों, रामलला और निर्मोही अखाड़े के बीच यह जमीन बांटी गई थी। हालांकि पक्षकार इस फैसले से संतुष्ट नहीं हुए और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 285 पन्नों के अपने फैसले में कई अहम टिप्पणियां की थी। अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि विवादित स्थल पर मुस्लिमों, हिंदुओं और निर्मोही अखाड़े का संयुक्त मालिकाना हक है। इसके नक्शे को आयुक्त शिवशंकर लाल ने तैयार किया था। उन्हें कोर्ट ने ही नियुक्त किया था। कोर्ट के फैसले के अनुसार तीन गुंबद वाले ढांचे के केंद्रीय गुंबद के नीचे वाला स्थान हिंदुओं को मिला। यहीं रामलला की मूर्ति है। निर्मोही अखाड़े को राम चबूतरा और सीता रसोई सहित उसका हिस्सा मिला। जिस स्थान पर मुसलमान नमाज पढ़ते थे, इसलिए उन्हें जमीन का तीसरा हिस्सा दिया गया।