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राजस्थान का रण: बाड़मेर को तेल की नहीं पानी की चिंता, अगली बरसात तक कैसे बसर होगी

locationजयपुरPublished: Oct 13, 2018 12:42:17 am

Submitted by:

abdul bari

अमित शर्मा की रिपोर्ट

World Disaster Reduction-Day Today

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जोधपुर को पीछे छोड़ आरा से बाड़मेर की सरहद में प्रवेश हुआ। सड़क के दोनों ओर बालू के टीले, कहीं आकड़े और खेजड़ी तो कहीं सिर्फ बालू। नेशनल हाईवे-112 पर दोनों ओर नए पेड़ भी लगे हैं मगर अधिकांश सूख गए हैं। अक्टूबर में यहां 40 से 42 डिग्री तापमान बना हुआ है। धूल भरी आंधियां जून का एहसास करा रही हैं। कल्याणपुर से करीब 15 किलोमीटर अंदर गांव नागणा की ओर रुख किया। यहां नागणेच्या माता के दर्शन कर आसपास के लोगों से चुनावी बात शुरू हुई। लोग मंदिर के लिए विकास कामों से खुश हैं। नई सड़क चमचमाती हुई दिखती है। गांव वाले बस त्रस्त हैं तो पानी की किल्लत से। यह रेगिस्तानी इलाका है। बारिश इस बार हुई नहीं। सरकार तो जाने कब गिरदावर कराएगी, मगर इलाके के लोगों ने कह दिया ‘इस बार अकाल है’। आगे पट्टू, गडसी का बाड़ा, उमरलाई, धांधू, धधवा तक सूखा ही सूखा। छोटे-बड़े सभी जल स्रोत सूखे हुए हैं। बालोतरा से पहले पचपदरा रुकने और रिफाइनरी देखने की इच्छा थी। मैन रोड से कोई आठ किलोमीटर रिफाइनरी तक पहुंचे तो मौजूदा और पिछली सरकार के ढुलमुल रवैये के नतीजे साफ नजर आए। कांग्रेस ने सोनिया गांधी से शिलान्यास कराया था, बीजेपी ने पीएम मोदी से कार्य शुभारंभ। दो-दो लाखों के खर्च वाले आयोजनों के बावजूद मौके पर काम कछुआ रफ्तार में ही दिखा। आस-पास के लोगों में गुस्सा भरपूर दिखा। कारण क्रूड ऑयल को पाइपों से रिफाइन करने के लिए गुजरात ले जाना पड़ रहा। समय से काम होता तो प्रदेश को अरबों-खरबों में फायदा होता। थोड़ा आगे बढ़े तो बागुंड़ी रुके। कैर-सांगरी और बाजरे की रोटी खाते हुए ढाबा चलाने वाले नींबाराम से बात हुई। उन्हें सरकार से कोई गिला नहीं, किसी पार्टी से कोई उम्मीद नहीं। पानी को लेकर परेशान हैं। बालोतरा से 1200 रुपए में टैंकर मंगाकर ढाबे में काम चला रहे हैं। किसान चैनाराम मौजूदा सरकार के काम-काज पर लाल-पीले हो गए। कारण यह कि भामाशाह कार्ड है, फिर भी मुफ्त में इलाज नहीं हुआ। अनपढ़ हैं, इसलिए यह नहीं बता पाए कि गलती किसकी थी।
आगे चले, बायतु पहुंचे। रेलवे स्टेशन के बाहर काफी हलचल थी। लोगों की एक ही मांग थी, पानी। अकाल ने लोगों के होश उड़ा रखे हैं, अगली बरसात तक कैसे बसर होगी, अभी भी सूरज आग बरसा रहा है। कुछ आगे चले तो कवास पर रुके। यह वही इलाका है जहां 2006 में बाढ़ आई थी, रेगिस्तान में बाढ़ ने सबको चौंका दिया था। कवास से करीब १० किलोमीटर अंदर नगाना गांव है। पूरे राजस्थान को इस गांव का शुक्र मनाना चाहिए कि इस गांव की बदौलत हम (राज्य सरकार) हर रोज 15 करोड़ कमा रहे हैं और देश (केन्द्र सरकार) 35 करोड़। जी हां, यहीं एमपीटी लगा है, यानी मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल। इस धरती को देख जी जितना खुश हुआ, यहां के किसानों और रहवासियों से बात कर उतना ही उदास। किसान अर्जुन की पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं। विषैली गैसें, 24 घंटे ध्वनि प्रदूषण और वेस्ट मैटीरियल से बंजर होती भूमि यहां के लोगों की सबसे बड़ी समस्या है। मगर यहां कोई कोलकाता के सिंगुर जैसा आंदोलन करने वाला नहीं। कहते हैं कि पहला तेल कुआं मंगलाराम के खेत पर खुदा था इसलिए नाम मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल पड़ा।
कवास से बाड़मेर आते समय सूखा साथ चलता रहा। उत्तरतलाई एयरबेस भी यहीं है। सुना है जल्दी जैसलमेर की तरह यहां भी यात्री विमान सेवा शुरू हो सकती है लेकिन तेल कंपनियों के अलावा कोई दूसरे यात्री मिल पाएंगे, इसमें बाड़मेरवासियों को भी संशय है। बाड़मेर शहर अब पहले सा नहीं रहा। मॉल भी है, डॉल्बी साउंड मल्टीप्लेक्स भी, कई फ्लाइओवर बन गए हैं। मगर आज भी लोगों को बीमार होने पर अहमदाबाद जाना पड़ता है। इलाज के लिए कोई बड़ा विश्सनीय अस्पताल नहीं है।
सात विस सीटों वाले बाड़मेर में केवल एक सीट कांग्रेस के खाते में है। पिछले चुनाव में ठीक उलटा था। शहर के चुनावी पंडित कहते हैं, इस बार भी ऐसा ही रहेगा, मगर उलट। मानवेन्द्र सिंह की चुनावी करवट भी असर डालती दिख रही है। बीजेपी छोडऩे से शिव इलाके से लेकर पूरे बाड़मेर तक लोग खुश हैं। मगर कांग्रेस में जाने की चर्चाओं से जाट नाराज। ऐसे में चुनाव दिलचस्प ही रहेंगे। हनुमान बेनीवाल का बसपा से गठबंधन होता है तो यहां समीकरण और बिगड़ सकते हैं।
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