माण्डलगढ़: भारी मतदान से बढ़ी दोनों दलों की बेचैनी
भीलवाड़ा के मांडलगढ़ विधानसभा उपचुनाव के लिए सोमवार को हुए करीब 79 फीसदी मतदान के बाद जीत को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के नेता आश्वस्त नहीं है। विभिन्न इलाकों में हुए मतदान के प्रतिशत को लेकर दोनों ही दलों केनेताओं बेचैनी बढ़ गई है, यूं तो सबके भाग्य का पिटारा एक फरवरी को खुलेगा, लेकिन मतदान की समाप्ति के बाद से ही नुक्कड़ और चौराहों पर उम्मीदवारों की हार जीत के कयास शुरू हो गए। त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी इस सीट पर आम मतदाता दोनों प्रमुख दलों के बीच कड़ी टक्कर मान रहे है। अलग अलग इलाकों मतदान केन्द्रों पर मतदाताओं के रुझान, वोटिंग और चुनावी मैनेजमेंट के हिसाब से दोनों दलों का पलड़ा बराबर माना जा रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि निर्दलीय भी बड़ा उलटफेर कर सकता है। इस बार कांग्रेस के बागी गोपाल मालवीय ने मुकाबले को रोचक बना दिया है। जहां कुछ विशेषज्ञ प्रदेश के अन्य जगह हुए उपचुनाव की तुलना में इस क्षेत्र में हुए अधिक मतदान को राज्य सरकार विरोधी लहर बता रहे है, वहीं कई लोग इसे तीनों ही प्रमुख उम्मीदवारों द्वारा अपने पक्ष में मतदाताओं को घर से निकालकर मतदान केन्द्र तक ले जाने का परिणाम बता रहे है। कई गांवों में हुए भारी मतदान को भाजपा, कांग्रेस और निर्दलीय तीनों ही अपने अपने पक्ष में मान रहे है। दो दिन बाद आना वाला परिणाम सभी के लिए आत्मविश्लेषण करने वाला ही रहेगा।
अलवर: कम वोटिंग मतदाताओं की नाराजगी तो नहीं
अगर अलवर की बात की जाए तो वहां परिणाम से पहले ही वोटिंग के ट्रेंड से बड़ा संकेत सामने आ रहा है। लगता है यह ट्रेंड इस बार नया कोई गुल खिलाएगा। चुनावी बयार के जानकार और दीवारों को कान लगाने वाले लोगों का मानना है कि यह सत्तारूढ़ दल के लिए चिंता के संकेत है। भाजपा के जिलें में सबसे बड़े और पुराने गढ़ अलवर शहर से यह संकेत मिला है। यहां वोटिंग प्रतिशत मई 2014 के लोकसभा चुनावों की तुलना में 11.82 प्रतिशत कम हुआ है। पिछले लोकसभा चुनाव में जहां पूरे क्षेत्र में कुल मत प्रतिशत 65.27 था वह इस बार घटकर 62.35 रह गया है।
अलवर संसदीय क्षेत्र में पूरे चुनाव अभियान के दौरान वोटरों की सरकार से जो नाराजगी सामने आई थी कम वोटिंग प्रतिशत उसका नतीजा है। आंकड़े नीरस तो लग सकते हैं लेकिन चुनाव का सार इनसे ही निकलकर आएगा। अलवर शहर विधानसभा क्षेत्र में मतदान प्रतिशत पिछले 66.90 प्रतिशत से फिसलकर 55.08 पर आ पहुंचा है। यहीं के मतदाता प्रचार अभियान में सबसे मुखर रहे थे। ऐसा भी कह सकते हैं कि ये गांठ के वोट थे। गांठ को खोलने में माहिर संगठन के लोग भी एक दो बैठकों के अलावा चुप रहे थे। केंद्र के लिए चुनाव था। लेकिन केंद्र से कोई भी दिग्गज यहां जनता को विश्वास दिलाने नहीं पहुंचा। मेवात क्षेत्र में दर्जनों मतदान केंद्र ऐसे हैं जहां वोटिंग अप्रत्याशित रूप से सर्वाधिक रही। दो केंद्रों पर यह 98 और 99 प्रतिशत तक पहुंच गई। कुछ घटनाओं की प्रतिक्रिया में यह एकतरफा ध्रुवीकरण भी माना जा रहा है।
वहीं इसी गणित पर आगे चलें तो शहर से सटी हुई जिले की एकमात्र सुरक्षित सीट अलवर ग्रामीण में करीब पोने दो प्रतिशत वोट ज्यादा पड़े हैं। इसी महीने इस क्षेत्र के 10 हजार से अधिक लोगों ने जिला मुख्यालय पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन भी किया था। यहां से भी संकेत सत्तारूढ़ दल के लिए ठीक नहीं है। वहीं बहरोड़ में भी मतदान पिछले चुनाव के करीब-करीब बराबर ही रहा। जबकि मुंडावर में मतदान प्रतिशत पिछले चुनाव के 65.13 प्रतिशत के मुकाबले 9 प्रतिशत कम हुआ है। वहीं तिजारा में पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में वोट घटा है तो रामगढ़ में मात्र .3 प्रतिशत की कमी हुई है। राजगढ़ में करीब एक प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। चुनाव परिणामों से कांग्रेस को भी एक झटका लगेगा। क्योंकि नाइटवॉच मैन के रूप में प्रत्याशी खड़ा करने का फैसला करने वाले मनमसोसकर रह जाएंगे।
अजमेर: भाजपा और कांग्रेस के माथे पर चिंता की लकीरें
अजमेर में मतदान से ठीक पहले आम बातचीत, मीडिया और सोशल मीडिया में बढ़-चढकऱ दावे करने वाले भाजपाइयों और कांग्रेसियों के लब मतदाताओं ने शांत कर दिए हैं। मतदान के बाद दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं। मतदाताओं ने 65.41 प्रतिशत मतदान कर दोनों पार्टियों की उलझनें बढ़ा दी है। चुनाव लडऩे वाले नेता हों या कार्यकर्ता कोई भी स्पष्ट रूप से अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं हैं। मतदान के बाद सोशल मीडिया पर दोनों ही पक्ष के लोग लगभग खामोश हैं। मतदाताओं ने न तो मतदान के प्रति बहुत उत्साह प्रदर्शित किया और न ही उदासीनता दिखाई। नसीराबाद में जहां लगभग 72 प्रतिशत वोटिंग हुई वहीं अजमेर उत्तर और दक्षिण में मात्र 56 और 59 प्रतिशत। हालांकि उप चुनावों में आम तौर पर 50-55 प्रतिशत की वोटिंग मानी जाती रही है। उस हिसाब से मतदान में बढ़ोतरी ही हुई है। कांग्रेस-भाजपा दोनों को 5-5 लाख वोट मिलना तो तय ही है। शेष दो लाख मतों में से निर्दलीय, नोटा और खारिज मतों की सख्या तकरीबन 50 हजार हो सकती है। शेष डेढ़ लाख वोट ही विजेता का भाग्य तय करेंगे।