आगे चले, बायतु पहुंचे। रेलवे स्टेशन के बाहर काफी हलचल थी। लोगों की एक ही मांग थी, पानी। अकाल ने लोगों के होश उड़ा रखे हैं, अगली बरसात तक कैसे बसर होगी, अभी भी सूरज आग बरसा रहा है। कुछ आगे चले तो कवास पर रुके। यह वही इलाका है जहां 2006 में बाढ़ आई थी, रेगिस्तान में बाढ़ ने सबको चौंका दिया था। कवास से करीब १० किलोमीटर अंदर नगाना गांव है। पूरे राजस्थान को इस गांव का शुक्र मनाना चाहिए कि इस गांव की बदौलत हम (राज्य सरकार) हर रोज 15 करोड़ कमा रहे हैं और देश (केन्द्र सरकार) 35 करोड़। जी हां, यहीं एमपीटी लगा है, यानी मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल। इस धरती को देख जी जितना खुश हुआ, यहां के किसानों और रहवासियों से बात कर उतना ही उदास। किसान अर्जुन की पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं। विषैली गैसें, 24 घंटे ध्वनि प्रदूषण और वेस्ट मैटीरियल से बंजर होती भूमि यहां के लोगों की सबसे बड़ी समस्या है। मगर यहां कोई कोलकाता के सिंगुर जैसा आंदोलन करने वाला नहीं। कहते हैं कि पहला तेल कुआं मंगलाराम के खेत पर खुदा था इसलिए नाम मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल पड़ा।
कवास से बाड़मेर आते समय सूखा साथ चलता रहा। उत्तरतलाई एयरबेस भी यहीं है। सुना है जल्दी जैसलमेर की तरह यहां भी यात्री विमान सेवा शुरू हो सकती है लेकिन तेल कंपनियों के अलावा कोई दूसरे यात्री मिल पाएंगे, इसमें बाड़मेरवासियों को भी संशय है। बाड़मेर शहर अब पहले सा नहीं रहा। मॉल भी है, डॉल्बी साउंड मल्टीप्लेक्स भी, कई फ्लाइओवर बन गए हैं। मगर आज भी लोगों को बीमार होने पर अहमदाबाद जाना पड़ता है। इलाज के लिए कोई बड़ा विश्सनीय अस्पताल नहीं है।
सात विस सीटों वाले बाड़मेर में केवल एक सीट कांग्रेस के खाते में है। पिछले चुनाव में ठीक उलटा था। शहर के चुनावी पंडित कहते हैं, इस बार भी ऐसा ही रहेगा, मगर उलट। मानवेन्द्र सिंह की चुनावी करवट भी असर डालती दिख रही है। बीजेपी छोडऩे से शिव इलाके से लेकर पूरे बाड़मेर तक लोग खुश हैं। मगर कांग्रेस में जाने की चर्चाओं से जाट नाराज। ऐसे में चुनाव दिलचस्प ही रहेंगे। हनुमान बेनीवाल का बसपा से गठबंधन होता है तो यहां समीकरण और बिगड़ सकते हैं।