भाजपा किसी भी निकाय में कांग्रेस को ‘बाई’ नहीं देना चाहती है। इसलिए हर निकाय में भाजपा की ओर से चेयरमैन, सभापति और मेयर के लिए नामांकन दाखिल किए जाएंगे। पार्टी जहां बहुमत नहीं मिला है, वहां निर्दलीयों के सहारे बोर्ड बनाने के लिए प्रयासरत है। ऐसे निकायों में बोर्ड बनाने की जिम्मेदारी वहां के चुनाव समन्वयक, जिलाध्यक्ष और स्थानीय इकाई को सौंपी है। उन्हें निर्देश दिए गए हैं कि वे जहां जिसे अनुकूल समझे समर्थन दें तथा जिनसे मिल सकता है, उनसे हर हाल में समर्थन लेकर बोर्ड बनाए। इसके बाद से पार्टी के नेता निर्दलीयों के संपर्क में हैं। इस बारे में नेताओं का कहना है कि बहुत से वार्ड ऐसे हैं जहां रणनीति के तहत भाजपा ने प्रत्याशी नहीं उतारे थे और निर्दलीयों को समर्थन दिया था, वे सभी पार्टी नेताओं के संपर्क में है। उनकी बोर्ड के गठन में भूमिका रहेगी। इसी तरह से समान विचारधारा वाले निर्दलीयों को भी समर्थन दिया था। उनसे कब कहां कैसे सहयोग लेना है, समर्थन लेना है इसका निर्णय वहां की स्थानीय इकाई करेगी।
घेराबंदी जारी
फिलहाल भाजपा और कांग्रेस दोनों के नेताओं की धड़कनें बढ़ी हुई है। दोनों ही तरफ से निर्दलीयों पर डोरे डालने के साथ ही उन्हें अपने जीते हुए प्रत्याशियों की चिंता भी सता रही है। यह छोटा चुनाव है और इसमें दल बदल कानून भी लागू नहीं होता है इसके चलते प्रत्याशियों की घेराबंदी जारी है। दूसरा दल घेराबंदी को तोड़कर उनके जीते हुए प्रत्याशी से संपर्क न साध ले इसके लिए उन्हें अपने क्षेत्रों से दूर ले जाकर होटलों-रिसोर्टों में रखा जा रहा है। धार्मिक पर्यटन पर ले जाया जा रहा है। जब तक मेयर, सभापति और चेयरमैन के नामांकन व मतदान नहीं होगा तब तक ऐसा ही दौर चलता रहेगा। यह तो रिजल्ट आने के बाद ही पता चलेगा कि भाजपा इस खेल में भाजपा कितनी कायमयाब हो पाती है।
भाजपा ने रणनीतिक रूप से अनेक वार्डों में अपने प्रत्याशी नहीं उतारे थे, अनेक में निर्दलीयों को समर्थन दिया था। चुनाव जीतने के बाद ऐसे प्रत्याशी हमारे संपर्क में है। कुछ पार्टी विचाराधारा के समर्थक हैं। इस चुनाव में दलबदल कानून लागू नहीं होता, इसलिए पार्टी अनुशासन टूटने की भी उम्मीद है। किन निर्दलीयों से कहां कैसे समर्थन लेना है इसकी पूरी जिम्मेदारी समन्वयक व स्थानीय इकाई को सौंपी है।
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया