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कमल को केरल से पूरेे दक्षिण में खिलाने की हो रही है कवायद !

locationजयपुरPublished: Oct 06, 2017 08:23:13 pm

Submitted by:

Kamlesh Sharma

भारतीय जनता पार्टी राजस्‍थान सहित उत्‍तर भारत मेें 2014 की जीत का इतिहास दोहरा पाएगी, इसमें संदेह है।

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राजेंद्र शर्मा/जयपुर। भारतीय जनता पार्टी राजस्‍थान सहित उत्‍तर भारत मेें 2014 की जीत का इतिहास दोहरा पाएगी, इसमें संदेह है। शायद बीजेपी को भी। इस राजनीतिक संभावना के आलोक में अध्यक्ष अमित शाह की केरल में निकल रही जनरक्षा यात्रा सुर्खियों में है। इस यात्रा को केरल में हो रही राजनीतिक हिंसा के खिलाफ बताया जा रहा है। उद्देश्य तो अच्छा होना ही चाहिए, किसी भी राजनीतिक यात्रा का, वर्ना सफलता संदिग्ध हो जाती है।
वैसे, गहराई में जाकर सोचने पर लगता है कि बात राजनीतिक हिंसा की भले ही हो, निशाना शायद पूरे दक्षिण भारत में बीजेपी या कहें एनडीए की सीटें बढ़ाने पर है। राजनीतिक दृष्टिकोण से लगता है कि अच्छे दिन, गोरक्षा, 15 लाख रुपए, बेरोजगारी, लगातार हो रही छंटनी, महंगाई, नोटबंदी, जीएसटी, जैसे कई फैक्टर हैं जो 2019 के चुनाव के परिप्रेक्ष्य में बीजेपी की चिंता बढ़ा रहे हैं। इन सभी के मद्देनजर शायद बीजेपी को लगता है कि 2019 में 2014 का दोहराव उत्तर भारत में होना मुश्किल है। युवा वोटों की सेना के बूते 2014 की राजनीतिक जंग जीतने वाली बीजेपी को 2017 में हुए विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रसंघ चुनाव में भी अपने छात्र संगठन की नाकामी का झटका भी झेलना पड़ा है। खासकर, देश की राजधानी में, जहां जेएनयू में तो सफाया होता ही आया है, दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी मिली हार ने अंदर तक हिलाया है। चाहे, इसे बाहर से असरकारी नहीं माना जा रहा हो। फिर, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्राओं से छेड़छाड़ और फिर उन पर ही लाठियां बरसाने की घटना पर भी युवाओं की आंखों में सुर्खी बढ़ी है। वैसे भी, 2014 में जितनी सीटें मिली थीं और जिस तरह की कांग्रेस विरोधी आंधी थी, 2019 में उसकी उम्मीद नहीं की जा सकती। अलबत्ता, अबकी बार तो बीजेपी नीत एनडीए के विरुद्ध भी होगी मुद्दों की भरमार। फिर, राजस्‍थान सहित कुछ राज्यों में बीजेपी सरकारों के कामकाज का भी खमियाजा भुगतना पड़ सकता है।
केरल में राजनीतिक हिंसा
जहां तक राजनीतिक या किसी भी प्रकार की हिंसा का प्रश्न है, केरल क्या, किसी भी ढाणी, गांव, शहर, राज्य या देश में हो मानवता के विरुद्ध ही होती है। चाहे राजनीतिक हो, सांप्रदायिक हो या आतंकी हिंसा हो, कतई बरदाश्त नहीं की जानी चाहिए। केरल में बीजेपी मय संघ और सीपीएम के बीच हिंसा बरसों से जारी है। इसकी शुरुआत वर्तमान मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के गृह जिले कुन्नूर से भारतीय जनसंघ के नेता रामकृष्णन की 1960 में हुई हत्या बताई जाती है।
तब से जो हिंसा और प्रतिहिंसा या प्रतिशोध का सिलसिला चला, जो आज तक नहीं थमा। वैसे, इस हिंसा को लेकर सीपीएम और संघ-भाजपा के बीच बयानबाजी भी चलती रही है। दोनों पक्ष इसमें मारे गए अपने-अपने समर्थकों की संख्या भी ज्यादा बताते और एक-दूसरे पर हिंसा करने के आरोप लगाते रहे हैं। आंकड़े और हालात से तो लगता है कि दोनों तरफ है आग बराबर लगी हुई।
