विश्व की सबसे बडी पार्टी का दावा करने वाली भाजपा को एक माह बाद भी प्रदेश में अपना अध्यक्ष नहीं खोज पाई है।
विश्व की सबसे बडी पार्टी का दावा करने वाली भाजपा को एक माह बाद भी प्रदेश में अपना अध्यक्ष नहीं खोज पाई है। वजह है कि आलाकमान और प्रदेश की सीएम के बीच किसी एक नाम को लेकर सहमति नहीं बन पाई है और इसी के चलते कर्नाटक में चुनाव होने तक इसका फैसला टाल दिया गया था और अब भाजपा आलाकमान खुद ही कर्नाटक चुनाव में ऐसी उलझ गया कि वो राजस्थान में अध्यक्ष पद के लिए किसी एक नाम पर सहमति आज दिन तक नहीं बना पाया।
आने वाले विधानसभा चुनाव को
ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए राजस्थान बहुत महत्वपूर्ण प्रदेश है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को सभी 25 सीटें मिली थी ऐसे में भाजपा इस लीड को आगे भी रखना चाहेगी, वहीं कांग्रेस के लिए यह वनवास से वापसी की लडाई है क्यों कि कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव में मात्र 21 सीटों पर सिमट कर रह गई थी लेकिन तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में जीत के बाद कांग्रेस में उत्साह बढ गया था और उसे राजस्थान में उसे सत्ता की राह आसान दिखने लगी थी उधर भ्राजपा ने तीन हार के बाद अपने अध्यक्ष
अशोक परनामी से इस्तीपफा तो ले लिया लेकिन उनकी जगह किसी को बैठा नहीं पाई।
पहले ऐसा लग रहा था कि भाजपा अध्यक्ष पद पर इस्तीफे के बाद दो तीन दिन में किसी नाम का ऐलान कर देगी लेकिन भाजपा में अध्यक्ष पद का मामला लगातार उलझता चला गया। आलाकमान की पसंद गजेन्द्र सिंह शेखावत और अर्जुनराम मेघवाल को प्रदेश के नेतत्व ने रिजेक्ट कर दिया तो प्रदेश के नाम आलाकमान ने ना मंजूर कर दिए। ऐसे मेेें इस आग में घी डालने का काम किया भाजपा के वरिष्ठ नेता देवी सिंह भार्टी ने। भाटी ने यह तक कह दिया कि शेखावत के अध्यक्ष बन जाने से जाट वोट बैंक नाराज हो जाएगा और मेघवाल तो अपने समाज के 100 वोट भी भाजपा को नहीं दिला सकते। ऐसे में भाटी के यह कहते ही यह मामला और उलझ गया। इसके बाद सीएम
वसुंधरा राजे ने कमान संभाली और दिल्ली का रुख कर लिया और इसके बाद यह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का फैसला कर्नाटक चुनाव सम्पन्न होने तक टाल दिया।
अब देखना यह है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद का फैसला आने वाले दिन में हो पाता है या नहीं, क्यों कि विधानसभा चुनाव सिर पर है और जल्द ही इसे नहीं सुलझाया तो भाजपा को मुश्किलों का सामना करना पड सकता है।