लेकिन वर्ष 2008 में विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट नहीं मिलने से नाराज़ होकर उन्होंने पार्टी छोड़कर बगावत कर दी थी। बागी होकर उन्होंने बाद में कांग्रेस पार्टी से नाता जोड़ लिया था। वे केकड़ी पंचायत समिति में प्रधान पद पर भी रह चुके हैं।
गौरतलब है कि शक्तावत की अजमेर के केकड़ी विधानसभा क्षेत्र में अच्छी-खासी राजनीतिक पैठ है। उन्होंने जब वर्ष 2008 में विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा छोड़ी थी तब उसे भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा था। शक्तावत के बदले भाजपा ने रिंकू कंवर को अपना प्रत्याशी घोषित किया था। लेकिन रिंकू कांग्रेस के रघु शर्मा से चुनाव हार गई थीं।
बगावती नेताओं से मजबूत होगी पार्टी!
तिवाड़ी के बाद शक्तावत की पार्टी में री-एंट्री से प्रदेश भाजपा और प्रदेश अध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया की रणनीति साफ़ ज़ाहिर हो रही है। बगावती नेताओं को फिर से जोड़ने की मंशा से ये साफ़ लग रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले ज़्यादा से ज़्यादा नाराज़ और बगावती नेताओं को पार्टी से जोड़ा जाएगा। अब नेताओं की घरवापसी से पार्टी मजबूत होगी या अंदरखाने विरोध के स्वर मुखर होंगे ये चर्चा का विषय बना हुआ है।
अजमेर में होगा ‘डैमेज कंट्रोल’!
भाजपा में शक्तावत की घर वापसी को पार्टी नेतृत्व के अजमेर में ‘डैमेज कंट्रोल’ के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल, हाल में हुए पंचायत चुनाव के दौरान अजमेर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं भंवर सिंह पलाड़ा और उनकी पत्नी पूर्व विधायक सुशील पलाड़ा को बगावत करने पर पार्टी ने उन्हें 6 वर्ष के लिए निष्कासित किया है। ऐसे में शक्तावत को पार्टी से जोड़ने को अजमेर में राजपूत समाज की ‘गणित’ बैठाने और नुकसान की भरपाई करने के लिहाज़ से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।