scriptमकर संक्रांति पर क्या बोले पुराने पतंगबाज | Nagaur: Old Kites Spoken On Makar Sankranti | Patrika News

मकर संक्रांति पर क्या बोले पुराने पतंगबाज

locationनागौरPublished: Jan 14, 2018 10:50:52 am

Submitted by:

shyam choudhary

– कुछ समय पहले तक कईं तक आसमान पतंगों से गुलजार रहता था

Nagaur News

Dangerous turning points on roads in chousla

नागौर.पतंगबाजी में भी बदलते वक्त ने बदलावा ला दिया है। आधुनिकता की जिन्दगी में अब पतंग उड़ाने के दिन कम ही रह गये है। कुछ समय पहले तक कईं तक आसमान पतंगों से गुलजार रहता था। मकर संक्रांति पर कुछ बुजुर्ग पतंगबाजों से पत्रिका की विशेष बातचीत
पहले पतंग आखातीज के दिन उड़ाई जाती थी, लेकिन वर्तमान में जयपुर , अहमदाबाद, गुजरात की तर्ज पर मकर संक्रांति के दिन उड़ाई जाने लगी। इसका कारण आखातीज पर शादियों का ज्यादा होना भी है। हम देखें तो पहले हम तड़के पांच बजे ही पतंग उड़ाने के लिए छत पर चले जाते थे। आजकल के बच्चे तो उस समय पर उठ भी नहीं पाते थे। समय का बदलाव हुआ पहले पतंग उड़ाने वाले कम लूटने वाले ज्यादा होते थे। आज के समय में उड़ाने वाले ज्यादा व लूटने वाले तो नजर ही नही आते। पहले बड़े-बुजुर्ग सभी साथ मिलकर पतंगों को उड़ाते थे, लेकिन अब तो कोई बुजुर्ग पतंग उड़ाता नजर भी नहीं आता। पतंग महोत्सव में भी एक बार भाग ले चुका हूं।
महेशचंन्द्र बोड़ा, वरिष्ठ नागरिक
न दिखता आसमान
अब तो आसमान तक खाली है, पहले तो आसमान नजर तक नहीं आता था। पहले 2 आने में पतंग आती थी। उस पंतग की आज कीमत 10 रुपए से ज्यादा है। बावजूद इसके उस प्रकार की क्वॉलिटी हमें नहीं मिल सकती। पहले कृष्णा 8 व सी 28 के मांझे आते थे जो आज के समय में बाजारों में दिखाई तक नहीं देते। हमारे समय में अगर किसी पंतग से पेज भी लड़ाते थे तो 3-4 चरखी यानी लगभग 4 हजार गज तक पेज होते, पतंग तक नजर नहीं आती। वर्तमान में युवा थोड़ी सी दूर पर पेज लड़ाते नहीं है और खेंचने लग जाते हंै। पतंगों को उड़ाने की इच्छा आज के युवाओं में नजर नहीं आती।
पंतगाबज ओमप्रकाश मारू
कारोबार पर पड़ा प्रभाव
मैंने अपने पिताजी से पंतग बनाना सीखा। पंतगे आज भी पुरानी दरों में मिल जाएगी, लेकिन वर्तमान समय में हर प्रकार की पतंग तावा, तुकली, फैंसी सहित कपड़े तक की मिल जाएगी लेकिन सभी का अलग-अलग पैसा लगता है। जीएसटी व नोटबंदी के कारण कारोबार पर काफी प्रभाव पड़ा है। पहले लोग मांझा अपनी पसंद के अनुसार खरीदारी करते थे, लेकिन वर्तमान में केवल खेंच या ढील का मांझा ही मांगते हैं। अब इनको कौन समझाए की मांझे के साथ पेज भी लड़ाना आना चाहिए। वर्तमान में मांझा बरेली से मंगवाया जाता है।
दुकानदार नसरूद्दीन पहलवान
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