scriptरक्तदाता तो बढ़े लेकिन निजी अस्पतालों की ओर क्यों हो रहे डायवर्ट, विश्व रक्तदाता दिवस पर खास रिपोर्ट | blood donor grew but diverted private hospitals, | Patrika News

रक्तदाता तो बढ़े लेकिन निजी अस्पतालों की ओर क्यों हो रहे डायवर्ट, विश्व रक्तदाता दिवस पर खास रिपोर्ट

locationजयपुरPublished: Jun 14, 2018 07:13:40 pm

Submitted by:

rajesh walia

-5 साल में चार गुना हुए औसत रक्तदाता-शहरों में महिलाएं और ग्रामीण क्षेत्र में पुरुष आगे-अस्पताल की बजाय शिविरों में ज्यादा पहुंच रहे रक्तदाता

blood donor news

जयपुर/ इमरान सिद्दीकी

रक्तदान महादान की कीमत को अब युवा रक्तदाता समझने लगे हैं। अपने और अपने प्रियजनों के खास दिनों पर लोग अब रक्तदान कर मिसाल कायम कर रहे हैं। लगातार चल रहे जागरुकता अभियान का असर भी दिखाई देने लगा है। बीते पांच सालों में रक्तदान करने वाले औसत रक्तदाताओं की संख्या चार गुना तक बढ़ी है। लेकिन अब भी सरकारी अस्पतालों में मरीजों और आपातकालीन मामलों में नियमित रक्तदाताओं की कमी है। कारण, रक्तदाता रक्तदान तो कर रहे हैं लेकिन यह निजी अस्पतालों की ओर डायवर्ट हो रहा है। सरकारी अस्पतालों के ब्लड बैंक में स्वेच्छा से रक्तदान करने वालों की कमी आज भी है। यहां नि:शुल्क इलाज के लिए मिलने वाले रक्त के दानदाता अब भी उतनी तादाद में नहीं मिल पा रहे हैं।
सोशल मीडिया ने जगाई जागरुकता

इस संबंध में सरकारी अभियान और विज्ञापन, काउंसलिंग एवं शिविरों के जरिए लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करने के अलावा सोशल मीडिया ने भी एक सशक्त मंच के रूप में लोगों खासकर युवाओं को जागरुक करने का काम किया है। ट्विटर, फेसबुक, व्हॉट्स एप और ऐसी ही अन्य सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स के जरिए वॉलंटीयर्स ने युवाओं और लोगों का रक्तदान के प्रति समर्थन जुटाया। मुहिम और अभ्यिान के तौर पर इसे सोशल मीडिया के जरिए घर-घर तक पहुंचाने का काम किया गया। नतीजा शिविरों में रक्तदान करने वालों की संख्या में इजाफा होने लगा।
शहरों में महिलाएं ग्रामीण क्षेत्र में पुरुष आगे

एक समय था जब महिलाओं का प्रतिशत इस क्षेत्र में बहुत कम होता था। लेकिन अब तस्वीर बदलने लगी है और शहरों में भी महिलाएं रक्तदान के लिए खुलकर आगे आ रही हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्र की बात करें तो यहां पुरुषों की भागीदारी ज्यादा है। सामाजिक बंदिशों के चलते अब भी ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं स्वेच्छा से रक्तदान के लिए आगे नहीं आ पा रही हैं। वहीं शहरी क्षेत्र में काम की व्यस्तता के चलते पुरुष अपना पूरा योगदान नहीं दे पा रहे।
अस्पताल की बजाय शिविरों में ज्यादा
ब्लड बैंक से मिली जानकारी के मुताबिक एमएमएस और इससे जुड़े सरकारी और सैटेलाइट अस्पतालों में अब भी सबसे ज्यादा रक्त शिविरों से आ रहा है। सीधे अस्पताल आकर स्वेच्छा से ब्लड देने वालों की आज भी स्थिती पहले जैसी ही है। जिसका कारण है कि लोग शिविरों में रक्तदान करने में ज्यादा अच्छा महसूस करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में, विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों की ओर से आयोजित होने वाले रक्दान शिविरों में पहले मुकाबले ज्यादा रक्तदाता जुट रहे हैं लेकिन ज्यादातर ये निजी अस्पतालों में डायवर्ट हो रहा है।
गंभीर बीमारियों में रिप्लेसमेंट नहीं

सरकार की ओर से दो साल पहले ही लाडली रक्त सेवा के तहत १२ साल की बालिकाओं को नि:शुल्क रक्त उपलब्ध करवाने की शुरुआत की गई है। वहीं थैलीसीमिया, दिव्यांग मरीज, सेना के जवान, सड़क दुर्घटना, विधवा, एचआईवी पीडि़त, कैदी और ट्रोमा केसेज में नि:शुल्क रक्त देने की व्यवस्था की हुई है। लेकिन परेशानी ये है कि इसके बदले में रक्त नहीं मिल पाता। वहीं बोन मैरो, ऑर्गन ट्रांसप्लांट, बोन मैरो ट्रांसप्लांट, ब्लड ट्रांसफ्यूजन, ब्लड कैंसर 108 ऐंबूलेंस में लाए जाने वाले जैसे गंभीर रोगों में प्रति मरीज 4 से 5 यूनिट ब्लड की जरुरत पड़ती है। रक्त की समुचित व्यवस्था न होने पर ऑपरेशन और इलाज की तारीख तक नहीं दी जाती।
आंकड़ों में रक्तदान
-2433 ब्लड बैंक है देशभर में
-70 लाख यूनिट ब्लड एकत्र होता है सालाना
-70 लाख यूनिट ब्लड की जरुरत है सालाना
-350 से 400 यूनिट ब्लड की खपत है एसएमएस अस्पताल में रोजाना
-25 फीसदी ट्रोमा में यूज होता है रक्त जिसका कोई रिप्लेसमेंट नहीं
-12000 के करीब है एसएमएस का ओपीडी प्रतिदिन
-8000 रुपए का शुल्क कर दिया एसडीपी का वर्तमान में
(पिछली सरकार की तुलना में 2000 रुपए ज्यादा)
-1050 रुपए कर दिया निजी अस्पताल के रोगी को यूनिट उपलब्ध करवाने का शुल्क
(पिछले शुल्क की तुलना में 200 रुपए ज्यादा)
वर्जन
रक्तदान के प्रति जागरुकता तो आई है लेकिन अब भी नियमित रक्तदाताओं की कमी है। जागरुकता बढ़ाने और युवाओं को प्रेरित करने के मकसद से ट्रोमा में हमने जीवन रक्षक रक्त सुविधा डोनेट और वन बकेट लाइफ कैम्पेन भी शुरू किया है। सरकार 18 साल का होने पर ड्राइविंग लाइसेंस बनाने से पहले ब्लड डोनेशन को अनिवार्य बनाए ताकि टीनएजर्स भी रक्तदान से जुड़ सकें।
डॉ. सुनीता बुन्दस, वरिष्ठ प्रोफेसर, इंचार्ज, ब्लड बैंक, एसएमएस अस्पताल

ट्रेंडिंग वीडियो