पर्यावरण प्रदूषण बना बड़ा कारण सुबह कभी पक्षियों की चहचाहट से होती थी। लेकिन अब धीरे-धीरे गौरेया जैसी प्रजाती लुप्त होने की कगार पर है। इसका बड़ा कारण ये है कि अब न पेड़ बचे हैं और न ही उनका कीटों से होने वाला भोजन। दुषित होती वातावरण की आबोहवा, प्रदुषित भोजन व गायब होते कीटों से पक्षियों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। पक्षियों की कमी तो सबने महसूस की होगी, लेकिन उनको बचाने बहुत कम लोग ही आगे आए हैं।
पक्षी प्रेमियों में रोष पक्षी प्रेमियों का कहना है कि घटते जंगलों से पक्षियों का जीवन अस्त-व्यस्त होने लगा है। इससे उनकी संख्या में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। पेड़ों की घटती संख्या से पक्षियों को घरोंदे बनाने के लिए जगह तक नसीब नहीं हो पा रही है। इसके चलते पक्षी अपने घोंसले कहीं बिजली के खंबो पर उलझे तारों में बना रहे हैं, तो कहीं रोड़ लाइटों पर।
ऐसे आई पक्षियों पर आफत पेड़ों की घटती संख्या से भोजन के लिए संकट। खेतों में कीट नाशक दवाओं का प्रयोग। घरों में गौरेया के रहने के लिए कोई जगह नहीं।
ये करें उपाय-
घड़ों पर छोटे-छोटे छेद कर घरोंदे बनाए। पेड़ों पर परिधों के लिए परिंड़े बांधे। परिड़ों को रोजाना साफ कर पानी भरें।