अगर कोई किसान ऊसर-बंजर अनुपजाऊ जमीन से मुनाफा कमाना चाहते हैं तो वो बील की बागवानी शुरू कर सकते हैं। आपको बता दें कि केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान ने बील की कुछ ऐसी किस्में विकसित की हैं जो भूमि की विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अच्छा उत्पादन देती हैं। गुजरात में गोधरा स्थित केन्द्रीय बागवानी परीक्षण केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एके सिंह का कहना है कि कृषि वैज्ञानिकों ने गहन अनुसंधान के बाद बील की कुछ किस्में विकसित की हैं। इन किस्मों के नाम हैं गोमा यशी, थार दिव्य और थार नीलकंठ। आपको बता दें कि थार नीलकंठ एक उपोष्ण जलवायु पौधा है। इसे कंकरीली, खादर, ऊसर, बंजर जैसी भूमि में उगाया जा सकता है। जबकि गोमा यशी बौनी प्रजाति है, जिसमें कांटे नहीं होते हैं और उत्पादन भी ज्यादा होता है। बील की थार दिव्य किस्म अगेती किस्म है।
नीलकंठ है नई किस्म
इनमें सबसे नई किस्म जो आई है वो है नीलकंठ। ये बील की ऐसी किस्म है जो किसानों को ज्यादा उत्पादन देती है। इस किस्म के जरिए बील के दस साल के एक पेड़ से सौ किलों से ज्यादा बील फलों का उत्पादन मिल सकता है। इतना ही नहीं, नीलकंठ वैरायटी बाकी की किस्मों में ज्यादा मिठासभरी है। इसमें रेशे की मात्रा कम होने से भी यह काफी पसंद की जाती है।
अधिक उत्पादन पर है जोर
अनुपजाऊ भूमि को देखते हुए गुजरात के वेजलपुर स्थित केन्द्रीय शुष्क बागवानी परीक्षण संस्थान में पिछले कई सालों ने ऐसी वैरायटी तैयार करने पर अनुसंधान किया जा रहा है जो इस भूमि पर भी उत्पादन दे सकें। बील की थार नीलकंठ सबसे बेहतर किस्म है। इसके पौधे मध्यम आकार के होते हैं और पेड़ पर कांटे भी काफी कम होते हैं। इस किस्म में जो फल आता है, वो सामान्यतया डेढ़ किलो तक वजनी होती है। फलों का रंग पकने पर पीला हो जाता है जबकि आकार गोल, लंबा और आकर्षक होता है। अर्धशुष्क क्षेत्रों में बारानी खेती से आठ साल के पौधे से 75.67 किलोग्राम तक फल हर पेड़ से प्राप्त किए जा सकते हैं।