शेल्टर होम में रुके इन मजदूरों को अपने घर की याद आने लगी है। बुधिया देवी स्कूल के शेल्टर होम में रुके यह मजदूर अब अपने घर की याद को बुलाने में जुटे हैं। अपने घर की याद तो बुलाने के लिए यह एंटरटेनमेंट का सहारा ले रहे हैं। यहीं कारण है कि स्कूल का इन दिनों का नजारा देखकर आप भी चौंक जाएंगे। इन मजदूरों की दिन की शुरुआत योगा क्लासेस से होती है। इसके बाद नाश्ता और फिर कुछ देर बाद लंच। लेकिन जैसे ही शाम के 4 बजते है इस स्कूल का नजारा एकदम से बदल जाता है। यहां पर शाम के नाश्ते के बाद मजदूर फिर से हॉल में इकट्ठा हो जाते हैं। जहां पर पहले तो शारीरिक शिक्षकों द्वारा इन्हें एरोबिक्स और योगा करवाया जाता है और फिर कुछ देर बाद में शुरू होता है इनका एंटरटेनमेंट। इस एंटरटेनमेंट में यहां पर रुके मजदूर म्यूजिक की धुन पर डांस करते हैं और खुद गाना गाकर भी सुनाते हैं। एक-एक कर स्टेज पर कोई डांस की परफॉर्मेंस देता है तो कोई गायन की। इसी तरह शुरू हो जाता है इनका अपने घर की याद को भुलाने का सिलसिला।
स्कूल में रुके मजदूर अपने एंटरटेनमेंट के लिए म्यूजिक की धुन पर डांस करते हैं। तेरी आंख्या का काजल, तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त जैसे गानों पर एक-एक कर मजदूर स्टेज पर आकर परफॉर्मेंस देते हैं और म्यूजिक की धुन के साथ साथ ही तालियों की आवाज सुनाई देती हैं। हॉल में मौजूद मजदूर डांस करने वाले अपने साथी का तालियों से हौसला आफजाई करते हैं। स्कूल में मौजूद शारीरिक शिक्षक बाबूलाल जाट ने बताया कि ऐसा यह रोज कर रहे हैं। जहां पर कई राज्यों से आए लोग एक दूसरे की संस्कृति से भी रूबरू करवा रहे हैं। शारीरिक शिक्षकों का कहना है कि यहां पर अहमदाबाद यूपी बिहार मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों के मजदूर रुके हुए हैं। शाम को स्टेज से यह अपने लोक गायक, लोक नृत्य से अपनी लोक संस्कृति से भी रूबरू करवा रहे हैं।
शेल्टर होम में व्यवस्थाएं संभाल रही रेवेन्यू डिपार्टमेंट की कर्मचारी आनंदी शेखावत ने बताया कि इन मजदूरों का खाने-पीने का भी खास ध्यान रखा जाता है। सुबह उठने के बाद नित्यक्रम कर यह मजदूर अपने अपने कमरों में रहते हैं। वहीं पर इनके लिए नाश्ता पहुंचा दिया जाता है। जहां पर सुबह-सुबह इन्हें दूध चाय ब्रेड बिस्किट और फल तक दिए जाते हैं। इसके बाद दोपहर में लंच करवाया जाता है। लंच करने के बाद यह आराम करने चले जाते हैं और फिर से 4 बजे उठकर हॉल में आ जाते हैं जहां पर फिर से इन्हें अल्पाहार दिया जाता है। अल्पाहार लेने के कुछ देर बाद उनकी शारीरिक शिक्षक एरोबिक्स और योगा की क्लास शुरु कर देते हैं। यह क्लास खत्म होते ही इनका एंटरटेनमेंट शुरू हो जाता है और फिर कई राज्यों की संस्कृति एक मंच पर आ जाती है। हालांकि जितना भी खाना-पीना यहां पर हो रहा है। वह सब भामाशाहों के सहयोग से दिया जा रहा है। अजमेर रोड के पास स्थित गांव से लोग यहां पर खाना बनाकर औऱ दूध लेकर मदद करने के लिए आते हैं।
स्कूल में खाने पीने की मदद करने वाले भामाशाह में सभी जातियों के लोग शामिल है। अजमेर रोड पर स्थित रामचंद्रपुरा गांव के लोग ज्यादा मदद पहुंचा रहे हैं। इस गांव कि हर जाति वर्ग के लोग इन मजदूरों की मदद करने में जुटा है। कोई सुबह शाम का दूध उपलब्ध करवा रहा है तो कोई फल बिस्किट और ब्रेड। वहीं कई परिवार तो ऐसे हैं तो इन्हें लगातार खाना दे रहे हैं। खाने में भी एक से मेन्यू नहीं आता है। रोजाना मेंन्यू बदल बदल कर देने की कोशिश की जाती है। गांव से लोग अपनी गाड़ियों में सामान लेकर यहां पर आते हैं और फिर इन्हें खिला कर वापस अपने बर्तन उठा कर चले जाते हैं। रोजाना गांव के लोग इसी तरह सेवा कर रहे हैं। 23 मार्च से यह कोशिश लगातार जारी है कि कोई भी यहां पर रुकने वाला मजदूर परेशान नहीं हो।
मजदूरों ने कहा कोई परेशानी नहीं, लेकिन घर की आती है याद
शेल्टर होम में रुके मजदूरों का कहना है कि उन्हें यहां पर कोई परेशानी नहीं है। सभी तरह की व्यवस्था काफी अच्छी है। लेकिन वह अब अपने घर को जाना चाहते हैं। क्योंकि उनके गांव में उनका भी परिवार है जिसकी उन्हें याद आने लगी हैं। मजदूरों ने बताया कि वह जब 23 मार्च को अपने घर को पैदल पैदल लौट रहे थे उसी दौरान इन्हें यहां पर लाकर रखा गया। लेकिन काफी अच्छी व्यवस्थाएं होने के बाद भी अपने अपने घर की याद आने लगी है। सभी अपने परिवार से मिलना चाहते हैं। मजदूरों ने बताया कि उन्हें उनका काम धंधा जो था वह भी वापस मिल जाए। ऐसे में इस एंटरटेनमेंट में भी मजदूरों का दर्द छुपा हैं। मजदूरों का कहना है कि यह एंटरटेनमेंट अपने दर्द को कम करने के लिए ही कर रहे हैं। जिससे कि कुछ देर वह अपने घर की याद को भुला सके और यहां पर मौजूद लोगों को ही अपना परिवार मानकर उनके साथ समय निकाल सकें।