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FLASHBACK: जब गलत आंकड़े पेश करने पर गहलोत के खिलाफ लाया गया विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव, पर जांच हुई ‘गोलमोल’!

locationजयपुरPublished: Jul 11, 2020 12:14:35 pm

Submitted by:

Nakul Devarshi

सीएम गहलोत के खिलाफ विशेषाधिकार हनन नोटिस मामला, पहले भी कर चुके हैं इस तरह के प्रस्ताव का सामना, तब नहीं थे मुख्यमंत्री, वसुंधरा सरकार के दौरान वर्ष 2014 में लाया गया था प्रस्ताव, भाजपा विधायक राव राजेन्द्र सिंह ने लगाया था सदन को गुमराह करने का आरोप

breach of privilege motion against ashok gehlot in assembly
जयपुर

भारतीय जनता पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की शिकायत मामले ने प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। भाजपा विधायकों ने शुक्रवार को विधानसभा में दर्ज करवाई शिकायत में सीएम गहलोत के उस बयान पर आपत्ति जताई है जिसमें उन्होंने राज्यसभा चुनाव के दौरान विधायकों की 35-35 करोड़ में खरीद-फ़रोख के आरोप लगाए थे।
विधानसभा अध्यक्ष करेंगे अध्ययन, लेंगे निर्णय
अब सभी की नज़रें विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी के फैसले पर टिकी हुई हैं, जो इस शिकायत का अध्ययन करने के बाद ये तय करेंगे कि भाजपा विधायकों की शिकायत पर मुख्यमंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का मामला बनता है या नहीं। यदि शिकायत सही मानी जाती है तब विधानसभा मुख्यमंत्री गहलोत से नोटिस देकर जवाब-तलब कर सकता है। यदि उसके बाद भी जवाब संतोषजनक नहीं होगा तब सदन में मुख्यमंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाया जा सकता है।
गहलोत पहले भी कर चुके हैं ‘विशेषाधिकार हनन’ का सामना
ये कोई पहली बार नहीं है जब मुख्यमंत्री गहलोत के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की शिकायत की गई हो। इससे पहले वर्ष 2014 में भी गहलोत के खिलाफ सदन में विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाया गया था। हालांकि तब वे मुख्यमंत्री नहीं थे। उस दौरान भाजपा विधायक रहे राव राजेन्द्र सिंह सदन में ये प्रस्ताव लेकर आये थे। इस प्रस्ताव में गहलोत पर 2013-2014 के बजट में कथित रूप से गलत आंकड़े देकर सदन को गुमराह करने का आरोप लगाया गया था।
विशेषाधिकार समिति को सौंपा गया था प्रस्ताव
गहलोत के खिलाफ विशेषाधिकार हनन के इस मामले पर विस्तृत जांच के लिए तब विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने सदन की विशेषाधिकार समिति के सुपुर्द किया था। समिति को छह महीने में अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया था। कांग्रेस विधायकों ने प्रस्ताव लाए जाने का जमकर विरोध भी किया था।
तब इसलिए लाया गया था विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव
प्रस्ताव में आरोप लगाया गया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बतौर वित्त मंत्री वर्ष 2013-14 के बजट में गलत आकड़े पेश कर सदन को गुमराह किया। राजस्व आधिक्य और राजस्व घाटे के बारे में जानबूझकर गलत जानकारी दी। तत्कालीन सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं का पैसा बजट में शामिल नहीं किया गया। ऐसा होता तो राजस्व आधिक्य राजस्व घाटे में बदल जाता। सदन में की घोषणा व बजट में किए प्रावधानों में अंतर रखा गया। बाद में कंटीजेंसी फण्ड से सरकार ने इन योजनाओं के लिए पैसा लिया।
नहीं हुई कोई कार्रवाई!
वर्ष 2014 में गहलोत के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव हालाँकि विधानसभा से लेकर सरकार तक के लिए मुसीबत बना दिखाई दिया। विधानसभा अध्यक्ष ने जिस विशेषाधिकार हनन समिति को प्रस्ताव सौंपा था उसने भी छह माह में रिपोर्ट नहीं सौंपी। दरअसल, बजट आंकड़ों में गड़बड़ी के आरोप वाले इस प्रस्ताव पर विधानसभा ने वित्त विभाग से भी जवाब मांगा था, लेकिन छह माह में भी विभाग की ओर से कोई जवाब नहीं आया। तब विभाग की परेशानी यह रही कि आरोप स्वीकार करने पर पूरी बजट प्रक्रिया और अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगेंगे और आरोप नकारे जाते हैं तो राजनीतिक रूप से सरकार की किरकिरी हो जायेगी।

विशेषाधिकार हनन: ख़ास बातें
– विधानसभा, विधानपरिषद और संसद के सदस्यों के पास कुछ विशेष अधिकार होते हैं, ताकि वे प्रभावी ढंग से अपने कर्तव्यों को पूरा कर सके।
– जब सदन में इन विशेषाधिकारों का हनन होता है या इन अधिकारों के खिलाफ कोई कार्य किया जाता है, तब उसे विशेषाधिकार हनन कहते हैं।
– इसकी स्पीकर को की गई लिखित शिकायत को विशेषाधिकार हनन नोटिस कहा जाता है।
– नोटिस के आधार पर स्पीकर की मंजूरी से सदन में विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाया जा सकता है।
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