-हाल-ए-हरियाणा अब बात हरियाणा की कर ली जाए। हरियाणा में स्थानीय राजनीति का तकाजा यही है कि यहां जाट वर्ग से ही कोई मुख्यमंत्री बनाया जाए, लेकिन भाजपा ने पिछला चुनाव जीतकर अप्रत्याशित रूप से मनोहर लाल खट्टर को सीएम बनाया। इतना ही नहीं इस बार भी विधानसभा चुनाव खट्टर के नेतृत्व में ही लड़ा गया। नतीजा सामने है कि दुष्यंत चौटाला यानी जननायक जनता पार्टी से लाचारीवश हाथ मिलाकर सरकार बना पाए। इसके बावजूद सीएम खट्टर को ही बनाकर अपना अडि़यल रुख कायम रखा है।
-महाराष्ट्र का महानिर्णय इस बात में तो किसी को कोई शक है ही नहीं कि भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र जैसे बड़े और महत्वपूर्ण राज्य में फस्र्ट प्लेयर के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है, लेकिन इस बार महाराष्ट्र की सत्ता जिस तरह उसके हाथ से फिसली, उसने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अपने रुख में लचीलापन लाने को बिल्कुल तैयार नहीं है। दरअसल पिछली बार महाराष्ट्र में फड़णवीस को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा आलाकमान ने सभी को चौंकाया था। इस बार भी स्थानीय बड़े नेताओं जैसे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, प्रकाश जावड़ेकर या एकनाथ खड़से जैसे नेताओं को चुनाव के समय दरकिनार किया गया। चुनावी पोस्टर पर केवल तीन लोगों के फोटो ही लगाए गए। पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और खुद फडणवीस। नतीजा ये रहा कि फडणवीस मैन ऑफ द मैच की तरह बर्ताव करते रहे। संकट के समय राजनीतिक रूप से उनकी मदद करने कोई भी स्थानीय नेता नहीं आया। इतना ही नहीं, जिस तरह रातोंरात राष्ट्रपति शासन हटाकर गुपचुप में फडणवीस को अलसुबह जो सीएम पद की शपथ दिलाई गई…उसने न केवल फडणवीस को राजनीतिक रूप से कमजोर साबित कर दिया, बल्कि भाजपा की छवि को बड़ा धक्का लगा। कुल मिलाकर अब समय आ गया है, जब भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को स्थानीय नेताओं और उनकी भावनाओं का सम्मान करना होगा और दिल्ली से कुछ भी थोपने की प्रवृत्ति से निजात पानी होगी।