दिल्ली की 22 साल की कार्तिका जो अब कार्तिक वत्स बन गई हैं, वो भी इसका शिकार हैं। कार्तिक खुद को ट्रांसजेंडर मानते हैं। वे कहते हैं कि मुझे दवाइयां दीं। बाबाओं ने झाड़-फूंक की। कमरे में बंद करके जबरन रिश्ते बनाने की कोशिश की गई। वजह सिर्फ इतनी थी कि घर वाले चाहते थे कि मैं किसी पुरुष के प्रति आकर्षित रहूं।
क्या है कन्वर्जन थेरेपी
'कन्वर्जन थेरेपी' ऐसे ‘इलाज’ या 'मनोवैज्ञानिक इलाज' को कहते हैं जिसमें किसी को एलजीबीटी होने से रोकने या दबाने की जबरन कोशिश की जाती है। जो कि वैज्ञानिक रूप से पूरी तरह नामुमकिन है। इसमें कई खतरनाक उपाय हैं, जैसे-इलेक्ट्रिक शॉक देना, दवाइयां देना, भूखे रखना, बाबाओं से झाड़-फूंक, शारीरिक व मानसिक हिंसा, जबरन शारीरिक संबंध आदि।
‘कई बार मरने की कोशिश की’
रानी (बदला हुआ नाम) के घर वालों ने डॉक्टरों से लेकर ओझाओं के चक्कर लगाए। रानी कहती हैं, इससे मुझे खुद से ही घृणा होने लगी। कई बार आत्महत्या की कोशिश की, लेकिन बच गई। उसके बाद मेरी और मेरे घर वालों की काउंसलिंग हुई, जिसके बाद मेरे घर वालों ने मुझे वैसा ही स्वीकार लिया, जैसी मैं हूं।
तमिलनाडू में प्रतिबंध
ब्राजील, न्यूजीलैंड, जर्मनी, अर्जेंटीना, ताइवान जैसे देशों में कन्वर्जन थेरेपी पर बैन है। भारत में तमिलनाडु इकलौता ऐसा राज्य है, जहां इस पर पूरी तरह प्रतिबंध है। राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद भी इसे देश में प्रतिबंधित बता चुकी है। फैमिली एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट के मुताबिक एलजीबीटी समुदाय में सुसाइड रेट उन लोगों में तिगुनी हो जाती है, जो कन्वर्जन थेरेपी का शिकार हुए हैं। डिप्रेशन के मामले भी तिगुने हैं। कई की पढ़ाई छूट जाती है और प्रताड़ित होते हैं।
ये अलग हैं, पर इन्हें गलत कहना बंद करें
थैरेपी पूरी तरह से गलत है। मेरे पास ऐसी परेशानी झेले 2 से 3 मामले हर महीने आते हैं। इनमें से ज्यादातर खुद को चोट पहुंचा चुके होते हैं या फिर कोशिश में रहते हैं। इनकी स्वीकार्यता बढ़ानी होगी। उन्हें केयर की जरूरत है। यह लोग अलग हैं, लेकिन इन्हें गलत कहना पूरी तरह से बंद कीजिए। -सत्यकांत त्रिवेदी, वरिष्ठ मनोचिकित्सक