सुबह 11 बजे से जिला परिषद सभागार में अविश्वास प्रस्ताव पर विचार बैठक हुई। इसमें भाजपा के सभी 26 सहित एक निर्दलीय और दो कांग्रेसी सदस्य तो पहुंचे, लेकिन 27 ने ही प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया। दोपहर एक बजे तक कांग्रेस का समर्थन नहीं मिलने से भाजपा के सदस्यों के चेहरे मायूस नजर आने लगे।
दो कांग्रेसी आए, लेकिन नहीं दिया वोट
परिषद में बहस के दौरान कांग्रेस पार्षद मंजू देवी भी शामिल हुईं। इसके बाद पैर में फ्रेक्चर होने के बाद भी बेनीप्रसाद कटारिया पहुंचे। उन्हें व्हीलचेयर के जरिए सभागार तक ले जाया गया। दोनों ही सदस्यों ने न पक्ष न विपक्ष में वोट दिया।
परिषद में बहस के दौरान कांग्रेस पार्षद मंजू देवी भी शामिल हुईं। इसके बाद पैर में फ्रेक्चर होने के बाद भी बेनीप्रसाद कटारिया पहुंचे। उन्हें व्हीलचेयर के जरिए सभागार तक ले जाया गया। दोनों ही सदस्यों ने न पक्ष न विपक्ष में वोट दिया।
भाजपाई लगातार करते रहे सम्पर्क
भाजपा के पार्षद अविश्वास प्रस्ताव में अधिक संख्या बल दिखाने को लेकर लगतार कांग्रेस सदस्यों से सम्पर्क करने की कोशिश करते रहे, लेकिन किसी भी सदस्य से कोई सम्पर्क नहीं हो पाया और दोपहर एक बजे तक स्थिति बिल्कुल साफ हो गई कि कांग्रेस की ओर से दो पार्षद ने अलावा कोई और नहीं आ रहा।
भाजपा के पार्षद अविश्वास प्रस्ताव में अधिक संख्या बल दिखाने को लेकर लगतार कांग्रेस सदस्यों से सम्पर्क करने की कोशिश करते रहे, लेकिन किसी भी सदस्य से कोई सम्पर्क नहीं हो पाया और दोपहर एक बजे तक स्थिति बिल्कुल साफ हो गई कि कांग्रेस की ओर से दो पार्षद ने अलावा कोई और नहीं आ रहा।
रणनीति के तहत बुलाया पीसीसी
भले ही मूल चंद मीना भाजपा से चुनाव जीतकर जिला प्रमुख बने थे, लेकिन राज्य में सत्ता परिवर्तन होने के बाद उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। दोनों ही दलों के पार्षद जिला प्रमुख की कार्यशैली पर लगातार सवाल उठा रहे थे, लेकिन कांग्रेस संगठन को लग रहा था कि यदि जिला प्रमुख की कुर्सी चली गई तो ये कहीं न कहीं भाजपा की जीत होगी। इस वजह से एक रणनीति के तहत सभी सदस्यों को पीसीसी बुला व्हिप जारी कर बैठक में शामिल होने से मना कर दिया था।
भले ही मूल चंद मीना भाजपा से चुनाव जीतकर जिला प्रमुख बने थे, लेकिन राज्य में सत्ता परिवर्तन होने के बाद उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। दोनों ही दलों के पार्षद जिला प्रमुख की कार्यशैली पर लगातार सवाल उठा रहे थे, लेकिन कांग्रेस संगठन को लग रहा था कि यदि जिला प्रमुख की कुर्सी चली गई तो ये कहीं न कहीं भाजपा की जीत होगी। इस वजह से एक रणनीति के तहत सभी सदस्यों को पीसीसी बुला व्हिप जारी कर बैठक में शामिल होने से मना कर दिया था।