फिलहाल कुछ विधायकों को राज्य से बाहर शिफ्ट किये जाने की चर्चाएँ हैं, वहीं संभावना जताई जा रही है कि भाजपा की बाडेबंदी विधानसभा सत्र से कुछ पहले 11 अगस्त से शुरू हो जायेगी। भाजपा अपनी इस बाडेबंदी को स्वैच्छिक भ्रमण या प्रशिक्षण शिविर का नाम दे सकती है।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के दो गुटों की अलग-अलग बाडेबंदी पहले ही जारी है। गहलोत समर्थित विधायक जहां जैसलमेर में डेरा डाले हुए हैं वहीं पायलट अपने समर्थित विधायकों के साथ संभवतः हरियाणा स्थित एक रिजोर्ट में कैम्प किये हुए हैं।
भाजपा को भी सता रहा ‘टूट का डर’
दरअसल, विधानसभा सत्र से पहले भाजपा भी अपनी रणनीति में किसी तरह की चूक छोड़ना नहीं चाहती है। यही वजह है कि अब पार्टी के विधायकों को एकजुट करने के लिए बादाबंदी का खाका तैयार किया गया है, और अब उसे अमलीजामा पहनाया जा रहा है।
शुक्रवार को दिनभर चली भाजपा की बाडेबंदी की चर्चाओं के बाद आज शनिवार को पार्टी की ओर से अधिकृत बयान सामने आया है। प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता रामलाल शर्मा ने मीडिया को दी प्रतिक्रिया में कहा है कि विरोधियों की ओर से हमारे विधायकों पर अलग-अलग ज़रियों से दबाव बनाए जाने के लगातार संकेत मिल रहे हैं। पूर्व के जन-आन्दोलनों से जुड़े मामलों का ज़िक्र करते हुए विधायकों पर दबाव बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी की इस तरह से दबाव बनाने की शुरू से परम्परा रही है। फिलहाल बोर्डर पर बैठकर सरकार इस तरह के प्रयासों में जुटी है। इसी वजह से विधायकों को एकजुट किया जा रहा है।‘
हालाँकि पार्टी से जुड़े कई अन्य वरिष्ठ नेता अभी भी बाडेबंदी की खबरों से अनिभिग्यता जता रहे हैं। संभावना है कि पार्टी प्रदेश अध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया इस सम्बन्ध में आज कोई प्रतिक्रिया दें। इधर, नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया ने कहा है कि बाडेबंदी जैसी कोई बात नहीं है। इतना जरूर था कि बसपा विधायकों को लेकर जो प्रकरण चल रहा था, वह निस्तारित नहीं हुआ और हमने उससे पहले ही सभी जिलाध्यक्षों से कहा था कि अपने विधायकों का ध्यान रखें। उनके सम्पर्क में रहें।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस में तो गुटबाजी सामने आ चुकी है लेकिन भाजपा में भी कई गुट हैं। हर गुट इस काम में लगा है कि यदि राज्य में सत्ता परिवर्तन होता है तो उनके पसंदीदा नेता ही मुख्यमंत्री बनें। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व नहीं चाहता कि किसी भी कीमत पर विधायकों में टूट हो।