कार सीट को नो
इन दिनों पेरेंट्स के बीच कार सीट हॉट टॉपिक बना हुआ है। एक रिसर्च में पाया गया है कि बच्चे को दो साल की उम्र से पहले कार सीट पर अकेले नहीं बैठाना चाहिए। इससे उसे चोट लगने का खतरा रहता है। कार में बच्चों के लिए लगने वाली 59 फीसदी सीट सही मानक की नहीं होती है। बच्चों को रीयर सीट पर बैठाने से उन्हें हेड और स्पाइनल इंजरी होने का खतरा ज्यादा रहता है। यह आंकड़ा पेरेंट्स को चेताने के लिए काफी है। हालांकि कई पेरेंट्स का इस पर अपना अलग विचार है। उनका मानना है कि चाइल्ड कार सीट से बच्चा सेफ रहता है इसलिए सावधानी बरतें।
इन दिनों पेरेंट्स के बीच कार सीट हॉट टॉपिक बना हुआ है। एक रिसर्च में पाया गया है कि बच्चे को दो साल की उम्र से पहले कार सीट पर अकेले नहीं बैठाना चाहिए। इससे उसे चोट लगने का खतरा रहता है। कार में बच्चों के लिए लगने वाली 59 फीसदी सीट सही मानक की नहीं होती है। बच्चों को रीयर सीट पर बैठाने से उन्हें हेड और स्पाइनल इंजरी होने का खतरा ज्यादा रहता है। यह आंकड़ा पेरेंट्स को चेताने के लिए काफी है। हालांकि कई पेरेंट्स का इस पर अपना अलग विचार है। उनका मानना है कि चाइल्ड कार सीट से बच्चा सेफ रहता है इसलिए सावधानी बरतें।
फूड एलर्जी
पहली बार पैरेंट्स बने हैं तो आपको इसका खास खयाल रखना होगा कि आपके बच्चे का पेट खराब है या उसे कोई गंभीर फूड एलर्जी हुई है। इसे बिल्कुल भी अनदेखा न करें। पैरेंटï्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि फीडिंग या कुछ भी खाने के बाद बच्चे को किसी भी तरह के बॉडी रेशेज, उल्टी, सांस लेने में दिक्कत न हो। इसके साथ ही बच्चे के वेस्ट के कलर पर भी नजर रखनी चाहिए। अगर कुछ भी अजीब लगे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर की सलाह के आधार पर ही अपने बच्चे का डाइट चार्ट तैयार करें और उसे किसी भी तरह की फूड एलर्जी से बचाएं।
पहली बार पैरेंट्स बने हैं तो आपको इसका खास खयाल रखना होगा कि आपके बच्चे का पेट खराब है या उसे कोई गंभीर फूड एलर्जी हुई है। इसे बिल्कुल भी अनदेखा न करें। पैरेंटï्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि फीडिंग या कुछ भी खाने के बाद बच्चे को किसी भी तरह के बॉडी रेशेज, उल्टी, सांस लेने में दिक्कत न हो। इसके साथ ही बच्चे के वेस्ट के कलर पर भी नजर रखनी चाहिए। अगर कुछ भी अजीब लगे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर की सलाह के आधार पर ही अपने बच्चे का डाइट चार्ट तैयार करें और उसे किसी भी तरह की फूड एलर्जी से बचाएं।
नर्सिंग पिलो पर न सुलाएं नर्सिंग पिलो से मां अपने बच्चे को काफी सहज होकर फीड करा पाती है, लेकिन उसके बाद बच्चे को उसी के सहारे सुला देना सुरक्षित नहीं है। ज्यादा देर तक बच्चे को नर्सिंग पिलो पर सोता हुआ छोड़ देने से उसे सफोकेशन हो सकती है। बच्चे को समतल बिस्तर पर जितनी अच्छी नींद आती है, उतना आराम उसे सॉफ्ट टॉय, नर्सिंग पिलो या फिर कंबल पर नहीं मिलता है। नई माएं नर्सिंग पिलो का उपयोग तो करें, लेकिन बच्चे को उस पर न छोड़ें।
जल्दी न दें ठोस आहार
कई पेरेंट्स बच्चों को बहुत जल्द ठोस आहार देने लगते हैं, लेकिन इसमें जल्दबाजी अच्छी नहीं है। छह महीने के बाद ही बच्चे को ठोस आहार देना शुरू करें। इससे पहले बच्चे की पाचन क्रिया बहुत धीमी होती है।
कई पेरेंट्स बच्चों को बहुत जल्द ठोस आहार देने लगते हैं, लेकिन इसमें जल्दबाजी अच्छी नहीं है। छह महीने के बाद ही बच्चे को ठोस आहार देना शुरू करें। इससे पहले बच्चे की पाचन क्रिया बहुत धीमी होती है।