केरल के राजनीतिक हालात
देश के सर्वाधिक साक्षर माने जाने वाले इस राज्य में कांग्रेस और सीपीएम का वर्चस्व शुरू से रहा है। वर्ष 1957 में पहले विधानसभा चुनाव से 2016 तक वामपंथी लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और कांग्रेस नीत यूनाइटेड डेमोके्रटिक फ्रंट (यूडीएफ) की सरकार बारी-बारी से बनती रही है। राज्य में आरएसएस ने बरसों मेहनत की है, इसका नतीजा है कि यहां करीब चार हजार शाखाएं चल रही हैं। यही कारण है कि बीजेपी के वोट 2011 के सात फीसदी के मुकाबले 2016 में 15 प्रतिशत यानी दुगने से अधिक बढ़े।
कैसे होगी सीटों की भरपाई!
राजनीति के जानकारों का एक तबका यह भी मानता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी या एनडीए 2014 उत्तर भारत और बिहार-झारखंड में दोहरा पाएगी इसमें संदेह है। शायद पार्टी को भी। इस बात में दम भी लगता है। यूपी, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, दिल्ली और उत्तराखंड की कुल 305 में से 2014 में बीजेपी नीत एनडीए को 264 सीटें मिली थी। लगता है इन राज्यों में सीटें कम होने की भरपाई करने की कवायद दक्षिण में होगी, जिसका आगाज़ यह जनरक्षा यात्रा मानी जा रही है। हालांकि दक्षिण में बीजेपी की राह में कई रोड़े हैं। अलबत्ता, बीजेपी की उम्मीद जयललिता का निधन के बाद की अन्नाद्रमुक का साथ, द्रमुक की कमजोरी, रजनीकांत सहित कुछ अभिनेताओं को पार्टी में आने की उम्मीद तमिलनाडु में, तो आंध्रप्रदेश में टीडीपी का साथ और वाईएसआर के जगनमोहन रेड्डी के आय से अधिक संपत्ति मामले में फंसे होने, तेलंगाना में कमजोर हो रही कांग्रेस के नेताओं के बीजेपी में दलबदल कर आने और कर्नाटक में कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में हराने पर टिकी है।
सर्वे के अनुमान
गत मई महीने में एक टीवी चैनल द्वारा कराए गए सर्वे में (हालांकि इस समय करने का औचित्य समझ से परे है) दक्षिण भारत में बीजेपी के वोट तीन प्रतिशत बढऩे की संभावना जताई गई है, हालांकि एक लोकसभा सीट कम होने की संभावना बताई है। यह तो ठीक है, लेकिन कांग्रेस को मजबूत होने की जो गुंजाइश जताई गई, उसने शायद बीजेेपी की नींद उड़ा दी है। सर्वे के मुताबिक दक्षिण भारत में कांग्रेस को 34 फीसदी वोट के साथ 52 सीट मिलने का अनुमान जताया गया है। यानी 29 सीटों का इजाफा। अन्यों यानी क्षेत्रीय दलों और निर्दलीयों को 41 सीट मिलने की संभावना जताई गई। यहां अन्यों को 28 सीट का नुकसान हो रहा है। हालांकि इस सर्वे में उत्तर भारत में बीजेपी के 2014 जैसे परिणाम दोहराव की संभावना जताई गई है।
बहरहाल, दक्षिण भारत में 132 में से यथास्थिति यानी 40 सीट बीजेपी के लिए संतोषजनक नहीं होगी। उसे या तो राजस्‍थान में 25 में से 25, गुुुुजरात में 26 में से 26 सहित उत्तर भारत में 260-265 सीटों का करिश्मा दोहरान होगा या दक्षिण में जोर लगाना होगा। राजनीतिक जानकारों के अनुसार शायद यही वजह है कि अमित शाह ने दक्षिण पर ध्यान केंद्रित किया है। हो सकता है केरल के बाद, कर्नाटक इत्यादि राज्यों में भी बड़े कार्यक्रम, यात्राएं इत्यादि की जाएं।
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