जयपुर

राजस्थान के धोरों में हो रही केले की खेती,किसानों ने टिश्यू कल्चर से शुरू की केले की खेती

टिश्यू कल्चर ने दी एक नए कृषि व्यवसायीकरण की परंपरा,केले की उपज से हो रही मुनाफे की फसल

जयपुरOct 15, 2019 / 08:50 am

HIMANSHU SHARMA

Farmers earning profitable from unique farming of banana

जयपुर
मांडलगढ़ के बीगोद क्षेत्र के छोटे से गांव बीड़ का खेड़ा में किसान ने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वह कर दिखाया जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। यहां के एक किसान ने ढाई बीघा जमीन पर केलों का बाग लगा दिया और अच्छी कमाई कर रहे हैं। आमतौर पर केले के ऐसे खेत या बाग गुजरात, महाराष्ट्र में दिखाई देते हैं, लेकिन जब मांडलगढ़ क्षेत्र में देखेंगे तो आंखों पर यकीन नहीं होगा कि राजस्थान में भी ऐसा हो सकता है। किसान ने यह सब सरकार से बिना कोई अनुदान लिए करके दिखाया है। बीड़ का खेड़ा के किसान सोहनलाल सुखवाल ने बताया कि पहले सामान्य खेती करते थे। लेकिन, हर साल घाटे का सौदा साबित हो रहा था। इस बीच महाराष्ट्र में केलों की खेती देखी। उन्होंने केले की खेती करने की सोची और बारह सौ टिशू कल्चर के केले के पौधे लाए और खेती शुरू की। शुरूआत में थोड़ी परेशानी आई, लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ आसान लगने लगा। दस माह में ही पौधे फल देने जैसे हो गए। क्षेत्र में पहली बार केले की खेती देख गांव के और किसान इससे प्रेरित हुए और उन्होंने भी केले की खेती शूरू कर दी है।
दस माह में फल देता है एक पौधा
किसान सोहनलाल ने बताया कि महाराष्ट्र से टिशू कल्चर के बारह सौ पौधे मंगवाकर ढाई बीघा में लगाएं तो करीब एक वर्ष बाद फल का उत्पादन शुरू हो गया जो तीन वर्ष तक चलेगा। एक पौधे की डाल पर 30 से 35 किलोग्राम वजन तक केले लग रहे है। केलों का स्वाद महाराष्ट्र के केलो से भी बेहतर है। भीलवाड़ा मंडी में केले बेचना शुरू कर दिया गया जो 10 से 12 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से बिक रहा है। फसल को देखते हुए इस वर्ष बगीचे से करीब 300 क्विंटल केले का उत्पादन हुआ है। गत वर्ष मई माह में पौधे लगाएं थे। आमतौर पर केले के पौधे जनवरी व फरवरी माह में लगते है परन्तु समय पर पौधे नही मिलने से मई माह में पौधे लगाए गए। अतिवृष्टि के बावजूद केले की बम्पर फसल से किसान सुखवाल रोमांचित है वही क्षेत्र के अन्य किसान हैरान है। इससे पहले सिरोही के छोटे से गांव जीरावल में इस तरह का नजारा देखने को मिला था जहां के किसानों ने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद यहां केलों का बाग लगा दिया था और अब हर साल लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं। इन गांवों के कई किसानों ने टिश्यू कल्चर केले की खेती को अपनाकर एक नए कृषि व्यवसायीकरण की परंपरा की शुरुआत की है। माना जाता है कि केले की खेती पर प्रति एकड़ एक लाख रुपए तक की लागत आती है और ढाई लाख रुपए तक शुद्घ मुनाफा होता है। आपको बता दे कि टिश्यू कल्चर एक ऐसी वैज्ञानिक पद्धति है, जिसमें केले के पौधे को बायो लैब में तैयार किया जाता है और फिर खेत में रोपा जाता है। टिश्यू कल्चर से तैयार केले के पौधे वायरस और अन्य रोगों से मुक्त होते हैं। केले की फसल का समय 10 माह का होता है, जिसमें प्रति वर्ष जुलाई माह में नए पौधे लगाए जाते हैं और अगले वर्ष अक्तूबर के आसपास फलों के गुच्छे तैयार हो जाते हैं।

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